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गंगा घाटी में पित्त की थैली के कैंसर की सर्वाधिक समस्या, बी-कैटनीन जीन का अधिक म्यूटेशन अहम कारक

गंगा घाटी में पित्त की थैली के कैंसर की सर्वाधिक समस्या बी-कैटनीन जीन का अधिक म्यूटेशन इसके अहम कारक है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 06:05 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2020 05:24 PM (IST)
गंगा घाटी में पित्त की थैली के कैंसर की सर्वाधिक समस्या, बी-कैटनीन जीन का अधिक म्यूटेशन अहम कारक
गंगा घाटी में पित्त की थैली के कैंसर की सर्वाधिक समस्या, बी-कैटनीन जीन का अधिक म्यूटेशन अहम कारक

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। लिवर और छोटी आंत के बीच पुल का काम करने वाला पित्ताशय (पित्त की थैली) का ट्यूमर कब कैंसर में बदल जाए, इसका पता देर से लगता है। क्योंकि इस कैंसर का कोई विशेष लक्षण नहीं होता। पित्ताशय संकुचन विधि से लिवर स्रावित पित्त को संग्रह कर छोटी आंत को पित्त की आपूर्ति करता है जिससे भोज्य पदार्थों से मुक्त वसा का पाचन होता है। आइएमएस-बीएचयू के आंकोलॉजिस्ट प्रो. मनोज पांडेय व प्रो. वी के शुक्ल के नेतृत्व में हुआ शोध बताता है कि पित्त थैली का संकुचन रुक जाना इस कैंसर का प्रमुख कारण है। संकुचन न होने से पित्त की थैली में गैर-जरूरी तत्व इकट्ठा हो जाते हैं, जिससे पथरी बनती है। यह बी (बीटा)- कैटनीन जीन के म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) को तेज कर देती है, जिससे डब्ल्यूएनटी पाथ वे अनियमित हो जाती है और कैंसर कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन शुरू हो जाता है। डब्ल्यूएनटी पाथवे बी-कैटनीन म्यूटेशन को रेगुलेट करता है। यह शोध प्रख्यात एल्सवेयर पब्लिकेशन के साइंस डायरेक्ट जर्नल और कई अंतरराष्ट्रीय शोध पेपर में प्रकाशित हो चुका है।

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दक्षिण भारत में नगण्य यह समस्या

शोध के मुताबिक अधिक म्यूटेशन की समस्या गंगा के मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा है जबकि दक्षिण भारत के लोगों में पित्ताशय कैंसर का मामला नगण्य है। इसके कारण में हमारा खानपान, जीवनशैली, मोटापा और रासायनिक प्रदूषण है। इस क्षेत्र में खाई जाने वाली प्रचलित सब्जियों में शिमला मिर्च, लाल मिर्च के अलावा मीट और आवश्यकता से ज्यादा चाय का सेवन इसके सबसे अहम कारक हैं।

महिलाओं में पांच गुना ज्यादा

शोध के मुताबिक पित्ताशय कैंसर की समस्या महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा पाई गई। इसके पीछे महिलाओं में मौजूद पॉजिट्रोन को जिम्मेदार कारक बताया गया है। इसके स्राव से पित्त की थैली के संकुचन प्रक्रिया रुक जाती है और जिससे कैंसर की पथरी बनने लगती है।

टारगेटेड थेरेपी से इलाज

अभी तक इस कैंसर के शुरुआती चरण में ही पित्त की थैली को निकाल दिया जाता है, वहीं इसका संक्रमण दूसरे अंगों तक पहुंच जाता है तो फिर कीमोथेरेपी दी जाती है। कीमोथेरेपी का नुकसान यह है कि इससे कोशिकाओं में होने वाले सभी विभाजन रुक जाते हैं जिससे कैंसर की कोशिकाओं के साथ अच्छी कोशिकाएं भी मर जाती हैं। अब इस शोध के मुताबिक टारगेटेड थेरेपी पर काम होगा। इस विधि से केवल कैंसर की कोशिकाएं ही मरेगी। इस विधि पर अन्य देशों में भी ट्रायल हो रहे हैं।

ये चीजें बचाएंगी इस कैंसर से

शोध के मुताबिक मूली, शकरकंद, फल इत्यादि का सेवन पित्ताशय कैंसर रोकने में मददगार हैं, वहीं सामान्य भोजन (रोटी, दाल-चावल) व हरी सब्जियों के सेवन से भी पित्ताशय कैंसर से बचा जा सकता है। इसके अलावा लाइफ स्टाइल और मोटापा को नियंत्रित कर इससे बचाव हो सकता है। शोध में प्रो. रुचि दीक्षित, डा. सुनील कुमार त्रिपाठी, डा. अमितधर द्विवेदी शामिल थे।


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