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ओबरा डैम में है सोनभद्र के सबसे बड़े जलमार्ग, यात्री वाहनों की कमी के कारण नाव से सफर है मजबूरी

पिछले पांच दशकों से इन जलमार्गों पर नाव से खतरनाक यात्राएं जारी हैं। आजादी के बाद पचास के दशक में जब औद्योगीकरण बढ़ाने की बात हुई तो सोनभद्र से गुजरने वाली रेणुका नदी सबसे मुफीद साबित हुई। इस नदी पर ही रिहंद और ओबरा डैम बनाए गए।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 08:30 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 08:30 AM (IST)
ओबरा डैम में है सोनभद्र के सबसे बड़े जलमार्ग, यात्री वाहनों की कमी के कारण नाव से सफर है मजबूरी
पिछले पांच दशकों से इन जलमार्गों पर नाव से खतरनाक यात्राएं जारी हैं।

सोनभद्र [संजय यादव ]। रेणुकापार के कई इलाके आज भी आवागमन के लिहाज से काफी कठिन हैं, खासकर कुछ जलमार्ग जनपद के सबसे बड़े जलमार्गों में एक हैं। पिछले पांच दशकों से इन जलमार्गों पर नाव से खतरनाक यात्राएं जारी हैं। आजादी के बाद पचास के दशक में जब औद्योगीकरण बढ़ाने की बात हुई तो सोनभद्र से गुजरने वाली रेणुका नदी सबसे मुफीद साबित हुई। इस नदी पर ही रिहंद और ओबरा डैम बनाए गए।

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रिहंद बांध के लगभग 12 से 18 किलोमीटर चौड़ा होने के कारण वहां रेणुका नदी के पारंपरिक जलमार्ग खत्म हो गए, लेकिन ओबरा डैम की अधिकतम चौड़ाई लगभग सवा किलोमीटर के पास रहने के कारण डैम में कई नये जलमार्ग पैदा हुए। वर्ष 1965 तक ओबरा बाजार का कोई अस्तित्व नहीं था, लेकिन 1970 आते-आते ओबरा पावर हाउस की तीन इकाइयों के चालू होने के साथ ओबरा बाजार स्थापित होने लगा। ओबरा डैम बनने के कारण रेणुकापार के दर्जनों टोले पूरी तरह तत्कालीन जिला मुख्यालय से कट गए। धीरे-धीरे ओबरा बाजार मुख्यधारा से कटे टोले तथा विस्थापित टोले के लिए नजदीकी और महत्वपूर्ण बाजार बन गया। सड़क मार्ग नहीं होने के कारण कई तटवर्ती सहित दर्जनों टोलों के लिए नाव से आवागमन एकमात्र साधन रह गया।

पिछले पांच दशक से आधा दर्जन से ज्यादा जलमार्ग बन गए, जिसपर आज भी रोजाना नाव आती-जाती हैं। हालांकि यह सफर काफी कठिनाइयों भरा रहता है। पिछले एक दशक के दौरान रेणुकापार के क्षेत्रों में तमाम सड़कों के बन जाने के कारण कुछ जलमार्गों पर अब नाव से आवागमन बंद हो गया। इनमें ओबरा गांव से अमस्र्रोता जलमार्ग पर कम ही नाव चलती हैं। यह जलमार्ग 10 किलोमीटर के करीब लंबा हुआ करता था। इतने लंबे मार्ग पर नाव चलाना बड़े मेहनत और साहस का काम होता था। वर्तमान में भी अभी पल्सो से ओबरा गांव जलमार्ग पर नाव से आवागमन होता है। यह जलमार्ग भी लगभग छह किलोमीटर लंबा है। सबसे ज्यादा नाव अभी भी ओबरा गांव से कररी और जुर्रा के लिए चलती हैं।

यह भी लगभग दो से तीन किलोमीटर लंबा है। डैम होने के कारण पानी की स्थिरता के साथ कई जगहों पर 120 फीट से ज्यादा की गहराई वाले हिस्सों से नाव गुजरती है । ओबरा गांव से कररी के बीच ओबरा डैम लगभग सवा किलोमीटर चौड़ा है। यह ओबरा डैम की सबसे ज्यादा चौड़ाई है। सड़क मार्ग से ओबरा से कररी और जुर्रा की दूरी 10 किलोमीटर से ज्यादा है। साथ ही कोई भी परिवहन सेवा नहीं होने के कारण ग्रामीणों को नाव से चलना मजबूरी है। इन जलमार्गों पर चलने वाली ज्यादातर नाव के जर्जर होने तथा आवश्यकता से ज्यादा सवारी के कारण खतरा हर समय बना रहता है। खासकर यहां पर चलने वाली हवाएं नाव के लिए दिक्कत भरी होती है। अक्सर ग्रामीण अनुकूल दिशा में हवाओं के चलने का इंतजार कई घंटों का हो जाता है। यहां पिछले कई दशकों के दौरान दर्जनों बार नाव के डूबने की खबरें आ चुकी है ।

ओबरा डैम से गुजरने वाले जलमार्ग 

ओबरा पंप हाउस से कररी -ढाई किलोमीटर 

ओबरा गांव से कररी-दो किलोमीटर 

ओबरा गांव से जुर्रा-3.6 किलोमीटर  

ओबरा गांव से भोड़ार- चार किलोमीटर

ओबरा गांव से पल्सो - छह किलोमीटर 

जुर्रा से चैना टोला-डेढ़ किलोमीटर 

ओबरा गांंव से अमस्र्रोता-10 किलोमीटर 


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