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ODOP : सामुदायिक परंपरा को नया रंग दे रही ओडीओपी योजना, एक जनपद-एक उत्पाद से बदल रही तस्वीर

एक जनपद-एक उत्पाद योजना सरकार के छोटे प्रयासों के पंख लगने की कहानी है। इस कहानी में किरदार के लिए न तो किसी डिग्री की जरूरत है और न ही धनराशि बाधक है। प्रदेश के जिले में किसी न किसी उत्पाद को बनाने का मैटेरियल माहौल और हुनर मौजूद है।

By saurabh chakravartiEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 07:30 AM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 09:34 AM (IST)
ODOP : सामुदायिक परंपरा को नया रंग दे रही ओडीओपी योजना, एक जनपद-एक उत्पाद से बदल रही तस्वीर
मीरजापुर के कसरहट्टी में पीतल का बर्तन बनाते कारीगर।

मीरजापुर [सतीश रघुवंशी]। एक जनपद-एक उत्पाद योजना सरकार के छोटे-छोटे प्रयासों के पंख लगने की कहानी है। इस कहानी में किरदार के लिए न तो किसी डिग्री की जरूरत है और न ही धनराशि बाधक है। प्रदेश के हर जिले में किसी न किसी उत्पाद को बनाने का मैटेरियल, माहौल और हुनर मौजूद है। कालीन के बाद अब मीरजापुर का पीतल उद्योग भी जलवा बिखेरेगा। अब यह भी एक जनपद-एक उत्पाद योजना में शुमार हो चुका है।

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हर जिले में किसी न किसी एक उत्पाद को तैयार करने का ऐसा हुनर है कि उस उत्पाद की शोहरत प्रदेश ही नहीं, सुदूर देशों तक फैली हुई है। हालांकि कई उत्पादों को देश में बाजार नहीं मिल पाया, लेकिन योगी सरकार की एक जनपद-एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना से संजीवनी जरूर मिली है। इनमें से बहुत से उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया सामुदायिक परंपरा को नया रंग दे रही है जिन्हें आधुनिकीकरण व प्रसार के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है। ओडीओपी योजना के तहत प्रदेश सरकार का हर साल करीब 25 लाख लोगों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। यही नहीं, हर साल करीब 89 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निर्यात करने की तैयारी भी है। सरकार का मानना है कि ओडीओपी योजना से गांव से शहर की ओर पलायन रुकने के साथ ही बेरोजगारी भी कम होगी। उपायुक्त उद्योग विनोद कुमार चौधरी ने बताया कि ओडीओपी योजना के तहत वित्तीय वर्ष के अंतर्गत अब तक 81 आवेदन किए गए हैं। इसमें से आठ लोगों का आवेदन स्वीकृत हो चुका है और अभी तक तीन लोगों का बैंक से लोन स्वीकृत कराया जा चुका है।

स्थानीय कारीगरों को लाभ पहुंचाना है मकसद

प्रदेश में स्थानीय स्तर पर कई विशेष व्यवसाय समूह हैं। देश के कुल हस्तशिल्प निर्यात में प्रदेश का योगदान 44 प्रतिशत है। इसमें कालीन 39 प्रतिशत है। प्रदेश में हर जिले का कोई न कोई उत्पाद प्रसिद्ध है, लेकिन साधन व संसाधनों के अभाव में वह केवल एक या दो जिले तक ही सीमित रह जाते हैं। जबकि देश व विदेश के बाजारों तक इसकी मांग है और कई बिचौलिए कारीगरों से औने-पौने में उनके उत्पाद खरीदकर देश के बड़े शहरों व विदेश तक में इन उत्पादों को बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। प्रदेश सरकार का प्रयास है कि प्रदेश की इस प्रतिभा व कौशल को देश व विदेशों के बाजारों में पहुंचाकर स्थानीय कारीगरों को लाभ पहुंचाया जाए।

ब्रांडिंग व मार्केटिंग में भी मदद

प्रदेश सरकार केवल ऋण पर मार्जिन मनी अनुदान ही नहीं दे रही है, बल्कि ओपीडीपी योजना के तहत बनाए जाने वाले उत्पादों की ज्यादा से ज्यादा बिक्री के लिए इन उत्पादों की ब्रांडिंग व मार्केटिंग में भी सहयोग कर रही है। योजना के उत्पादों को आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए देश और प्रदेश में रिटेल दुकानों पर ओडीओपी कार्यक्रम ब्रांडिंग करने की योजना है।

बैंकों से ऋण लेना आसान हो जाएगा

एक जनपद-एक उत्पाद योजना के तहत कालीन के बाद अब पीतल व्यवसाय के लिए भी बैंकों से ऋण लेना आसान हो जाएगा। अभी तक व्यवसायियों को बैंकों से मिलने वाले ऋण का पाई-पाई चुकता करना पड़ता था। इससे छोटे-छोटे व्यवसायियों को भी अपना व्यवसाय बढ़ाने में मदद मिलेगी। प्रदेश सरकार की इस योजना का सर्वाधिक लाभ छोटे व्यवसायियों को मिलना तय माना जा रहा है।

- विनोद कुमार चौधरी, उपायुक्त , जिला उद्योग एवं उद्यम प्रोत्साहन केंद्र, मीरजापुर

जिले के परंपरागत व्यवसाय को पंख लगेगा

ओडीओपी योजना में पीतल बर्तन के शामिल किए जाने से जिले के परंपरागत व्यवसाय को पंख लगेगा। नया उद्योग लगाने के लिए प्राथमिकता से लोन मिलने के साथ ही ब्याज में भी दो फीसद छूट मिलेगी। साथ ही मार्केंङ्क्षटग के लिए सरकारी मंच उपलब्ध होगा और सरकार के आयोजनों में इंस्टाल भी लगाए के लिए स्थान मुफ्त में मिलेगा। उम्मीद है कि आर्थिक पैकेज भी उपलब्ध कराएगी।

- विश्वनाथ अग्रवाल, सदस्य व्यापारी कल्याण बोर्ड

कालीन निर्यातकों को काफी मदद मिली

कालीन व्यवसायी सिद्धनाथ सिंह ने बताया कि ओडीओपी योजना से कालीन निर्यातकों को काफी मदद मिली है। सरकार के प्रयास से विदेशों के साथ-साथ देश में भी अपने उत्पादों को आम लोगों तक पहुंचाना काफी आसान हो गया है। अभी तक कालीन व दरी का इस्तेमाल केवल आर्थिक रूप से समृद्ध लोग ही कर रहे थे, पर लागत में कमी आने पर मध्यम वर्ग भी कालीन व दरी के उपयोग के लिए आकर्षित होने लगा है।

- सिद्धनाथ सिंह, अध्यक्ष सीईपीसी


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