प्रवासी भारतीय दिवस : काशी का लाल सात समुंदर पार फ्रांस में कर रहा कमाल
कुछ विरले ही हैं जिनके हिस्से कामयाबी का पैमाना आता है। ऐसे ही हैं काशी के नितिन जिन्होंने बचपन में ही विदेश में अपनी मेधा का लोहा मनवाने का सपना संजो लिया था।
वाराणसी, जेएनएन। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा संसाधन विहीन है, जिन्हें मुकाम पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता है। राह की दुश्वरियां कइयों के हौसले डिगा देती हैं। कुछ विरले ही हैं जिनके हिस्से कामयाबी का पैमाना आता है। ऐसी ही शख्सियत के मालिक हैं पुरातन नगरी काशी के नितिन श्रीवास्तव, जिन्होंने बचपन में ही विदेश में अपनी मेधा का लोहा मनवाने का सपना संजो लिया था। पिता रमेश कुमार श्रीवास्तव स्टेट बैंक में मैनेजर थे, लिहाजा बुनियादी सुविधाओं की विशेष कमी नहीं थी। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल रहने वाले नितिन खेल-कूद में भी सक्रिय थे। चाहे वह क्रिकेट की बात हो या बास्केटबॉल या फिर वालीबॉल, हर खेल में निपुणता उन्होंने हासिल की। बावजूद इसके नितिन के दिल में सात समुंदर पार जाकर मुकाम बनाने की ख्वाहिश थी।
शुरूआती शिक्षा बनारस से हासिल करने के बाद बीसीए व एमसीए गाजियाबाद से किया। इसके बाद शुरू हुआ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का सफर। 2009 में नितिन ने नोएडा में एचसीएल टेक्नालॉजी से जुड़कर करियर का आगाज किया। वर्ष 2011 में दुबई जा बसे और फिर फ्रांस का सफर तय किया। फिलहाल वे एचसीएल कंपनी में पिछले दो साल से बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
बेरोजगारों को प्रशिक्षित करती है फ्रांस की सरकार : नितिन बताते हैं कि फ्रांस में रोजगार मांगने वालों का तीन चरण में साक्षात्कार लिया जाता है। तीनों ही बार असफल होने वाले युवा को सरकार निश्शुल्क प्रशिक्षण देती है, जिसके बाद एक बार फिर उन्हें अपने पैर पर खड़े होने का मौका मिलता है। यह प्रक्रिया अपने मुल्क में नहीं अपनाई जाती, यही वजह है कि भारत में जहां बेरोजगारी अधिक है, वहीं काम के सिलसिले में दूसरे देश में पलायन भी अधिक होता है।
अपने मुल्क में बसना चाहता है हर भारतीय : नितिन कहते हैं कि, 'हर भारतीय अपनी मातृभूमि में ही बसना चाहता है। मैं भी अपवाद नहीं हूं, बशर्ते सरकार बुनियादी सुविधाओं को और भी बेहतर करे। हमारे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पेंशन आदि के क्षेत्र में अभी भी बहुत सुधार की जरूरत है।
बच्चों को मिलती मुफ्त शिक्षा व चिकित्सा : नितिन कहते हैं कि, 'फ्रांस में मैं कर का भुगतान करता हूं। यहां मुझे अपनी बच्ची के लिए मुफ्त स्कूली शिक्षा व निश्शुल्क चिकित्सा उपलब्ध है। मेरी बच्ची फ्रांस में ही पैदा हुई थी, उस समय हॉस्पिटल में हमें अपने पास से कोई भुगतान नहीं करना पड़ा। स्वास्थ्य के क्षेत्र में ङ्क्षहदुस्तान में भी ऐसे ही प्रयास करने की जरूरत है।
लंबे अरसे बाद अपनों के बीच होगा लाडला : अपने मुल्क, अपनी नगरी, अपने लोगों से दूर होते हुए भी प्रवासी भारतीय अपनी धड़कन में सभी को महसूस करते हैं। दोस्तों संग बिताए पल, अपनों संग खट्टी-मीठी यादें सदा दामन थामे रहती हैं। ऐसे में यदि लंबे अरसे बाद लाडले की आने की खुशखबरी मिले तो घरवालों का खुशी से झूम उठना लाजमी है। कुछ ऐसा ही कुछ हाल है इन दिनों तुलसीपुर निवासी रमेश कुमार श्रीवास्तव व पूनम श्रीवास्तव का। हो भी क्यों न, आखिरकार घर का इकलौता चश्मो-चिराग दो साल बाद अपनों के बीच होगा। रमेश श्रीवास्तव कहते हैं कि, 'सरकार के इस आयोजन से बहुतों को खुशी मिली है। बहुत से बच्चे लंबे अरसे बाद अपने देश, अपनी मिट्टी, अपने परिवार के बीच होंगे। शादी करने के बाद वह फ्रांस चला गया। हम लोग तो वहां जाकर उससे मिल लेते हैं मगर वह बनारस के लोगों से अब मिल सकेगा। माता पूनम श्रीवास्तव कहती हैं कि, 'नितिन शुरू से ही शांत और सरल स्वभाव का था। पढ़ाई को लेकर हमेशा गंभीर रहता, जो उसकी कामयाबी का जरिया भी बना। उसे क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है। अक्सर अपने मित्रों के साथ वह खेलने के लिए निकल जाया करता था। 2003 में इंटर की पढ़ाई करने के बाद से लेकर आगे की पढ़ाई और उसके बाद फ्रांस तक का सफर तय करने के दौरान उसने भारतीय परंपरा का पूरी तरह अनुपालन किया। जीवनसंगिनी भी उसने बनारस से ही चुना, ताकि भारतीय जीवन शैली व गाहे-बगाहे यहां आना न भूले।
प्रवासी भारतीय का करेंगे सत्कार : नितिन के पिता रमेश श्रीवास्तव ने पीबीडी ऐप के जरिए प्रवासी भारतीय दिवस के दौरान आने वाले एक मेहमान के आतिथ्य का जिम्मा लिया है। आतिथ्य के लिए अपने घर पर आश्रय की व्यवस्था की है। महमूरगंज स्थित तुलसीपुर कालोनी में उनका खुद का मकान है, जिसमें प्रवासियों के लिए ठहरने की व्यवस्था की गई है। यहीं रमेश श्रीवास्तव मेहमानों का भारतीय परंपरानुसार सत्कार करेंगे।
अनोखी ठाट, बनारस के घाट : नितिन की पत्नी शिप्रा श्रीवास्तव हाल ही में फ्रांस से बनारस आयीं हैं। कहती हैं, 'एक विकसित देश से होकर जब लोग भारत आते हैं तो बेहतर बदलाव की अपेक्षा करते हैं। मगर बनारस के घाट और बनारस के कुटीर उद्योग की बात ही निराली है। मैंने जब फ्रांस के लोगों से बनारस के बारे में चर्चा की तभी से वे भी यहां आने को लेकर उत्साहित हैं। बहुत से लोग बनारस आ भी रहे हैं। यहां के घाटों पर हुए बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और अमूलचूल बदलाव को देखने के लिए मैं भी उत्सुक हूं। नितिन के आने के बाद अपने विदेशी मेहमानों संग हम बनारस की गली-मोहल्लों और घाट का लुत्फ जरूर लेंगे।