वाराणसीः असमानता की खाई पाटेगी कम्युनिटी शिक्षा
जनपद में छात्र अनुपात के मानक में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त है, लेकिन प्रबंधन ठीक न होने के कारण किसी विद्यालय में एक शिक्षक तो किसी में आठ-आठ शिक्षक तैनात हैं।
एक बेहतर इंसान बेहतर राष्ट्र का निर्माण करता है और बेहतर इंसान के निर्माण की बुनियाद शिक्षा है। देश में शिक्षा निजी और सरकारी दो भागों में बंटी हुई है। दोनों प्रकार की शिक्षा में जबरदस्त खाई है। ऐसे में पहले इस खाई को खत्म करने की जरूरत है। इसके लिए निजी और सरकारी दोनों प्रकार की शिक्षा पद्धति समाप्त करना होगा। सामुदायिक (कम्युनिटी) व्यवस्था लागू करने की जरूरत है।
कम्युनिटी शिक्षा व्यवस्था का अर्थ उस शिक्षा व्यवस्था से है, जिसमें समुदाय का जुड़ाव है। शिक्षा व्यवस्था में समुदाय की भागीदारी से हम विद्यालयों के सिस्टम को दुरुस्त कर सकते हैं, शिक्षा व्यवस्था में समुदाय की भागीदारी होगी तो समुदाय की जवाबदेही भी मानी जाएगी। ऐसे में विद्यालयों में न केवल संसाधन बेहतर होंगे अपितु पठन-पाठन का स्तर में भी सुधार आएगा। ऑनरशिप होने से मूल्यपरक शिक्षा को भी बल मिलेगा।
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बुनियादी और माध्यमिक स्तर के निजी विद्यालयों को बढ़ाना देना उचित नहीं हैं। निजी विद्यालयों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। ऐसे में उनका ध्यान सिर्फ छात्र संख्या बढ़ाने पर होता है। उनका पूरा ध्यान विद्यालयों को आकर्षक और संसाधन उपलब्ध कराने पर होता है, ताकि अभिभावकों को आकर्षित किया जा सके, वहीं सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को छात्र संख्या से कोई मतलब नहीं रहता है। उन्हें यह पता होता है कि महीने की पहली तारीख को वेतन मिल ही जाना है। इस दोनों प्रकार की शिक्षा व्यवस्था में वैल्यू गौड़ होते जा रहे हैं।
नॉलेज, स्किल और वैल्यू
युवा पीढ़ी में नेतृत्व की क्षमता का विकास करना हायर एजुकेशन का काम है। नेतृत्व की क्षमता 'नॉलेज', 'स्किल' और 'वैल्यू' से विकसित की जा सकती है। हायर एजुकेशन का फोकस नॉलेज, स्किल और वैल्यू होना चाहिए। वर्तमान में हायर एजुकेशन की शिक्षा व्यवस्था में वैल्यू का जबर्दस्त अभाव है। रिसर्च से हॉयर एजुकेशन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बना सकते हैं।
पद रिक्त होने से गुणवत्ता प्रभावित
सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या अब ठीक हो गई है। जनपद में छात्र अनुपात के मानक में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त है, लेकिन प्रबंधन ठीक न होने के कारण किसी विद्यालय में एक शिक्षक तो किसी में आठ-आठ शिक्षक तैनात हैं। इसे ठीक करने की जरूरत है। माध्यमिक स्तर के राजकीय और अनुदानित विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का अभाव बना हुआ है। बड़ी संख्या में हर वर्ष शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
तय हो शुल्क का मानक
छात्रों के अनुपात में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में विद्यालयों की संख्या पर्याप्त है। नगर में तमाम ऐसे विद्यालय हैं, जिन्हें पर्याप्त बच्चे नहीं मिल रहे हैं। नगर के कई निजी विद्यालयों की फीस काफी अधिक है। जन सामान्य इन विद्यालयों में अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकता है।
समय के साथ अपडेट जरूरी
बदलते परिवेश में कंप्यूटर महत्वपूर्ण हो गया है। शिक्षण अधिगम के रूप में कंप्यूटर की अहम भूमिका हो गई है। ऐसे में शिक्षकों को कंप्यूटर सिखाना होगा, समय के साथ अपडेट करना होगा। ताकि कंप्यूटर और ई-पाठशालों की सुविधा बच्चों तक पहुंच सके।
प्रो. केपी पांडेय, पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ
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