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काशी में कथक सम्राट बिरजू महाराज का अस्थि कलश दर्शन को उमड़ा संगीत समाज

बिरजू महाराज को नमन करने बनारस का समूचा संगीत समाज उमड़ पड़ा। संगीत प्रेमियों व बिरजू महाराज के मुरीदों ने भी भारी मन से पुष्पांजलि अर्पित की। इस दौरान उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान किया। उनसे जुड़े संस्मरण भी साझा किए।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:36 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:36 AM (IST)
काशी में कथक सम्राट बिरजू महाराज का अस्थि कलश दर्शन को उमड़ा संगीत समाज
बिरजू महाराज को श्रद्धांजलि देने बनारस का समूचा संगीत समाज उमड़ पड़ा।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। कथक सम्राट पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज का अस्थि कलश शनिवास सुबह सिगरा के कस्तूरबा नगर स्थित नटराज संगीत अकादमी परिसर में दर्शनार्थ रखा गया। इसके लिए बनारस का समूचा संगीत समाज उमड़ पड़ा। संगीत प्रेमियों व बिरजू महाराज के मुरीदों ने भी भारी मन से पुष्पांजलि अर्पित की। इस दौरान उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान किया। उनसे जुड़े संस्मरण भी साझा किए।

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पं. बिरजू महाराज का अस्थि कलश शुक्रवार देर रात बनारस लाया गया था। पंडित जी के ज्येष्ठ पुत्र पं. जयकिशन महाराज समेत परिवारीजन और शिष्यगण देर रात इसे लेकर सिगरा स्थित नटराज संगीत अकादमी आ गए थे। अस्थि कलश सुबह नौ बजे दर्शनार्थ रखा गया। सुबह दस बजे अस्थि कलश सज्जित खुले वाहन पर रख कर यात्रा निकाली जाएगी। अस्सी घाट पर वैदिक रीति से पूजन विधान किए जाएंगे। इसके बाद उनकी अंतिम इच्छानुसार गंगा की मध्य धारा में विसर्जन किया जाएगा।

पंडित जी ने कहा था-मुझे मेरे जन्म स्थान और काशी भी ले जाना : कथक सम्राट का अस्थि कलश शुक्रवार को दिन में दिल्ली से लखनऊ उनके पैतृक आवास कालका बिंदादीन ड्योढ़ी लाया गया था। ड्योढ़ी पर अस्थि कलश के अंतिम दर्शन में शहर भर से संगीत प्रेमी उमड़े थे। इसके बाद अस्थियों को गोमती में विसर्जित किया गया था। पं. बिरजू महाराज का 17 जनवरी को हृदयाघात से दिल्ली में निधन हो गया था। वहां ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था। उनके पुत्र पंडित दीपक महाराज के अनुसार उनके पिता पंडित बिरजू महाराज को कुछ दिन पूर्व डायलिसिस के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था, तभी अपनी छोटी बहू आरती से उन्होंने कहा था कि मुझे कुछ हो जाए, तो मेरी अस्थियां मेरे जन्म स्थान, मेरे घर जरूर ले जाना। उसके बाद गोमती और बनारस में मां गंगा के चरणों मे विसर्जित करना। उनकी उसी अंतिम इच्छानुसार दो अस्थि कलश लखनऊ लाए गए। इसमें एक गोमती में विसर्जित किया गया तो दूसरा बनारस लाया गया है।

बनारस से गहरा प्रेम : वास्तव में पं. बिरजू महाराज को जितना लखनऊ से प्रेम था, उतना ही संगीत के शहर बनारस से। यहां उनकी ससुराल और समधियान दोनों ही है। उनका अक्सर ही बनारस आना होता था। यहां विभिन्न कार्यक्रमों में प्रस्तुति के साथ उन्होंने नटराज संगीत अकादमी में प्रशिक्षण भी दिया।


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