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वाराणसी में दीपोत्‍सव के मौके पर चहका त्योहार का बाजार, सुबह से ही बाजारों में चहल-पहल

वाराणसी में दीपोत्सव पर्व के मौके पर शहर से लेकर गांव तक के बाजारों में सुबह से ही चहल-पहल रही। सुबह से ही दीया मोमबत्ती तिल तीसी सरसों का तेल लाई-चूड़ा मिठाई व सजावटी सामानों की खरीदारी हो रही।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 04 Nov 2021 11:36 AM (IST)Updated: Thu, 04 Nov 2021 11:50 AM (IST)
वाराणसी में दीपोत्‍सव के मौके पर चहका त्योहार का बाजार, सुबह से ही बाजारों में चहल-पहल
वाराणसी में दीपोत्‍सव के मौके पर चहका त्योहार का बाजार

जागरण संवाददाता, वाराणसी। दीपोत्सव पर्व पर शहर से लेकर गांव तक के बाजारों में सुबह से ही चहल-पहल रही। सुबह से ही दीया, मोमबत्ती, तिल, तीसी, सरसों का तेल, लाई-चूड़ा, मिठाई व सजावटी सामानों की खरीदारी हो रही।

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120 रुपये प्रति किलो बिका सूरनशास्त्रीय विधान के अनुसार दीपोत्सव पर्व पर सूरन की सब्जी खाने का विधान है। इस परंपरा के अनुसार लोगों ने देशी सूरन की खरीदारी की। शहर की सब्जी मंडियों में सूरन 60-80 रुपये प्रति किलो बिका तो वहीं फुटकर बाजारों में 100-120 रुपये प्रतिकिलो का भाव रहा।

गेंदा, गुलाब और कमल के फूल की जमकर हुई बिक्रीदीपोत्सव पर्व पर घर से लेकर प्रतिष्ठान तक के सजावाट में फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें ज्यादा मांग गेंदे के फूल-माला की होती है। बुधवार को मलदहिया और बांसफाटक फूल मंडी में बड़े साइज के गेंदे का माला गजरा की खूब खरीदारी हुई। मांग को देखते हुए व्यापारियों ने भाव भी तेज कर दिया था। मंगलवार को भाव 25-35 सौ रूपये प्रति सैकड़ा था तो बुधवार को यह बढ़कर पांच से छह हजार रुपये प्रति सैकड़े हो गया था। वहीं गुलाब का फूल पांच रुपये प्रति पीस तो कमल का फूल 25 रुपये प्रति पीस बिका। इसके अलावा घोड़ा पत्ता, कामिनी की पत्ती, अशोक की पत्ती की भी खूब मांग रही।

प्रदोष काल का महत्व

प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार दिन-रात के संयोग काल को ही प्रदोष काल कहते हैं। जहां दिन विष्णु का स्वरुप होता है वहीं रात माता लक्ष्मी की स्वरुपा हैं। दोनों के संयोग काल को प्रदोष काल कहा जाता है। इस प्रकार प्रदोष काल में दीपावली पूजन का श्रेष्ठ विधान है। प्रदोष काल में दीपप्रज्वलित करना उत्तम फलदायी माना जाता है।


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