जौनपुर में बेटे को दी मां के मौत की खबर, वाराणसी के डीआरडीओ अस्पताल पहुंचने पर मिली जीवित
सुबह 5.06 बजे हेल्प डेस्क से फोन आया कि आपकी माता की डेथ हो गई है। यहां आकर डेथ सर्टिफिकेट ले लें और बाडी रिसीव करें लें। बाद में हेल्प डेस्क के दूसरे कर्मचारी ने आकर बताया कि आपकी माता जी ठीक हैं उनका इलाज चल रहा है।
वाराणसी मुहम्मद रईस । अलसुबह एक बेटे को यह सूचना दी गई कि उसकी बीमार अब इस दुनिया में नहीं रहीं। गमजदा बेटे ने किसी तरह खुद को संभाला और परिवार को ढांढस बंधाया। रिश्तेदारों को भी सूचित करना पड़ा। भारी मन से दाह संस्कार के लिए जौनपुर से 90 किलोमीटर की दूरी तय कर वह अपनी मां का पार्थिव शरीर लेने डीआरडीओ के अस्थाई हास्पिटल पहुंचा। मगर यह क्या। उसे इंजतार करने के लिए कहा गया। थोड़ी देर बाद बताया गया कि उसकी मां ठीक हैं। हेल्पडेस्क कर्मियों के रवैये से वह हक्का-बक्का रह गया। एक गलत सूचना पर एक बेटे, एक परिवार और उसके जानने वालों को मानसिक यातना से गुजरना पड़ा, वो भी हेल्प डेस्क कर्मियों की लापरवाही से, जिन पर तीमारदारों तक मरीज का हाल बताने का जिम्मा है।
बीएचयू के एम्फीथिएटर ग्राउंड पर बने पंडित राजन मिश्र अस्थाई कोविड हास्पिटल के इलाज से तो तीमारदार संतुष्ट हैं, लेकिन हेल्प डेस्क के काम-काज को लेकर शुरू से सवाल उठते रहें हैं। जौनपुर निवासी केके दुबे ने अपनी 75 वर्षीय मां प्रेमा देवी को तीन दिन पहले हास्पिटल में भर्ती कराया। केके दुबे ने बताया शनिवार की सुबह वे घर पर थे। सुबह 5.06 बजे हेल्प डेस्क से फोन आया कि आपकी माता की डेथ हो गई है। यहां आकर डेथ सर्टिफिकेट ले लें और बाडी रिसीव करें लें। इतना सुनते ही उन पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। वे भागे-भागे अस्थाई हास्पिटल पहुंचे। यहां बाडी के लिए इंतजार करने को कहा गया।
बाद में हेल्प डेस्क के दूसरे कर्मचारी ने आकर बताया कि आपकी माता जी ठीक हैं, उनका इलाज चल रहा है। इतना सुनते ही उन्होंने राहत की सांस ली। उनके मन में हास्पिटल के इलाज को लेकर कोई शिकायत नहीं है, लेकिन सूचना देने वालों के गैरजिम्मेदार रवैये से वे दुखी हैं। वहीं शनिवार की शाम से लेकर रविवार की दोपहर तक वे अपनी मां का हाल जानने के लिए बेचैन रहे, लेकिन कोई सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई।
केके दुबे जैसे अन्य तीमारदार भी रविवार को कड़क धूप में अपनों का हाल जानने के लिए भटकते रहे, लेकिन न तो हेल्प डेस्क ने कोई सूचना उपलब्ध कराई और न ही किसी अन्य जिम्मेदार ने इनकी परेशानियों की सुध ली। इतना ही नहीं दोपहर में 12.30 बजे से सवा एक बजे तक हेल्प डेस्क काउंटर कर्मचारियों से खाली था। तीमारदार कभी हेल्प डेस्क तो कभी रेड जोन एरिया की दौड़ लगाकर जानकारी के लिए भटकते रहे। इस बीच हास्पिटल के भीतर से मरीजों के स्वास्थ्य की अपडेट रिपोर्ट लेकर एक कर्मचारी भी पहुंचा, लेकिन वहां किसी को न पाकर लौट गया। बाद में मामला संज्ञान में आने के बाद प्रशासनिक नोडल एवं वीडीए उपाध्यक्ष ईशा दुहन स्वयं मौके पर पहुंचीं और कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित की।
दो मरीज के तीमारदारों की सूची में एक ही नंबर दर्ज था
दो मरीज के तीमारदारों की सूची में एक ही नंबर दर्ज था। इस वजह से जौनपुर निवासी तीमारदार को दिक्कत हुई। बाद में गलती सुधारते हुए हेल्प डेस्क के कर्मचारियों को तीमारदारों की सूची उनके रेफर पेपर से मैच कराकर अपडेट करने का निर्देश दिया गया। दोपहर बाद तीमारदारों को उनके मरीजों के बारे में जानकारी मिलने लगी। वहीं अब सेना के डाक्टर भी बीच-बीच में आकर मरीजों का हाल उनके परिजनों को बता रहे हैं।
- ईशा दुहन, प्रशानिक नोडल-अस्थाई कोविड हास्पिटल।
तीमारदारों की पीड़ा
मेरा बेटा मितेश सिंह बेड नंबर 84 परहै। उसे 14 मई की रात 10 बजे यहां भर्ती कराया गया था। उसका क्या हाल है, यहां कोई बताने वाला ही नहीं है।
- उर्मिला सिंह, बाबतपुर।
मेरी मां प्रेमा देवी 75 नंबर बेड पर हैं। पहले तो मां के बारे में हेल्प डेस्क से गलत जानकारी दी गई। वहीं शनिवार से अब तक उनके स्वास्थ्य की जानकारी ही नहीं दे रहे।
-केके दुबे, जौनपुर
अपने भाई चंद्रशेखर को 15 मई की सुबह 10 बजे मैंने यहां भर्ती कराया। वो 138 नंबर बेड पर है। भर्ती होने के बाद से उसकी कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है।
- समर सिंह, बक्सर
मेरे पिता सूबेदार पद से सेवानिवृत्त हैं। 13 मई की सुबह उन्हें यहां भर्ती कराया गया। उनका इलाज तो चल रहा है, लेकिन उनके स्वास्थ्य के बारे में 15 मई से किसी प्रकार की सूचना नहीं है।
- दीपक राणा, फुलवरिया