धर्म-आध्यात्म : मणिकर्णिका स्थित मणिकर्णी के चरण पखार सिद्ध हुआ चक्र पुष्करिणी कुंड
पुरोहित परिवार के बाद श्रद्धालुजनों ने पापों से मुक्ति व पुण्य फल कामना से कुंड में डुबकी लगाई। दर्शन-पूजन किया और माता को मौसमी फल भी अर्पित किए।
वाराणसी, जेएनएन। मणिकर्णिका घाट स्थित चक्र पुष्करिणी कुंड बुधवार को मां मणिकर्णी के चरण पखार कर फिर एक साल के लिए सिद्ध हो गया। सूबे के विभिन्न जिलों समेत कई प्रातों से आए श्रद्धालुओं ने जयघोष किया और भगवती को विधि-विधान से स्नान कराया गया। पुरोहित परिवार के बाद श्रद्धालुजनों ने पापों से मुक्ति व पुण्य फल कामना से कुंड में डुबकी लगाई। दर्शन-पूजन किया और माता को मौसमी फल भी अर्पित किए। माता को विशेष स्नान -अनुष्ठान के बाद शोभायात्रा के साथ ब्रह्मनाल स्थित दरबार में विराजमान करा दिया गया। अक्षय तृतीया पर मंगलवार को यहा लाकर कुंड के मध्य आसन पर विराजमान कराया गया था।
कुंड से प्रकट हुई थीं माई : मान्यता है कि मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी। ढाई फीट ऊंची यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है। सिर्फ अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए प्रतिमा कुंड स्थित 10 फीट ऊंचे पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाती है। माना जाता है कि मणिकर्णी माई के स्नान से तीर्थ कुंड का जल अगले एक वर्ष के लिए फिर सिद्ध हो जाता है और इसी जल में स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप-कष्ट दूर होते हैं।
गंगा से भी प्राचीन कुंड : मान्यता है कि भगवान शकर ने काशी बसाने के बाद भगवान विष्णु को सृष्टि पालन के लिए कहा। यहा हरि का चक्र गिरने से कुंड का आकार बना जिसे चक्रपुष्करिणी कहा गया। उन्होंने यहा 11 वर्षो तक तपस्या की और उनके पसीने से कुंड भर गया। भगवान शिव, देवी पार्वती संग यहा पहुंचे तो खुशी से झूम उठे। इससे उनकी कर्णिका (कान के कुंडल) की मणि कुंड में गिर गई। इसके बाद से ही इसे चक्रपुष्करिणी मणिकर्णिका कुंड नाम से जाना गया।
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