प्रतिभा की 'तालीम' के नेमत से संवर रहा वाराणसी के बच्चों का बचपन
प्रतिभा सिंह का कहना कि देश में बुनियादी शिक्षा की बुनियाद काफी कमजोर है। सरकारी विद्यालयों से लोगों का भरोसा उठ सा गया है।
उन मासूमों के हाथों में कटोरा था। भीख मांगना उनकी नियति बनी थी, लेकिन अब जिंदगी बदल गई है। नए सांचे में ढल रही है, बचपन को एक मकसद मिल चुका है, वे प्रतिभा की तालीम से भविष्य को सुंदर बनाने में जुटे हुए हैं। ऐसे करीब 80 बच्चे हैं, जिनकी जिंदगी शिक्षा की लौ से रोशन हो रही है। करीब 80 बच्चों की जिंदगी पढ़ा लिखाकर प्रतिभा सिंह बदलने में जुटी हुई हैं।
बकौल प्रतिभा, बच्चों को सड़कों पर भिक्षा मांगते देखती थी तो मन विचलित हो उठता था। सोचती थी कि बच्चों की तस्वीर और तकदीर कैसे बदली जा सकती है, इस उधेड़-बुन में मुझे एक दिन राह मिल ही गई वह राह थी- शिक्षा। भिक्षा मांगने वाले कुछ बच्चों को पढ़ने के लिए तैयार किया, पढ़ाने के लिए उन्हें घर बुलाया।
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उन्हें नहला कर साफ कपड़े पहनाकर उन्हें भरपेट खाना खिलाया, फिर उनके अंदर पढ़ाई के प्रति जुनून पैदा किया। ये बच्चे अब एबीसीडी भी सीख गए, इससे मेरा मनोबल और बढ़ गया। अब ऐसे बच्चों को अपने पास प्रतिदिन छह घंटे रखती हूं। उन्हें यूकेजी तक प्रशिक्षित करती हूं।
इस दौरान उन्हें अपने हाथ से बनाकर भरपेट पोषक नाश्ता बच्चों को खिलाती हूं। उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए किताब-कॉपी, ड्रेस दे दें, मैं मुहिम में सफल भी हूं। अब तक 80 बच्चे भिक्षावृत्ति से पूर्णत: मुक्त हो चुके हैं। पिछले छह सालों में ऐसे 37 बच्चों का दाखिला नगर के विभिन्न कान्वेंट स्कूलों में करा चुकी हैं। अब तो यह कारवां बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि अपनी क्षमता को देखते हुए मैं हर वर्ष 20 बच्चों को प्रशिक्षित करती हूं।
बाल भिक्षुक पुनर्वास केन्द्र बनाने की योजना
भिक्षा मांगने वाले बच्चों की जिंदगी संवारने को बाल भिक्षुक पुनर्वास केंद्र बनाने की योजना है, ताकि ऐसे बच्चे न सिर्फ अच्छी शिक्षा पा सकें। काउंसिलिंग के माध्यम से उनके परिवार के सदस्यों को भी जोड़कर उन्हें विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षित कर रोजगार उपलब्ध कराया जा सके।
उन्होंने नेवादा, सुंदरपुर स्थित आवास पर अपनी माताजी के नाम उर्मिला देवी मेमोरियल सोसाइटी नामक एक संस्था बनाई है। हालांकि संयुक्त परिवार में रहने के बावजूद अपनी बचत और पतिदेव के सहयोग के अलावा अन्य किसी से आर्थिक सहयोग नहीं ले रहीं हैं।
बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़ा नाता
प्रतिभा के नेक पहल को देखते हुए विभिन्न सामाजिक संगठनों के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें नारी शक्ति सम्मान देकर मनोबल बढ़ाने का कार्य किया। नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने उन्हें अपने संगठन बचपन बचाओ आंदोलन से भी जोड़ दिया है।
बुनियादी शिक्षा की बुनियाद कमजोर
प्रतिभा सिंह का कहना कि देश में बुनियादी शिक्षा की बुनियाद काफी कमजोर है। सरकारी विद्यालयों से लोगों का भरोसा उठ सा गया है। वहीं निजी स्कूल महंगे होने के कारण गरीब बच्चों से दूर है, जबकि देश में उच्च शिक्षा की स्थिति कुछ हद तक अभी ठीक है।
प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरत
शहर के विद्यालयों की शिक्षकों की उपलब्धता औसत ठीक है, प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है। प्रतिवर्ष बेलगाम होती फीस न सिर्फ औसत कमाई वाले घरों का बजट बिगाड़ दे रही है, ऐसे में शुल्क पर कमान रखनी होगी। स्कूलों की अपेक्षा सरकारी कॉलेज या विश्वविद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता औसत या औसत से बेहतर कही जा सकती है।
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