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जीवंत हुए मुंशी प्रेमचंद के पात्र, बंसी कौल की स्मृति में दूसरे दिन दो नाटकों का किया गया मंचन

जातपात और लालच की प्रवृत्ति दो ऐसी सामाजिक विषमताएं हैं जों हर काल में रही हैं। वह दौर चाहे मुंशी प्रेमचंद का हो या रवींद्रनाथ ठाकुर का। इन सामाजिक विषमताओं पर दो नाटकों का मंचन वाराणसी में शनिवार को किया गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 07 Mar 2021 12:10 AM (IST)Updated: Sun, 07 Mar 2021 09:18 AM (IST)
जीवंत हुए मुंशी प्रेमचंद के पात्र, बंसी कौल की स्मृति में दूसरे दिन दो नाटकों का किया गया मंचन
सनबीम स्कूल में नाटक का मंचन करते कलाकार।

वाराणसी, जेएनएन। जातपात और लालच की प्रवृत्ति दो ऐसी सामाजिक विषमताएं हैं जों हर काल में रही हैं। वह दौर चाहे मुंशी प्रेमचंद का हो या रवींद्रनाथ ठाकुर का। इन सामाजिक विषमताओं पर दो नाटकों का मंचन शनिवार को किया गया। मौका था रंगमंच के पितामह पद्मश्री बंसी कौल की स्मृति में नाट्य समारोह की दूसरी निशा का। इसमें प्रेमचंद की कहानी पर आधारित प्रेम का उदय और रवींद्रनाथ ठाकुर की कृति चंडालिका के मंचन ने दर्शकों के समक्ष कई प्रश्न छोड़े।

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प्रथम मंचन प्रेम का उदय संस्कार भारती और सनबीम स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह के दूसरे दिन पहली कड़ी में प्रेम का उदय का मंचन किया गया। सड़क के पटरियों पर रेल और बस स्टेशन, गांव-गिराव के बगीचों में तंबू लगाकर खाना बदोश कीजिंदगी बसर करने वाले कंजड़ों की जीवन शैली से पर आधारित यह नाटक भोंदू और बंटी नामक दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमता रहा। बंटी अपने पति भोंदू को चोरी के लिए उकसाती है। वह चोरी करता है लेकिन पकड़ा जाता है। पुलिस की लाख प्रताडऩा के बाद भी मुंह नहीं खोलता। यह सब देख बंटी द्रवित हो उठती है। सारी सच्चाई पुलिस के सामने उगल देती है। फिर अपने पति की दिन-रात सेवा करके पश्चताप करती है। चंद्रशेखर मलिक द्वारा नाट्य रूपांतरित कहानी का मंचन मंचदूतम के बैनर तले अजय रोशन के निर्देशन में किया गया। अजय रोशन ने भोंदू ज्योति ने बंटी, सत्य प्रकाश ने घोंचू, फाल्गुनी ने कमली, गोपाल चंद ने रघु काका, मोनेश श्रीवास्तव ने ठाकुर, दीपक ने कांस्टेबल और शशि प्रकाश ने दारोगा की भूमिका निभाई। संगीत

संयोजन विशाल साहनी, प्रकाश संयोजक रजत, रूप सज्जा एवं वस्त्र विन्यास ज्योति तथा मंच सज्जा का जिम्मा नव्या, तेजस, गोपाल चंद, धनंजय सिंह ने संभाला।

दूसरा मंचन : चंडालिका

अछूत कन्या प्रकृति की कहानी पर आधारित गीतिनाट्य चंडालिका के केंद्र में श्रावस्ती नगर था। एक दिन प्रचंड ग्रीष्म से पीडि़त बौद्ध भिक्षु आनंद, प्रकृति के पास जल मांगता है। प्रकृति संकोच से कहती है कि उसे उच्च वर्ग के मनुष्यों को जल देने का सामाजिक अधिकार नहीं। तब आनंद समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने संकल्प लेता है। वह चाहता है कि मनुष्य अपने जीवन को आनंदमय बना सके। बौद्ध भिक्षु आनंद की भूमिका कुलदीप

श्रीवास्तव एवं आदित्य यादव, सामान्य भिक्षु-राज गौतम और आदित्य, प्रकृति-शुभ्रा वर्मा, प्रकृति की मां-रीता प्रकाश, दहीवाला-अभिषेक बसाक, चूड़ीवाला-कृष्णा सोनकर, ग्रामीण महिलाएं-वैष्णवी, दीपिका, जाग्रति,

आस्था, आर्या, कीर्ती एवं ग्रामीण पुरुषों की भूमिका जयप्रकाश, सतीश, गोविंदा, यतीश, विशाल, कृष्णा तथा विशेश्वरनाथ ने निभाई। गीत संवाद-पुष्पा बनर्जी, शुभ्रा वर्मा, वस्त्र विंयास-अभिषेक बसाक, अल्का अस्थाना, नृत्य संयोजन-वर्षा राय एवं  वैष्णवी सेठ, प्रकाश प्रबंध-देवेन्द्र वर्मा तथा मंच सज्जा-कृष्णा गुप्ता ने की।

रंगविदूषक की लोकप्रियता आज पूरे देश में

प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी ने पद्मश्री बंसी कौल की रंगयात्रा के दूसरे कड़ी में कहा कि पद्मश्री स्व. बंसी कौल से हमारी दूसरी मुलाकात पूना के रंगोत्सव में हुई। जहां उनके खुले में साक्षात्कार में जाना कि कैसे एनएसडी से रंग-शिक्षा पाने के बाद वहीं प्रोफेसरी से जीवन की शुरुआत। ऐसे कई पदों को पाने और छोडऩे की नियति ही उनकी रंगयात्रा के पड़ाव बने। फिर 1984 में अपने रंग समूह रंगविदूषक से अपने ढंग के काम की शुरुआत की। अपने खास तरह की शैली को लेकर रंगविदूषक की लोकप्रियता आज पूरे भारत व अन्य देशों में भी है। नाट्य समारोह में डा. दीपक मधोक, अध्यक्ष नीरज अग्रवाल, संगठन मंत्री दीपक शर्मा, सचिव सुमित श्रीवास्तव, संयोजक वीना सहाय, रामजी बाली, सौरभ श्रीवास्तव, नीरज अग्रवाल, अक्षत प्रताप सिंह थे।


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