सियासत गर्म : मुलायम के बाद असमंजस में आजमगढ़ लोकसभा, संशय में विरासत
संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ का तेवर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो हमेशा विरोधी रहा है। विपक्ष के प्रत्याशियों को यहां के लोगों ने सिर आंखों पर बिठाया।
वाराणसी [शक्ति शरण पंत]। संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ का तेवर कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो हमेशा विरोधी रहा है। विपक्ष के प्रत्याशियों को यहा के लोगों ने सिर आखों पर बिठाया। विपरीत परिस्थितियों में भी यहा से सपा मुखिया मुलायम सिंह को जनता ने सांसद चुना लेकिन अबकी असमंजस की स्थिति बन गई है क्योंकि खुद नेताजी ने यहा से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। खुद मुलायम सिंह द्वारा यहा से चुनाव लड़ने के पीछे भी बड़ा कारण रहा है। इस सीट पर आजादी के बाद से कभी भगवा नहीं लहरा।
यहां तक कि राम लहर में भी भाजपा सफलता से दूर रही लेकिन वर्ष 2008 के उपचुनाव के बाद परिस्थितिया अचानक बदलने लगीं और भगवा विजय की ओर बढ़ने लगा। हालाकि उस समय भी भाजपा को विजय नहीं मिली और वह दूसरे पायदान पर रही। वर्ष 2009 के आम चुनाव में जब पूर्व सासद रमाकात यादव को सपा और बसपा से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा का दामन थामा और पहली बार इस सीट पर भगवा लहर गया। सपा के लिए यह परिणाम चिंता का कारण बना ही था कि वर्ष 2014 में मोदी लहर ने चिंता और बढ़ा दी। तब कार्यकर्ताओं की माग और भाजपा का जनाधार बढ़ते देख सपा मुखिया ने अंतिम समय में खुद इस सीट से लड़ने का फैसला लिया और रमाकात को हराकर जीत हासिल की।
अब इस बार उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है। ऐसे में सपा-बसपा गठबंधन की ओर से यहा के सियासी समीकरणों पर चर्चा शुरू हो गई है। वहीं भाजपा की ओर से पूर्व सासद बाहुबली रमाकात यादव के नाम की चर्चा है। लोगों का कहना है कि पिछली बार तो मुलायम के होने की वजह से कोई असमंजस नहीं था लेकिन इस बार सोचना पड़ रहा है और अभी तो यह देखना है कि कौन-कौन उम्मीदवार है। अखिलेश भी उतर सकते हैं मैदान में : मुलायम सिंह के इंकार के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव यहा से चुनाव लड़ सकते हैं। हालाकि, अभी तक उन्होंने सहमति नहीं दी है और न ही किसी के नाम की घोषणा ही हुई है लेकिन सपा जिलाध्यक्ष हवलदार यादव की मानें तो सपा आजमगढ़ सीट नहीं छोड़ेगी। पिछली बार नेताजी के लिए अपनी दावेदारी छोड़ने वाले जिलाध्यक्ष का कहना है कि फिलहाल अभी खुद उन्हीं का नाम चल रहा है लेकिन अंतिम समय में राष्ट्रीय अध्यक्ष जो फैसला लेंगे उसे ही कार्यकर्ता स्वीकार करेंगे।
पहली बार रमाकात ने फहराया भगवा : कभी मुलायम सिंह के खास रहे रमाकात यादव ने टिकट न मिलने पर बसपा का भी दामन थामा तो कभी दोनों पार्टियों से निराशा के बाद भाजपा से टिकट हासिल कर लिया और बगैर किसी लहर के सासद बन गए। पिछले कुछ वषरें के चुनाव परिणाम बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में यहा पार्टी नहीं, बल्कि रमाकात की चली।