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मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के इंद्रपाल सिंह बत्रा के गौरैया के बसेरा की चर्चा की

इंद्रपाल सिंह बत्रा के जीवन की धारा 15 साल पहले की एक घटना ने बदल दी। अचानक एक दिन घर के सामने लगा पेड़ काट दिए जाने से गौरैया का ठौर छिना जाना दिल में घर कर गया। उसी दिन ठान लिया कि अपने घर को गौरैया का बसेरा बनाएंगे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 12:48 PM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 02:21 PM (IST)
मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के इंद्रपाल सिंह बत्रा के गौरैया के बसेरा की चर्चा की
घर में सौ से ज्‍यादा गौरैया अपने परिवार के साथ चहकती देखी मिल जाएगी।

वाराणसी, जेएनएन। हरियाली से दूर होते जा रहे बनारस के मध्य में एक कॉलोनी है श्रीनगर कालोनी। यहां के निवासियों ने कॉलोनी को हरा-भरा कर दिया है। कॉलोनी के लगभग हर मकान के आगे कोई न कोई पेड़ जरूर दिख जाएगा। यह सब श्रीनगर क्षेत्र विकास समिति की देन है। इसी कॉलोनी में रहते हैं इंद्रपाल सिंह बत्रा उर्फ पप्पू बत्रा। पप्पू के जीवन की धारा 15 साल पहले की एक घटना ने बदल दी। अचानक एक दिन घर के सामने लगा पेड़ काट दिए जाने से गौरैया का ठौर छिना जाना उनके दिल में घर कर गया। बस उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि वह अपने घर को गौरैया का बसेरा बनाएंगे। धीरे-धीरे समय बीतता गया लेकिन अब उनकी मेहनत ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। उनके घर में सौ से ज्‍यादा गौरैया अपने परिवार के साथ चहकती देखी मिल जाएगी। करोबार नौकर-चाकरों के भरोसे छोड़ गौरैया की देखभाल में ही पप्पू का पूरा दिन बीतता है। गौरैया को वे बच्‍चों की तरह पालते नजर आते हैं।

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प्रधानमंत्री ने रखी गोरैया के आशियाना की बात

रविवार को 'मन की बात' को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने मधुमक्‍खी पालन की अहमित का भी जिक्र किया तो गोरैया बचाने को लेकर भी बात की। उन्‍होंने कहा, 'अभी कुछ दिन पहले वर्ल्‍ड स्‍पैरो डे मनाया गया। स्‍पैरो यानी गौरैया । कहीं इसे चकली बोलते हैं, कहीं चिमनी बोलते हैं, कहीं घान चिरिका कहा जाता है। आज इसे बचाने के लिए हमें प्रयास करने पड़ रहे हैं। मेरे बनारस के एक साथी इंद्रपाल सिंह बत्रा जी ने ऐसा काम किया है जिसे मैं 'मन की बात' के श्रोताओं को जरूर बताना चाहता हूं। बत्रा जी ने अपने घर को ही गोरैया का आशियाना बना दिया है। दैनिक जागरण में आठ अक्‍टूबर 2017 को इंद्रपाल सिंह बत्रा के गोरैया प्रेमी खबरी छपी थी।

दाना-पानी तक का पूरा इंतजाम

घर का चबूतरा हो या आंगन अथवा मुंडेर इधर-उधर फुदकती गौरैया अब कम ही दिखती है। घरों के  आस-पास सुबह-सुबह गौरैया की चहचहाट सुनाई नहीं देती। वो फुदकती सी नन्ही सी जान के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। ऐसे में काशी के श्री नगर कॉलोनी में रहने वाले सरदार इंद्रपाल ने अपने घर को ही गौरैया और ऐसी ही चिड़ियों का घरौंदा तैयार कर लिया है। इस घरौंदे में ऐसी व्यवस्था है कि जितने भी जोड़े आ जाएं, सभी के रहने से लेकर दाना-पानी तक का पूरा इंतजाम है। अब तो इस  गौरैया के घरौंदे को देखने के लिए लोग दूर-दराज से आने लगे हैं।

गौरैया को अपने से दूर न होने देने के लिए पप्पू बत्रा ने सबसे पहले मकान के मेन गेट पर बैगनवेलिया और शमी के पौधे लगवाए। पेड़ जब अपनी ऊंचाइयों को छूने लगे तो दीवारों में दर्जनों छोटे गमलों को उल्‍टा प्‍लास्‍टर ऑफ पेरिस से चिपका घोंसला बनाने को जगह बनाई। वहां पुराने कटे-फटे कपड़े, कटी घास और रुई रख दी। कुछ ही दिन बीते गौरैया ने घोंसला बना रहना शुरु कर दिया। यहां रहने वाले सौ से ज्‍यादा जोड़ों के वंश बढ़ाने से गौरैया की संख्‍या इतनी ज्‍यादा कि सुबह के समय बाहर निकलने वाले इनके झुंड को देखने के लिए लोग टकटकी लगाए रहते हैं। इतना ही नहीं पास पड़ोस में भी इन गौरैया की चहचहाट सुनाई देती है। आस-पास के लोगों को भी इंतजार रहता है इस छोटी सी जान का कि वह कब आए और उसे दाना खिलाएं। लोग तो पहले से ही गौरैया के लिए पानी और चावल रखना शुरू कर दिया है। ऐसे मौके अक्सर आते रहते हैं जब इंद्रपाल व उनके परिवार को गौरैया के बिन मां के बच्‍चों का लालन-पालन खुद करना पड़ता है। बाज का शिकार बनी गौरैया के बच्‍चों को घोंसले से निकाल दाना-पानी देने संग उड़ना सीखाते हैं।

घोंसले से निकले गौरैया के बच्‍चे फुदकने लगते हैं

इंद्रपाल की बेटी अमृता यह बताने में नहीं चू‍कती कि वह खिलौने की जगह गौरैया के बच्‍चों संग खेल कर बड़ी हुई हैं। ड्राइंगरुम हो या किचन अथवा अमृता का कमरा, सुबह होते घोंसले से निकले गौरैया के बच्‍चे फुदकने लगते हैं। अमृता का कहना है कि इन्‍हें छोड़ बनारस से कहीं बाहर जाने पर मन उदास हो जाता है।


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