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मिलिए जौनपुर के इस शख्‍स से, हाथ कटने के बाद भी दृढ़ इच्छाशक्ति से खुद को बनाया कुशल कारीगर

सपने उन्हीं के सच होते हैं जिनके सपनों में जान होती है। ऐसा ही कर दिखाया जौनपुर के लक्ष्मीकांत मौर्य ने। उन्‍होंने विद्युत उपकरण का मिस्त्री बनकर कुशल कारीगर के रूप में पहचान बनाया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 02:45 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jun 2020 02:45 PM (IST)
मिलिए जौनपुर के इस शख्‍स से, हाथ कटने के बाद भी दृढ़ इच्छाशक्ति से खुद को बनाया कुशल कारीगर
मिलिए जौनपुर के इस शख्‍स से, हाथ कटने के बाद भी दृढ़ इच्छाशक्ति से खुद को बनाया कुशल कारीगर

जौनपुर, जेएनएन। सपने उन्हीं के सच होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। यह पंक्तियां शाहपुर गांव के लक्ष्मीकांत मौर्य पर सटीक बैठती हैं, जो पांच वर्ष की अल्पायु में ही मशीन के पट्टे में फंसकर एक हाथ गंवाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारे। अपने मेहनत व हुनर के बल पर विद्युत उपकरण का मिस्त्री बनकर कुशल कारीगर के रूप में पहचान बनाया। जो कार्य दो हाथ वालों को करने में दिक्कत होती है, वह कार्य वह एक हाथ से बखूबी कर दिखाया। हालांकि यहां तक का सफर किसी चुनौती से कम नहीं रहा।

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मशीन के पट्टे में फंसकर कट गया हाथ

किसान बैजनाथ के तीन पुत्रों में मझले लक्ष्मीकांत जब पांच साल के थे तभी उनका बायां हाथ मशीन के पट्टे में फंसकर कट गया। डाक्टरों ने किसी तरह उनकी जान बचाई। इसे दृढ़ इच्छाशक्ति ही कहा जाएगा कि एक हाथ गंवाने के बाद भी इंटर तक पढ़ाई को पूरा किया। मेधावी होते हुए घर की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने की वजह से बीच में पढ़ाई छोडऩी पड़ी। इसके बाद लक्ष्मीकांत ने पिता के खेती-किसानी में सहयोग के साथ मशीनरी उपकरणों को बनाने का हुनर भी सीखने लगे। कुछ महीनों बाद वह अपने काम मे पारंगत हो गए। विद्युत वायङ्क्षरग के अलावा स्टार्टर, पैनल, सबमर्सिबल पंप, स्टेबलाइजर, विद्युत मोटर, विद्युत बोर्ड बनाने का गुण में निपुण हो गए।

किसी से सहायत नहीं मांगी, अपनी मेहनत के बल पर बढ़े आगे

हाथ के स्थान पर उन्होंने अपने दांत को सहारा बनाया, लेकिन किसी से सहायत नहीं मांगी। चार वर्ष पहले पत्नी की मृत्यु से वह कमजोर जरूर हुए, लेकिन अपने मनोबल को नहीं टूटने दिया। आज वह अपने सहित माता-पिता सहित परिवार के पोषण की जिम्मेदारी का स्वयं निर्वहन कर रहे हैं। लक्ष्मीकांत खेती-बारी भी अपना योगदान देते हैं। अपनी मेहनत के बल पर जो हुनर सीखा वही आज परिवार के लिए रोजी-रोटी का साधन बन गया है। लक्ष्मीकांत कहते हैं कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। उन्होंने कहा कि अपनी विवशता को उन्होंने कभी किसी के सामने जाहिर नहीं होने दिया, बल्कि हालात का डटकर मुकाबला किया।


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