काशी से नई दिल्ली तक इस पटरी पर 'टी-18' नहीं दावे दौड़ेंगे 180 किमी. की गति से
वाराणसी में अगर रेलवे बोर्ड, जोनल मुख्यालय और मंडल मुख्यालयों से आ रही जानकारी की मानें तो जनवरी तक बनारस से टी-18 का दिल्ली तक दौड़ना तय है।
वाराणसी [देवव्रत त्रिवेदी] । अगर रेलवे बोर्ड, जोनल मुख्यालय और मंडल मुख्यालयों से आ रही जानकारी की मानें तो जनवरी तक बनारस से टी-18 का दिल्ली तक दौड़ना तय है। लेकिन क्या वाकई ये ट्रेन 180 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ पाएगी। टी-18 प्रयागराज से दिल्ली तो वाया कानपुर 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जा सकती है लेकिन बनारस से प्रयागराज वाया जंघई अभी तेज रफ्तार के लिए तैयार नहीं दिख रहा है। यह रेल खंड विद्युतीकृत तो है लेकिन कुछ हिस्सों में सिंगल लाइन है। प्रयागराज से फाफामऊ, जंघई होकर बनारस आने में यह रूट कई हिस्सों में सिंगल है। अफसरों की मानें तो फिलहाल इस रूट पर 110 किमी प्रति घंटा से अधिक ट्रेन का चलना मुमकिन नहीं लग रहा है।
एम10 स्लीपर और बैलास्ट कुशन देते हैं रफ्तार : किसी भी ट्रेन के स्पीड में चलने के लिए पटरियों की बनावट सबसे अहम होती है। पटरियों की बनावट दो किस्म की होती है एम10 स्लीपर और एम7 स्लीपर। एम 10 स्लीपर ट्रैक में करीब 1800 से 2000 स्लीपर का प्रयोग होता है और किनारों में डेड़ फीट गिट्टी की कुशनिंग रफ्तार देती है। वहीं एम 7 में 1300 स्लीपर का इस्तेमाल कर पटरी का निर्माण किया जाता है। जो बहुत ज्यादा रफ्तार झेलने में सक्षम नहीं होते। बनारस से प्रयागराज का सफर 180 नहीं बल्कि 150 किमी प्रति घंटे से तय करना मुश्किल और असुरक्षित है। रेल विभाग इन बातों का ध्यान रख कर ही टी-18 की रफ्तार का निर्धारण करेगा। रफ्तार बढ़ने से झटके के साथ ही ट्रेन के डीरेल होने का खतरा बना रहता है।- सुनील कुमार बाजपेयी, तकनीकी विशेषज्ञ, सेवानिवृत्त रेल अधिकारी ।