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एक रुपये की पर्ची, 100 रुपये किरायाः सर्दी-बुखार तक के लिए अस्पतालों में कतार, घंटों इंतजार

दशकों से ग्रामीण इलाकों में सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना तो की जाती रही, लेकिन इसमें दूरदर्शिता की कमी ही कहेंगे कि मरीजों की पहुंच का ख्याल न रहा।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 01:13 PM (IST)
एक रुपये की पर्ची, 100 रुपये किरायाः सर्दी-बुखार तक के लिए अस्पतालों में कतार, घंटों इंतजार

सरकारी स्तर पर भले ही एक रुपये में चिकित्सकीय परामर्श, जांच और इलाज के दावे किए जाएं लेकिन चिकित्सा इकाइयों में दूरी की गहरी खाई मरीजों का दर्द बढ़ा रही है। एक तरफ दूरी तो बेहतर इलाज की मजबूरी उसे शहर की ओर ले जा रही है। यह भागदौड़ उसका दर्द तो बढ़ाती ही है, समय के साथ ही जेब पर भी चपत लगाती है।

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दरअसल, दशकों से ग्रामीण इलाकों में सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना तो की जाती रही, लेकिन इसमें दूरदर्शिता की कमी ही कहेंगे कि मरीजों की पहुंच का ख्याल न रहा। इससे ज्यादातर इलाकों के मरीज गांव के बाहर कहीं ढूहे-पोखरे या निर्जन स्थान पर बने स्वास्थ्य केंद्रों की बजाय शहरों का रास्ता आसान पाते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों में जांच और सभी तरह की दवाओं की अनुपलब्धता भी शहर की ओर ले जाती है। रही बात सरकारी एंबुलेंसों की तो यह भी रेफरल सेंटर में तब्दील हो चुके प्राथमिक या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का लंबा चक्कर लगवाते, वही मुकाम दिखाती है।

दरअसल, दूरी के आंकड़ों पर गौर करें तो 1535 वर्ग किमी के इस जिले में गांव से लेकर शहर तक 22 वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक चिकित्सा इकाई आती है। यह दूरी गांवों में और भी बढ़ जाती है। मानक अनुसार एक लाख ग्रामीण आबादी पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए लेकिन इनकी संख्या सिर्फ आठ ही हैं। इनमें पैथालॉजी और रेडियोलॉजी की व्यवस्था न होने से इलाज की बात धरी रह जाती है। यह व्यवस्था उन्हें जांच आदि के लिए बाहर के केंद्रों या शहर का ही रास्ता दिखाती है।

इस हाल से बेबस मरीज जब शहर के बड़े अस्पतालों में जाता है तो कतार का दर्द पाता है। पंजीकरण कराने, डॉक्टर की ओपीडी में पहुंच जाने और दवा पाने के तीन चरणों में घंटों के इंतजार में सांसत हो जाती है। इसमें भी कहीं जांच या एक्सरे कराना पड़ा तो किराया दोगुना पड़ा। इसके लिए उसे दूसरे दिन आना होता है और फिर वहीं कतार-इंतजार के दर्द में मरीज दम तोड़ देता है।

गंभीर हुए तो भगवान ही सहारा
सरकारी अस्पतालों में सर्दी-खांसी या उससे आगे के दो चार रोगों को छोड़ दें तो उम्मीद की अंतिम किरण बीएचयू अस्पताल ही रह जाती है। वास्तव में आजादी के सात दशक बाद भी शहर के बड़े सरकारी अस्पतालों में कार्डियो, नेफ्रो, न्यूरो आदि विशेषज्ञता के विभाग नहीं खुल पाए। वहीं करोड़ों रुपये खर्च के बाद भी आइसीयू की व्यवस्था की जा सकी है। ऐसे में इसके लिए मरीज बीएचयू अस्पताल भेजे जाते हैं, जहां सीमित बेड होने के बाद जेब में रुपये हुए तो निजी अस्पताल, अन्यथा अपने हाल पर रोते बिलखते मरीज दम तोड़ जाते हैं। 

जांच न हुई हो गई कुआं-खाई

गांव के छोटे अस्पतालों में भले ही पैथ लैब और एक्सरे मशीनें लगी हों, लेकिन सीएमओ के अधीन इन इकाइयों में न रेडियोलॉजिस्ट हैं और न पैथालॉजिस्ट। ऐसे में इसके लिए शहर के अस्पताल की विवशतापूर्ण दौड़ ही आसान नजर आती है। शहर के अस्पतालों भले ही सभी तरह की जांच हो जाए लेकिन इंतजार की दोहरी घड़ियां दर्द बढ़ाती हैं। मरीज संख्या के सापेक्ष टेक्नीशियन न होने से रिपोर्ट के लिए दूसरे दिन आना होता है।

दवा उपलब्धता का आईना बन गईं बाहर की दुकानें

सरकारी अस्पतालों में सभी रोगों की दवा के दावे की सचाई बाहर की दुकानों पर खड़ी भीड़ बताती है। विभिन्न फर्मों से 327 दवाओं का रेट कांट्रैक्ट के बाद भी यह स्थिति है। कभी सभी रेंज की दवा न होने का हवाला तो डॉक्टर भी इनके असरकारी न होने की दुहाई देकर दुकानों पर भेजते हैं। इसके लिए ओपीडी तक में दुकानों के एजेंट खुलेआम दखल देते हैं।

कबाड़ की आड़ में सेहत से खिलवाड़

केंद्र सरकार की प्रतिस्पर्धात्मक योजना कायाकल्प के कारण शहर के अस्पतालों का रूप रंग भले बदल रहा हो, लेकिन गांवों की चिकित्सा इकाइयां बदहाल हैं। इसकी गवाही स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की निरीक्षण रिपोर्ट देती है जो सफाई के लिए चेतावनी के शब्दों से भरी होती है। इस मामले में गांव की चिकित्सा इकाइयां रोगियों के लिए बवाले जान से कम नहीं कही जा सकतीं। 

शहर के बड़े अस्पताल और बेड

- बीएचयू सरसुंदरलाल अस्पताल -1900

- बीएचयू ट्रामा सेंटर - 334

- शिवप्रसाद गुप्त मंडलीय अस्पताल- 286

- दीनदयाल उपाध्याय रा. अस्पताल- 125

- लालबहादुर शास्त्री रा. अस्पताल -153

- राजकीय महिला अस्पताल - 180

- ग्रामीण चिकित्सा इकाई - 264

बेड

- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (आठ)

- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (आठ)

- अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (23)

- स्वास्थ्य उपकेंद्र (306) 

शहरी चिकित्सा इकाइयां

- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (24)

- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (02)

- मंझोले अस्पताल (02)

- पोषण पुनर्वास केंद्र (01) 

ब्लड बैंक

- सरकारी - 03

- आइएमए - 01

- निजी - तीन 

प्राइवेट सेक्टर

- निजी चिकित्सा इकाई : 1000

- क्लीनिक : 1200

- पैथलैब : 500

- रेडियोलाजी केंद्र : 250


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