Move to Jagran APP

अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने ईजाद की है नई प्रजाति, सूखा में भी बेहतर उपज

जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति भी अब नाराज होती जा रही है। यही कारण है कि किसानों को कभी सूखा तो कभी बाढ़ की आफत झेलनी पड़ रही है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 09:31 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 10:05 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने ईजाद की है नई प्रजाति, सूखा में भी बेहतर उपज
अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने ईजाद की है नई प्रजाति, सूखा में भी बेहतर उपज

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति भी अब नाराज होती जा रही है। यही कारण है कि किसानों को कभी सूखा तो कभी बाढ़ की आफत झेलनी पड़ रही है। खास कर अब सूखा का प्रभाव अधिक हो रहा है, जिससे धान की खेती मुश्किल होती जा रही है। इसको ध्यान में रखते हुए ईरी (अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान) ने 'डीआरआर -44' धान की नई प्रजाति ईजाद की है। जो कम पानी भी बेहतर उपज देगी। इसको वाराणसी स्थित ईरी के सार्क (साउथ एशिया रीजनल सेंटर) द्वारा जून से किसानों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। इसकी सारी तैयारी पूरी कर ली गई है।

loksabha election banner

ईरी के इस सेंटर का उद्घाटन 29 दिसंबर 2018 को किया पीएम ने किया था। उत्तर प्रदेश का यह एकमात्र केंद्र है, जो ईरी की तरह से कृषि मंत्रालय के सहयोग से संचालित किया जा रहा है। सेंटर के निदेशक डा. अरविंद कुमार ने बताया कि ईरी फीलिपींस की ओर से बाढ़ एवं सूखा को लेकर धान की कुछ नई प्रजाति ईजाद की गई है। डीआरआर-44 (डायरेक्टेट आफ राइस रिसर्च) का सफल प्रशिक्षण के बाद नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कटक से जारी भी कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि यह जून में बाजार में आ जाएगा। साथ ही केंद्र की ओर से नई प्रजाति वितरित की जाएगी। इसके अलावा जून से ही यहां पर किसानों, विद्यार्थियों की ट्रेनिंग के साथ ही शोध कार्य भी शुरू हो जाएगा। 

सामान्य धान की उपज 5 से 6 टन : डा. कुमार ने बताया कि टीआरआर- 44 के साथ ही स्वर्णा सब-1, बीना धान-11 भी सूखा के लिए बना है। इसके अलावा सीआर धान-801 बाढ़ के लिए बना है। बताया कि सामान्य धान की उपज प्रति हेक्टेयर 5 से 6 टन होती है। हालांकि जब सूखा होता है सामान्य धान बर्बाद हो जाते हैं। हालांकि नई प्रजाति हर स्थिति से लडऩे के लिए बनी है। अगर सूखा होता भी है तो टीआरआर 44 का उत्पादन ढाई से तीन टन तक हो जाएगा। 

केंद्र में आधुनिक मशीनें : शोध कार्य करने के लिए केंद्र में तमाम आधुनिक मशीनें स्टॉल की जा रही हैं। इनसे धान की कुटाई से पहले व बाद के पोषक तत्व की स्थिति पता चल जाएगी। साथ ही डा. कुमार ने बताया कि शुगर के मरीजों के लिए चावल की नई प्रजाति पर कार्य चल रहा है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.