Move to Jagran APP

वाराणसी में नहीं बनी बिजली, प्लांट की मशीनें हो गईं कचरा, तीन वर्ष पहले स्थापित हुए थे तीन प्लांट

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी के सांसद चुने जाने के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो यहां पर कई कंपनियां सीएसआर फंड से भरा बैग लेकर पहुंच गईं। कोई गंगा घाट की सफाई तो कोई सांसद आदर्श गांव जयापुर को मॉडल बनाने में लग गईं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 17 Nov 2021 11:22 AM (IST)Updated: Wed, 17 Nov 2021 11:22 AM (IST)
वाराणसी में नहीं बनी बिजली, प्लांट की मशीनें हो गईं कचरा, तीन वर्ष पहले स्थापित हुए थे तीन प्लांट
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो यहां पर कई कंपनियां सीएसआर फंड से भरा बैग लेकर पहुंच गईं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। नगर में कचरे से बिजली बनाने के लिए तीन वर्ष पूर्व तीन प्लांट स्थापित किए गए थे। इससे बिजली तो बनी नहीं, उल्टे प्लांट की मशीनें ही वर्तमान में कचरा के समान हो गईं। पूरे मामले में प्रथम दृष्टया लापरवाही ही सामने आ रही है लेकिन तकनीकी विशेषज्ञों से जांच कराई जाए तो इसकी तय में सीएसआर फंड के करोड़ों रुपये की छिपी धांधली उजागर होगी। 

loksabha election banner

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी के सांसद चुने जाने के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो यहां पर कई कंपनियां सीएसआर फंड से भरा बैग लेकर पहुंच गईं। कोई गंगा घाट की सफाई तो कोई सांसद आदर्श गांव जयापुर को मॉडल बनाने में लग गईं। इसी क्रम में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड कंपनी ने नगर के भवनिया पोखरी, पहडिय़ा फल-सब्जी मंडी व आइडीएच कालोनी आदमपुर में तीन प्लांट स्थापित किया, जिसमें कचरे से बिजली बनाने की योजना थी। तीनों प्लांट निर्माण में साढ़े चार करोड़ खर्च हुए। पहला प्लांट भवनिया पोखरी 29 दिसंबर 2016 तो पहडिय़ा मंडी व आइडीएच कालोनी का प्लांट अगस्त 2017 में उद्घाटित हुआ।

शर्तों के मुताबिक नगर निगम को सिर्फ जमीन उपलब्ध करानी थी जबकि आगामी तीन वर्ष तक इंडियन ऑयल कंपनी को प्लांट संचालित करना था। इंडियन ऑयल ने खुद की निगरानी में संचालन की जिम्मेदारी ओआरएसपीएल (आर्गेनिक री-साइकलिंग सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड) संस्था को जिनकी एवज में दो लाख रुपये प्रति माह भुगतान किया गया। प्रत्येक प्लांट की बिजली उत्पादन क्षमता पांच टन आर्गेनिक कचरे से 750 यूनिट की थी। इसके लिए नगर निगम ने 10 टन कचरा देने का भरोसा दिया जिसे पृथक कर पांच टन आर्गेनिक कचरा निकाल लेना था। 

नहीं हुई निगरानी, खूब हुई मनमानी : वहीं, इंडियन आयल कंपनी ने सीएसआर फंड खर्च करने के बाद निगरानी नहीं की। संचालन कर रही संस्था ने भी खानापूर्ति ही की। नगर निगम की ओर से भी सख्ती नहीं हुई। परिणाम, आइडीएच कालोनी के प्लांट की मशीनें अब तक गरजी ही नहीं जबकि भवनिया पोखरी व पहडिय़ा मंडी का प्लांट दिखावे के लिए बीच-बीच में चलाया गया। 

जलानी थी लाइट, बनाना था खाद : उत्पादित बिजली के प्रबंधन के तहत 380 केवी बिजली प्लांट संचालन में उपयोग करना था जबकि शेष बिजली का उपयोग स्ट्रीट लाइट के लिए आपूर्ति करनी थी। इसके तहत भवनिया पोखरी प्लांट की बिजली से जलकल कार्यालय परिसर, आइडीएच कालोनी के प्लांट से स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र परिसर व पहडिय़ा मंडी प्लांट से मंडी परिसर की स्ट्रीट लाइट रोशन होनी थी। 

इतने रुपये की बर्बादी 

-4.50 करोड़ रुपये प्लांट निर्माण इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड कंपनी ने किए खर्च 

-12 लाख रुपये एक प्लांट संचालन के लिए प्रति वर्ष दिए गए ओआरएसपीएल संस्था को

-2.58 करोड़ रुपये तीन वर्ष में तीन प्लांट के संचालन के लिए ओआरएसपीएल संस्था को दिए गए 

-7.08 करोड़ रुपये कचरा प्लांट से बिजली बनाने में इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड कंपनी ने किए खर्च 

यह होता फायदा 

-05 लाख रुपये प्रति वर्ष नगर निगम को खाद खरीद में बचता 

-36 लाख रुपये प्रति वर्ष जलकल, मंडी समिति व स्वास्थ्य विभाग की बिजली के मद में होती बचत


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.