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प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व, नहाय खाय संग आज सूर्य षष्ठी पर्व का श्रीगणेश

प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व डाला छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। मूलत यह चार दिवसीय व्रत नियम-संयम का पर्व है।

By Edited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 02:10 AM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 08:15 AM (IST)
प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व, नहाय खाय संग आज सूर्य षष्ठी पर्व का श्रीगणेश
प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व, नहाय खाय संग आज सूर्य षष्ठी पर्व का श्रीगणेश

वाराणसी [प्रमोद यादव]। प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना का महापर्व डाला छठ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। मूलत: यह चार दिवसीय व्रत नियम-संयम का पर्व है। व्रत का उपक्रम कार्तिक शुक्ल चतुर्थी 31 अक्टूबर को नहाय खाय से शुरू होकर सप्तमी यानी तीन नवंबर तक चलेगा। इस व्रत पर्व में स्वच्छता व पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

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पहले दिन यानी चतुर्थी तिथि में 31 अक्टूबर को नहा-खाकर (नहाय खाय) संयम भोजन से पर्व का आरंभ होगा। घर की साफ सफाई व स्नानादि कर तामसिक भोजन लहसुन-प्याज आदि का त्याग कर दिन में एक बार अरवा भात (चावल) व सेंधा नमक युक्त लौकी की सब्जी का भोजन कर जमीन पर शयन करना चाहिए।

दूसरे दिन संझवत यानी पंचमी तिथि (एक नवंबर) में दिन भर उपवास कर शाम को गुड़ व अरवा चावल से बनी बखीर या लौकी की खिचड़ी खाई जाती है। तीसरे दिन व्रत का मुख्य दिन डाला छठ (दो नवंबर) पर निराहार रह कर बास की सूप-डालियों में पूजन सामग्री रख कर किसी नदी-तालाब, पोखरा-बावली या जल स्थान के किनारे दूध-जल से अस्ताचल सूर्य (सूर्यास्त 5.32 बजे) को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। तिथि विशेष पर रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। इस दौरान दीप जलाकर गीत व कथा से भगवान सूर्य की महिमा का बखान किया जाता है। चौथे दिन सुबह अरुणोदय वेला में उदीयमान सूर्य (सूर्योदय 6.29 बजे) को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। प्रसाद वितरण कर इससे ही पारन भी किया जाएगा। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सूर्य षष्ठी तिथि एक नवंबर को भोर में 4.07 बजे लग रही है जो दो नवंबर को भोर में 4.21 बजे तक रहेगी।

पूजन सामग्री : व्रत की पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार के फल-मिष्ठान, नारियल, ऋतु फल, ईख, कनेर का लाल फूल, ईख, लाल वस्त्र, गुलाल, धूप-दीप आदि का विशेष महत्व है। तपस्यापरक व्रत : सूर्य षष्ठी व्रत वस्तुत: अत्यंत ही कठिन व तपस्यापरक माना गया है। शास्त्रीय मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से स्त्रिया पति-पुत्र व धन ऐश्वर्य से संपन्न होती है। इस दिन गंगा स्नान, जप आदि का विशेष महत्व है। सूर्य पूजन व गंगा स्नान ही इस व्रत का मुख्य है। संतान की प्राप्ति, दीर्घायु व आरोग्य प्राप्ति के लिए यह व्रत युगों से चला आ रहा है। हमारे यहा सनातन धर्म में सूर्य षष्ठी पर्व मूलत: सूर्य आराधना का महापर्व है। इसमें अस्ताचल व उदयगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने की परंपरा के पीछे सबसे बड़ा कारण भगवान भास्कर की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां ऊषा व प्रत्यूषा हैं। छठ पर्व में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की आराधना होती है। वर्ष भर सूर्य आराधना के कई पर्व होते हैं लेकिन डाला छठ ही ऐसा पर्व होता है जिसमें सूर्य की शक्तियों संग उनकी आराधना होती है। सूर्योपासना वैदिक काल से सूर्योपासना की परंपरा सनातन धर्म में वैदिक काल से है। इसका वर्णन वेदों-पुराणों में भी है। देखा जाए तो यह धार्मिक आस्था का पर्व ऋतु संधि काल में आता है। चूंकि सूर्य ब्रह्मांड में ऊर्जा के सबसे बड़े केंद्र हैं। इन्हीं से पूरा ब्रह्मांड प्रकाशित है। इनके बिना जीवन पशु-पक्षी, जीव जंतु पेड़ पौधों की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती। इसीलिए सनातन धर्म में प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष देव स्वरूप में इनका पूजन प्रारंभ हुआ। षष्ठी का द्वापर से आरंभ इसका आरंभ महाभारत काल द्वापर में सर्वप्रथम कुंती ने सूर्य की आराधना कर किया था। सूर्य देव के आशीर्वाद से कुंती को कर्ण प्राप्त हुए थे और कर्ण ने भी सूर्य आराधना की। इनके आशीर्वाद से ही वह परम योद्धा बने।

ज्योतिषीय कारण : कार्तिक मास में सूर्य आराधना का ज्योतिषीय कारण यह भी है कि इस मास में सूर्यदेव का अपनी परम नीच राशि तुला पर संचरण रहता है। ज्योतिष शास्त्र में पंचम भाव संतान का भाव माना जाता है जहा पर काल पुरुष की पाचवीं राशि सिंह राशि का आधिपत्य होता है जिसके स्वामी ग्रह भगवान सूर्य को माना जाता है। संतान बाधा होने पर कुंडली में कहीं न कहीं ग्रह राज सूर्य पीड़ित या कमजोर होता है। इसीलिए ज्योतिष शास्त्र में संतान प्राप्ति के लिए सूर्य की आराधना विशेष बताई गई है। इसमें सूर्य को अ‌र्घ्य, व्रत-पूजन, वंदन, हरिवंश पुराण का श्रवण आदि का महत्व बताया गया है। इसलिए वर्ष पर्यत सूर्योपासना के लिए कई पर्व हैं। सभी संतान प्राप्ति के लिए होते हैं।


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