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शादी में मां ही बन गईं पुराेहित, संस्कृत के श्लोक का वाचन कर बेटे की पूरी करायी शादी

सामाजिक परंपराओं को तोड़ना किसी वर्ग विशेष यानी पंडित के प्रतिनिधित्व का नकारना इनका मकसद नहीं रहा बल्कि एक संकल्प था अपने बच्चे की शादी स्वयं कराने की।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 01:59 PM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 01:59 PM (IST)
शादी में मां ही बन गईं पुराेहित, संस्कृत के श्लोक का वाचन कर बेटे की पूरी करायी शादी
शादी में मां ही बन गईं पुराेहित, संस्कृत के श्लोक का वाचन कर बेटे की पूरी करायी शादी

वाराणसी [विकास ओझा]। महिलाएं मंगलगीत गुनगुना रही थीं। शादी के मंडप में वर व कन्या दोनों का आगमन हो चुका था। भगवान भोले की धरती काशी पर धरती-अंबर व अग्नि सब साक्षी बनकर वर वधु को आशीष देने व संस्कारों के शुभारंभ की प्रतिक्षा में थे। इसी बीच 51 वर्षीय महिला शीला यादव मंडप में आसन ग्रहण करती हैं। आंख बदंकर सबसे पहले वह भगवान को हाथ जोड़ प्रार्थना करती हैं फिर पाेथी खोलकर संस्कृत के श्लोकों से देवगण को आह्वान कर शादी के संस्कारों की शुरूआत करती हैं।

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शादी में आए दूर दराज के घराती-बराती दोनों के लिए यह किसी सपने सरीखे था पर लड़की वंदना के पिता के चेहरे का भाव शून्य था क्याेंकि वह पहले से जान रहे थे कि क्या होने जा रहा है। पुरोहित बनी महिला कोई सामान्य नहीं बल्कि वर ऋषभ की मां व सामाजिक न्याय के प्रणेता रहे पूर्व मंत्री स्व. चंद्रजीत यादव की बहू हैं। सामाजिक परंपराओं को तोड़ना, किसी वर्ग विशेष यानी पंडित के प्रतिनिधित्व का नकारना, इनका मकसद नहीं रहा। बल्कि एक संकल्प था अपने बच्चे की शादी स्वयं कराने की।

वह चाहती थी कि देवों की वाणी संस्कृत आशीष के ताैर अपने बच्चे की शादी में मेरे मुंह से निकले। उन्होंने इसके लिए बहुत तैयारी की थी। विद्वतजनों से मशविरा किया। नेट का सहारा लिया। इतना ही नहीं इस नए कार्य के लिए कन्या पक्ष के पिता से भी अनुमति ली। उन्होंने मां की सिफारिश को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि अपने पक्ष के पुराहित की जिम्मेदारी उन्हें सौंपते हुए शादी के संस्कारों को दोनों ओर से पूरा कराने को प्रार्थना भी कीं। बनारस के होटल में बने मंडप में यह शादी लगभग 45 मिनट में पूरी हुई। पुराहित मां के ‘ऊं यशसा माद्यावापृथिवी, यशसेन्द्रा बृहस्पती। यशो भगश्च मा विदद्, यशो मा प्रतिपद्यताम्।’ उद्धृत श्लोक के बाद कन्या वर को और फिर वर कन्या को माला पहनाते हैं। साथ ही ईश्वर को साक्षी मानकर यह भावना करते हैं कि वह देव शक्तियों और सत्पुरुषों के आशीर्वाद से वे परस्पर एक दूसरे के गले का हार बनकर रहेंगे।

पुराेहित मां केंद्रीय मंत्री की बहू व अंग्रेजी शिक्षक भी : पुराहित मां सामाजिक न्यायवादी, सामाजिक न्याय के प्रणेता केंद्रीय पूर्व मंत्री स्व0 चन्दजीत यादव की रिश्ते में बहू लगती हैं। ग्राम श्रीकांतपुर तहसील लालगंज, आजमगढ़ की रहने वाली यह मां यानी शिला यादव वाराणसी गर्ल्र्स डिग्री कालेज में अंग्रेजी की शिक्षक हैं। पति राम मिलन यादव (बिजनेश मैन) हैं।

लड़का साफ्टवेयर इंजीनियर तो बहू भी दक्ष : वर व बहू दोनों दक्ष। लड़का ऋषम यादव (27 वर्षीय) अाईटी करने के बाद साफ्टवेयर इंजीनियर है। इस वक्त गुडगांव में एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत है। वहीं लड़की यानी दुल्हन वंदना यादव बीएड व टेट कर शादी से पूर्व सुधाकर महिला कालेज में अध्यापन कार्य से जुड़ी रहीं। हालांकि अब वह यहां कार्य करना बंद कर चुकी हैं। जौनपुर निवासी वंदना के पिता नंदलाल क्वींस कालेज, वाराणसी में गणित शिक्षक हैं।

न्यू इंडिया की यह संकल्पना : सामाजिक न्याय एवं बाल भवन केन्द्र के निदेशक रामजनम यादव कहते हैं कि यह पहली शादी है। जिसको पूर्वांचल की धरती पर एक मां करा रही हैं। पूर्व मंत्री स्व. चंद्रजीत यादव की यह सोच थी। वह सामाजिक परंपराओं में विश्वास तो करते थे पर उसे बोझ नहीं मानते थे। न्यू इंडिया की यही संकल्पना है, जो उनकी बहू ने कर दिखाया है। यह सोच महिला के दृढ़ इच्छा शक्ति व आधी आबादी के सशक्तीकरण की दिशा में बहुत बड़ा संदेश है। सामाजिक न्याय आन्दोलन के अध्यक्ष रामकुमार यादव, डिप्टी सीएमओ डा. राकेश यादव, इंजीनियर अनिल यादव, पूर्व महाप्रधान राकेश यादव इसको बड़े परिर्वतन की शुरूआत बताते हैं।


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