महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ : रिसेट के चक्कर के फंसा प्रमाणपत्रों का सत्यापन, आनलाइन काउंसिलिंग में देरी
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के स्नातक स्नातकोत्तर के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिले की काउंसिलिंग इस बार आनलाइन हो रही है। इसके लिए चयनित अभ्यर्थियों से प्रमाणपत्र अपलोड कराए गए थे ताकि प्रमाणपत्रों का आनलाइन सत्यापन भी किया जा सके।
वाराणसी, जेएनएन। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के स्नातक, स्नातकोत्तर के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिले की काउंसिलिंग इस बार आनलाइन हो रही है। इसके लिए चयनित अभ्यर्थियों से प्रमाणपत्र अपलोड कराए गए थे ताकि प्रमाणपत्रों का आनलाइन सत्यापन भी किया जा सके। वहीं, तमाम अभ्यर्थियों ने वेबसाइट पर प्रमाणपत्र अपलोड करने के बाद चूकवश रिसेट का बटन दबा दिया है। इसके चलते अपलोड प्रमाणपत्र वेबसाइट पर शो नहीं कर रहा है। इसके कारण ऐसे अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्रों का आनलाइन सत्यापन फंस गया था। हालांकि आउट सोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से विद्यापीठ प्रशासन अब री-ओपेन (री-डाउनलोड) करा रहा है ताकि प्रमाणपत्रों का आनलाइन सत्यापन किया जा सके।
री-ओपेन कराने के चक्कर में प्रमाणपत्रों के सत्यापन में देरी भी हो रही है। बहरहाल विभागवार प्रमाणपत्रों का सत्यापन जारी है। यदि किसी अभ्यर्थियों को विवरण में किसी प्रकार की त्रुटि है तो उन्हें विश्वविद्यालय की ओर से एसएमएस भी भेजा जा रहा है। अब तक ऐसे 300 से अधिक अभ्यर्थियों को मैसेज भेजा जा चुका है। अभ्यर्थी आवेदन कर संशोधित भी करा रहे हैं। दूसरी ओर जिन ओबीसी संवर्ग के अभ्यर्थियों ने तीन साल के बाद का जाति प्रमाणपत्र अपलोड कर दिया। उन्हें ओबीसी संवर्ग का लाभ नहीं दिया जा रहा है।
ऐसे अभ्यर्थियों को सामान्य वर्ग में किया जा रहा है। इसके पीछे विश्वविद्यालय ने ओबीसी संवर्ग के अभ्यर्थियों को तीन साल के भीतर के बने जाति प्रमाणपत्र अपलोड करने का निर्देश दिया था। कुलसचिव डा. एसएल मौर्य ने बताया कि प्रमाणपत्रों का आनलाइन सत्यापन जारी है। कई विभागों में सत्यापन का कार्य पूरा हो गया। ऐसे विभागों के पाठ्यक्रमों में दाखिले का शुल्क जमा करने में चयनित अभ्यर्थियों को यथाशीघ्र मैसेज भेजने की तैयारी चल रही है। स्नातक व स्नातकोत्तर के सभी पाठ्यक्रमों में दाखिला दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक पूर्ण कर लेने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
पहले किया निरस्त, फिर माना त्रुटि
अनुसूचित जाति के लिए तीन वर्ष के भीतर का जाति प्रमाणपत्र अपलोड करने की बाध्यता नहीं थी। इसके बावजूद कला विभाग ने बीए में अनुसूचित जाति के एक अभ्यर्थी का जाति प्रमाणपत्र तीन वर्ष से अधिक का होने के आधार पर खारिज कर दिया था। वहीं, पोल खुलने के बाद विभाग ने त्रुटि मानते हुए जाति प्रमाणपत्र मान्य कर लिया। बहरहाल विद्यापीठ प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है। विभाग को प्रमाणपत्रों का सत्यापन पूरी सजगता से करने का निर्देश दिया है।