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आखिरकार मीरजापुर के लाल की शहादत काम आई और पाकिस्‍तान के आतंक से बांग्‍लादेश मुक्‍त हो गया

बांग्‍लादेश को पाकिस्‍तानी फौज के आतंक से मुक्‍त कराने में भारतीय सेना के अदम्‍य साहस और शौर्य की गाथा सदियों तक अमर रहेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 03:17 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 05:19 PM (IST)
आखिरकार मीरजापुर के लाल की शहादत काम आई और पाकिस्‍तान के आतंक से बांग्‍लादेश मुक्‍त हो गया
आखिरकार मीरजापुर के लाल की शहादत काम आई और पाकिस्‍तान के आतंक से बांग्‍लादेश मुक्‍त हो गया

मीरजापुर [रणविजय सिंह]। बांग्‍लादेश को पाकिस्‍तानी फौज के आतंक से मुक्‍त कराने में भारतीय सेना के अदम्‍य साहस और शौर्य की गाथा सदियों तक अमर रहेगी। एक बार फ‍िर बांग्‍लादेश की मुक्ति का दिवस मनाने की तैयारियों के बीच उन अमर बलिदानियों को भी याद करने का मौका है जो लौटकर घर नहीं आए। मीरजापुर जिले के हलिया विकास खंड का बिलरा पटेहरा गांव के निवासी अमर शहीद केशरी सिंह को इस मौके पर पूरा गांव याद करता है। उनकी शहादत को नमन करते हुए लोग आज भी भावुक होकर उनकी बहादुरी और पड़ोसी मुल्‍क के लिए शहादत को लोगों ने लंबे समय से मन मस्तिष्‍क में अंकित कर रखा है।

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9 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश की मुक्ति के लिए पाकिस्तान के खिलाफ चल रहे युद्ध के दौरान पूरी बहादुरी से लड़ते हुए केशरी सिंह ने अपनी शहादत देकर मीरजापुर जनपद को गौरवान्वित कर दिया। बांग्लादेश के खागा इलाके में पाकिस्तानी सेना द्वारा कपट पूर्वक बिछाए गए बारूदी सुरंग में फंसकर उन्होंने राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनकी शहादत के लगभग 46 वर्ष बाद जिला प्रशासन द्वारा उनके पैतृक गांव बिलरा पटेहरा में उनकी प्रतिमा स्थापित कराई गई लेकिन प्रतिमा के ऊपर छतरी का निर्माण न कराए जाने का मलाल ग्रामीणों को आज भी सालता है। वर्ष 2017 में तत्कालीन जिलाधिकारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद अनुप्रिया पटेल के साथ छानबे विधायक राहुल प्रकाश कोल की उपस्थिति में शहीद के पैतृक गांव का नाम बदल कर शहीद केशरी सिंह के नाम पर करने की घोषणा की गई थी लेकिन 2 वर्ष बीत जाने के बाद भी गांव का नाम बदलने की कोई भी पत्रावली नहीं तैयार कराई गई जिससे ग्रामीण आहत भी महसूस करते हैं। गांव में शहीद केशरी सिंह के नाम पर इंटर कॉलेज की स्थापना करने की घोषणा की गई थी लेकिन वह भी मात्र फाइलों में ही सिमट कर रह गई है।

 

सेना में भर्ती का अनोखा संयोग रहा

शहीद केसरी सिंह की सेना में भर्ती होने का तरीका भी अनोखा ही था, उनके भांजे एवं पूर्व सैनिक परशुराम सिंह बताते हैं कि शहीद मामा केसरी सिंह मेरे ही सम वयस्क थे। लगभग 20 वर्ष की अवस्था में हम दोनों ने गांव में परिवार के भरण-पोषण के लिए आटा मिल स्थापित किया था। वर्ष 1966 में होली का पर्व करीब आ गया था। आटा चक्की में तकनीकी खराबी आ गई थी उसी को ठीक कराने हम दोनों मिर्जापुर गए हुए थे। कचहरी गंगा घाट पर स्नान करने के बाद हम दोनों ने सड़क पर सेना भर्ती के लिए आए हुए युवाओं को देखा। उन युवाओं के साथ हम दोनों भी फतहां में चल रहे भर्ती स्थल पर पहुंच गए। वहां पहुंचने का मुख्य उद्देश्य टाइमपास का था क्योंकि आटा चक्की को बनाकर मैकेनिक ने शाम पांच बजे देने का वादा किया था। सैन्य अधिकारियों के कहने पर हम दोनों ने भी शारीरिक दक्षता परीक्षा में प्रतिभाग किया। लगभग प्रत्येक इवेंट में हम दोनों ने शानदार प्रदर्शन किया जिसके आधार पर शाम चार बजे हम लोगों को सेना की ट्रेनिंग के लिए रेलवे का टिकट दे दिया गया एवं यह बताया गया की तुम दोनों का चयन सैनिक के रूप में हो गया है। मिर्जापुर में रह रहे परिजनों के द्वारा घर पर संदेश प्रेषित कराया गया। और वहीं से हम दोनों एक साथ सैन्य प्रशिक्षण के लिए चले गए।

लगभग पांच वर्ष तक सैनिक के रूप में सेवा देने के बाद केसरी सिंह में देश की रक्षा की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। 9 दिसंबर को जिस दिन वे शहीद हुए उसी दिन उनकी पत्नी ने उनके इकलौते पुत्र को जन्म भी दिया। मौके पर पहुंचे तत्कालीन जिलाधिकारी ने पुत्र का नामकरण रणजीत सिंह के रूप में किया। वर्ष 2014 में असाध्य बीमारी के कारण रणजीत सिंह का निधन हो गया। रणजीत सिंह की पत्नी योग्यता सिंह द्वारा पुत्र के रूप में अमन को जन्म दिया गया। अमन की उम्र अभी काफी छोटी है लेकिन माता योग्यता सिंह उसे सैन्य अधिकारी बनाने का ख्वाब पाले हुए हैं एवं अपने शहीद दादा के अधूरे सपने को पूरा कराने का प्रयास करती दिखाई दे रही है।

 

शहीद के परिजनों को नहीं मिली सुविधाएं

जिला प्रशासन एवं सेना द्वारा शहीद के परिजनों को तमाम प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराने का वायदा तो जरूर किया गया लेकिन धरातल पर तस्वीर कुछ और ही है। केसरी सिंह के शहादत के बाद कई बड़े सैन्य अधिकारी गांव में आए एवं बड़ा भरोसा परिवार वालों को दिलाया लेकिन समय के साथ भरोसा टूटता भी गया। 

ग्रामीणों की मांग

गांव के बाहर कहीं भी शहीद केशरी सिंह के नाम पर बोर्ड नहीं लगाया गया है। किसी सड़क का नामकरण भी शहीद के नाम पर नहीं किया गया है। शहीद की विधवा छोटी कुंवर ने बताया कि अथक प्रयास के बाद किसी तरह शहीद की प्रतिमा स्थापित कराई गई लेकिन उस पर भी छतरी नहीं लगाई गई। शहीद के नाम पर परिजन गांव में इंटर कॉलेज बनवाने का काम शुरू करा दिए हैं लेकिन किसी भी प्रकार की राजकीय सहायता न मिलने से उसका भी काम बाधित हो रहा है। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन एवं इंडियन आर्मी के उच्चाधिकारियों से इंटर कॉलेज के निर्माण में पूर्ण सहयोग की मांग किया है।


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