वाराणसी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर हो आईसीयू एंबुलेंस की व्यवस्था
वास्तव में इलाज एक टीम वर्क है, इसके लिए डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और कर्मचारियों की भरपूर उपलब्धता होनी चाहिए।
जन स्वास्थ्य सुरक्षा की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी तरह सरकार की होती है। इस उद्देश्य के तहत ही गांव से शहर तक छोटे-बड़े अस्पतालों की श्रृंखला स्थापित की गई। डॉक्टर तैनात किए गए और इलाज के लिए जरूरी सभी संसाधन उपलब्ध कराए गए।
इस दिशा में सरकार यथा संभव काम भी कर रही है, लेकिन इसके लिए योजना निर्माण जमीनी स्तर पर करने की जरूरत है। दरअसल, इसके केंद्र में डॉक्टर और मरीज होने चाहिए और उनकी पहुंच का ध्यान रखा जाना चाहिए। ध्यान देने की बात यह कि जब डॉक्टर सरकारी सेवा में आएगा तो अस्पताल क्यों नहीं जाएगा, और वह ओपीडी में होगा तो मरीज आएगा ही। ऐसे में दोनों की सुविधा का ख्याल रखना होगा, जो शहर के लेकर गांव तक के अस्पतालों में नहीं दिखता।
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कारण यह है कि सरकारी मशीनरी का पूरा जोर जमीन की उपलब्धता या प्रोजेक्ट पूरा कर देना भर होता है। इसका इम्पैक्ट या योजना-परियोजना के क्रियान्वयन संबंधित पहलू इसमें दरकिनार हो जाते हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि गांवों में स्वास्थ्य केंद्र बना दिए गए लेकिन उनमें शहर के बड़े अस्पतालों जैसी अंश मात्र सुविधाएं नहीं दी गईं।
वास्तव में इलाज एक टीम वर्क है, इसके लिए डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और कर्मचारियों की भरपूर उपलब्धता होनी चाहिए। नजीर के तौर पर शहर के बड़े अस्पतालों में सभी तरह की जांच करने को लैब लग गईं, लेकिन गांव के मरीज को भी 50 किलोमीटर से यहां आना होता है। ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में पैथलैब के कलेक्शन सेंटर खोल कर इस समस्या को दूर कर सकते हैं।
तकनीकी विकास के कारण रिपोर्ट भी ऑनलाइन भेजी जा सकती है। इससे मरीज को एक रुपये के इलाज के लिए न तो दो सौ रुपये किराये में खर्च करने होंगे और न ही पूरे दो दिन सांसत झेलनी होगी। डॉक्टरों-पैरामेडिकल स्टॉफ को सुदूर क्षेत्र में रोकने के लिए उसे तैनाती के साथ प्रोत्साहन के तौर पर कुछ अतिरिक्त भत्ते की व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसा न करने से ही पीएचसी- सीएचसी में तमाम पद खाली हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु यह भी कि नियोजन के स्तर पर शोध को बढ़ावा देना होगा। इसमें क्षेत्रवार अलग-अलग रोग-व्याधियों की बहुलता का अध्ययन करना होगा। इसके आधार पर समय-समय पर स्पेशल कैंप आयोजित कर तमाम रोगों का इलाज या ऑपरेशन किया जा सकता है। इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी कराकर मूलभूत सुविधाएं, संसाधन, गुणवत्ता और उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
इसके साथ ही प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर संसाधनों से लैस एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए ताकि गंभीरता के आधार पर तत्काल मरीज को बड़े अस्पताल पहुंचाया जा सके। ट्रामा केस बहुल इलाके में भी आईसीयू एंबुलेंस होनी चाहिए ताकि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति का तत्काल मौके पर ही इलाज शुरू कर उसकी जान बचाई जा सके।
एक बात और जो सरकारी अस्पतालों में उपलब्धता के दावे के बाद भी मरीजों को दवाएं न मिलने को लेकर अक्सर चर्चा में आती है। इसमें यदि मरीज को आरसी से इतर दवा लिखनी जरूरी ही हो तो उसे अस्पताल प्रबंधन स्थानीय कीमत कर उपलब्ध कराए। इस नियम का कड़ाई से पालन और ऑडिट भी होनी चाहिए।
- पीके तिवारी
(वरिष्ठ फिजिशियन और चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के पूर्व संयुक्त निदेशक)