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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शताब्दी वर्ष : स्वतंत्रता आंदोलन की उपज काशी विद्यापीठ के तीन पड़ाव

स्वतंत्रता आंदोलन की उपज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्थापना के तीन पड़ाव है। स्थापना काल में इसका नाम श्री काशी विद्यापीठ रहा। मानविकी संकाय के सामने पुराने गेट पर अब भी इसका नाम श्री काशी विद्यापीठ लिखा हुआ है। बाद में इसका नाम काशी विद्यापीठ हुआ।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 07:30 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 07:30 AM (IST)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शताब्दी वर्ष : स्वतंत्रता आंदोलन की उपज काशी विद्यापीठ के तीन पड़ाव
स्वतंत्रता आंदोलन की उपज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्थापना के तीन पड़ाव है।

वाराणसी [अजय कृष्ण श्रीवास्तव] । स्वतंत्रता आंदोलन की उपज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्थापना के तीन पड़ाव है। स्थापना काल में इसका नाम श्री काशी विद्यापीठ रहा। मानविकी संकाय के सामने पुराने गेट पर अब भी इसका नाम श्री काशी विद्यापीठ लिखा हुआ है। बाद में इसका नाम काशी विद्यापीठ हुआ।  वर्ष 1963 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद में इसका नाम काशी विद्यापीठ हुआ। वहीं, बापू की 125वीं जयंती पर 11 जुलाई 1995 को इसके नाम के आगे महात्मा गांधी जोड़ दिया गया।

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वर्ष 1920 के प्रारंभ में सरकारी विद्यालयों व विश्वविद्यालयों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया। महात्मा गांधी का मानना था कि सरकारी अनुदान से चलने वाली शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है। कुछ इसी सोच के साथ सरकारी विश्वविद्यालयों के समकक्ष सर्व प्रथम गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की गई। इस क्रम में 10 फरवरी 1921 (वसंत पंचमी) को भदैनी स्थित किराए के मकान में काशी विद्यापीठ की स्थापना की गई। सुबह आठ बजे वेद मंत्रों व कुरान की आयतों के उच्चारण के साथ इसकी आधारशिला बापू ने स्वयं रखी थी। समारोह में पं. मोती लाल नेहरू, मौलाना मोहम्मद अली, सेठ जमनालाल बजाज, मौलाना अब्दुल कमाल आजाद, पं. जवाहर लाल नेहरू सहित प्रमुख लोग शामिल हुए।

राष्ट्ररत्न शिवप्रसाद गुप्त ने शिक्षा निधि के नाम बनाया था ट्रस्ट

इसे संचालित करने के लिए बाबू शिव प्रसाद गुप्त ने दस लाख रुपये से शिक्षा निधि के नाम से एक ट्रस्ट बनाया। उसके ब्याज के अलावा चालीस हजार रुपये प्रतिवर्ष देने का आश्वासन भी दिया था। शुरू में कुछ आर्थिक कठिनाई आई तो उन्होंने चौक कटरा से होने वाली आय को भी दान दे दिया। भदैनी के बाद विद्यापीठ कर्णघंटा स्थित एक धर्मशाला में स्थानांतरित किया गया। बाद में राष्ट्ररत्न शिवप्रसाद गुप्त ने चकला बाग की जमीन खरीदी और ट्रस्ट को को दान दे दिया।

असहयोग आंदोलन की बनी वैचारिक संस्था  

असहयोग आंदोलन से दौरान अनेक अध्यापकों व छात्रों ने काशी ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय छोड़कर काशी विद्यापीठ में प्रवेश ले लिया। अध्यापक जेबी कृपलानी के साथ करीब 125 विद्यार्थी भी विद्यापीठ पढऩे चले आए। विद्यार्थियों में आचार्य बीरबल भी शामिल रहे। वकालत छोड़कर आचार्य नरेंद्र देव व पं. यज्ञ नारायण उपाध्याय,  राजकुमार विद्यालय (अजमेर) छोड़कर संपूर्णानंद सहित तमाम नाम शामिल है। वहीं भगवान दस ने भी डिप्टी कलेक्टर पद को छोड़कर काशी विद्यापीठ से जुड़ गए। वह विद्यापीठ के प्रथम कुलाधिपति व कुलपति रहे। इस प्रकार काशी विद्यापीठ असहयोग आंदोलन की मुख्य वैचारिक संस्था बनी।  

वर्ष 1963 में मिला डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा

काशी विद्यापीठ को वर्ष 1963 में इसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। वहीं जनवरी 1974 में इसे राज्य विश्वविद्यालय क दर्जा मिला। जबकि विद्यापीठ को छह जिलों में क्षेत्राधिकार सत्र 2009-10 में मिला। हालांकि  बलिया में जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद अब विद्यापीठ का क्षेत्राधिकारी वाराणसी के अलावा चंदौली, भदोही, मीरजापुर व सोनभद्र तक रह गया है।

शताब्दी सम्मान से सम्मानित होंगे छात्र, अध्यापक व कर्मचारी

काशी विद्यापीठ शताब्दी समारोह को भव्य रूप देने में जुटा हुआ है। समारोह का शुभारंभ पहली फरवरी से ही होगा। हालांकि मुख्य समारोह दस फरवरी से 16 फरवरी (वसंत पंचमी) तक आयोजित किए जाएंगे। समारोह के संयोजक व छात्रकल्याण संकायाध्यक्ष डा. बंशीधर पांडेय ने बताया कि इस मौके पर मेधावी छात्र, उत्कृष्ट खिलाड़ी, अध्यापक व कर्मचारियों को शताब्दी समारोह से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए समिति भी गठित कर दी गई है। उन्होंने बताया कि इस मौके पर फिल्म फेस्टिवल, पुस्तक मेला, हस्तकला, शिल्प कला प्रदर्शनी सहित अन्य आयोजन भी मनाए जाएंगे। 


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