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अब विदेशों में भी होगी संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की शाखाएं, कुछ अप्रवासी भारतीय कर्मकांड व वेद का जगाए हुए अलख

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन प्राच्य विद्या का केंद्र हैं। अब विदेश में भी विश्वविद्यालय अपनी शाखाएं खोलने की तैयारी में हैं। कुछ अप्रवासी भारतीय कई देशों में कर्मकांड व वेद का अलख जगाए हुए हैं।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 09:10 AM (IST)
अब विदेशों में भी होगी संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की शाखाएं, कुछ अप्रवासी भारतीय कर्मकांड व वेद का जगाए हुए अलख
अब विदेशों में भी होगी संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की शाखाएं

जागरण संवाददाता, वाराणसी : संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार पूरे देश में हैं। विश्वविद्यालय अब विदेशों में भी शाखा खोलने की ओर कदम बढ़ा रही हैं। वेद, कर्मकांड व हिंदू अध्ययन के पठन-पाठन के लिए कुछ अप्रवासी भारतीय अमेरिका में विद्यालय खोलने के इच्छुक हैं। हालांकि इस संबंध अप्रवासी भारतीय अभी सीधे से संपर्क नहीं किए हैं। सीधे संपर्क करने पर विश्वविद्यालय अमेरिका में भी संबद्धता देने को तैयार है।

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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन प्राच्य विद्या का केंद्र हैं। इसकी स्थापना 1791 में राजकीय संस्कृत कालेज के रूप से हुई है। वर्तमान में पूरे देश में करीब 570 कालेज विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, सिक्किम, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर सहित अन्य राज्यों में विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेज संचालित हो रहे हैं। किसी समय विश्वविद्यालय संबद्ध नेपाल में भी विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेज थे। कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि विश्वविद्यालय को देश में ही नहीं विदेशों में संबद्धता देने का अधिकार प्राप्त है। वर्ष 2000 में संस्कृत बोर्ड का गठन होने के बाद सूबे के बाहर अब मध्यमा स्तर की मान्यता व संबद्धता देता है। उन्होंने बताया कि कुछ अप्रवासी भारतीय अमेरिका में कर्मकांड व वेद का अलख जगाए हुए हैं। वह वहां भी कर्मकांड व वेद का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। हालांकि किसी भी विश्वविद्यालय से संबद्ध न होने के कारण वह डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे पाते हैं।

इसके लिए कुछ अप्रवासी भारतीय नई दिल्ली स्थित ज्यूडिशरी सेवा के एपी शाही से संपर्क किया था ताकि वह इसे विद्यालय का रूप दे सके। इसे देखते हुए एपी शाही ने गत दिनों मोबाइल फोन के माध्यम से मुझसे संपर्क किया था। उन्होंने बताया कि अमेरिका के ओटावा के अलावा टोरंटो में अप्रवासी कर्मकांड, वेद व हिंदू अध्ययन नामक कोर्स शुरू करने की इच्छा जताई है। डिग्री व डिप्लोमा की मान्यता के लिए विश्वविद्यालय संबद्धता भी लेने का निर्णय लिया है। कुलपति ने बताया कि ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो कार्यपरिषद के माध्यम से कोई निर्णय लिया जाएगा। कहा कि अमेरिका या किसी अन्य देश में विद्यालयों को संबद्धता जारी करने के लिए विश्वविद्यालय स्वतंत्र है।


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