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मिर्जा लाल मुंह वाला था तो बंदर मगर इंसानों से भी खतरनाक, काट रहा उम्रकैद की सजा

इंसानों में शराब पीने की लत आम है लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि बंदर भी शराब व मांसाहार का प्रेमी है। है तो वह बंदर लेकिन इंसानों से भी ज्यादा खतरनाक।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 06:40 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jun 2020 12:40 AM (IST)
मिर्जा लाल मुंह वाला था तो बंदर मगर इंसानों से भी खतरनाक, काट रहा उम्रकैद की सजा
मिर्जा लाल मुंह वाला था तो बंदर मगर इंसानों से भी खतरनाक, काट रहा उम्रकैद की सजा

मीरजापुर, जेएनएन। इंसानों में शराब पीने की लत आम है लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि बंदर भी शराब व मांसाहार का प्रेमी है। है तो वह बंदर लेकिन इंसानों से भी ज्यादा खतरनाक। इसकी हरकत साबित करती है कि बंदर बनने में चूक हो गई। कानपुर चिडिय़ाघर में ढाई सौ से अधिक लोगों को काट चुका मिर्जा लाल मुंह वाला वह बंदर तीन साल से तन्हाई की सजा काट रहा है। इस खुंखार बंदर के प्रहार से एक शख्स की मौत भी हो गई थी। यह बंदर साढ़े तीन साल से कैद है।

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कानपुर प्राणी उद्यान (चिडिय़ाघर) के चिकित्सालय परिसर पर पिजड़े में बंद मिरजा लाल मुंह वाले बंदर को एक जनवरी 2017 में मीरजापुर से पकड़कर कानपुर ले जाया गया था। मीरजापुर के कटरा कोतवाली क्षेत्र में यह बंदर आतंक का पर्याय बन चुका था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बंदर ने ढाई सौ से अधिक लोगों पर हमला कर उन्हें काटा था। बंदर के बढ़ते आतंक के कारण तत्कालीन एसपी कलानिधि नैथानी ने उसे पकडऩे के लिए वन विभाग और चिडिय़ा घर कानपुर की टीम लगाई थी। दो दिनों की मशक्कत के बाद अंतत: कानपुर चिडिय़ाघर की टीम ने एक जनवरी 2017 को बंदर को पकड़ा। इसे पकडऩे के लिए करीब पैंतीस हजार के डॉट इंजेक्शन का प्रयोग किया गया था। टीम लीडर वीके टार्जन ने पकड़े गए बंदर को कानपुर चिडिय़ाघर को सौंपा और वहीं पर उसे मिरजा लाल मुंह वाला बंदर कहा जाने लगा। सहायक निदेशक आरके ङ्क्षसह ने बताया कि साढ़े तीन साल तक इस बंदर को एकांतवास में रखा गया लेकिन इसके व्यवहार में किसी भी तरह की नरमी या सुधार देखने को नहीं मिली। इस कारण इसे ताउम्र पिजड़े में ही रखने का फैसला किया गया। इसके स्वभाव के बारे में एक साल पहले ही शासन को पत्र लिखा जा चुका है। बताया जाता है कि एक तांत्रिक ने इस बंदर को पाला था। तांत्रिक इसे मदिरा पीलाने के साथ ही मांसाहार कराता था। तांत्रिक की मौत के बाद यह बंदर आजाद हो गया और तांडव मचाना शुरू कर दिया। वहीं प्रभागीय वनाधिकारी मीरजापुर राकेश चौधरी का कहना है कि उन्हें उत्पाती बंदर के विषय में कोई जानकारी नहीं है। तत्कालीन अधिकारी ही इसके संबंध में बता पाएंगे।

सर्जरी ही था बंदर के काटने का इलाज

दिसंबर 2016 की बात है, जब कटरा कोतवाली क्षेत्र के लोग एक बंदर के आतंक से दहशत में थे। पंद्रह दिनों के अंदर लगभग एक दर्जन बच्चों पर इस बंदर ने हमला किया था। खास बात यह थी कि बंदर ने जितने बच्चों को काटा था उनके सिर्फ गाल नोचे थे। उनमें अधिकांश लड़कियां थीं। बच्चों के चेहरे पर मिले घाव का इलाज प्लास्टिक सर्जरी ही हुआ था। बताया जाता है कि इस आतंकी बंदर के गले में किसी ने काला कपड़ा बांध दिया था, तभी से यह बंदर उत्पात मचाना शुरू कर दिया।


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