Move to Jagran APP

महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट पर कोरोना की वजह से नहीं होगी नृत्‍यांजलि, दूसरे साल भी टूटी परंपरा

नगरवधुओं की राग विराग की नगरी काशी के महाश्‍मशान पर रात भर नृत्‍य की परंपरा इस बार भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए रद की जा रही है। मात्र महाश्‍मशान पर पूजा की परंपरा का ही निर्वहन किया जा रहा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 04:42 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 04:42 PM (IST)
महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट पर कोरोना की वजह से नहीं होगी नृत्‍यांजलि, दूसरे साल भी टूटी परंपरा
बीते वर्ष नृत्‍यांजलि की परंपरा क्‍या टूटी इस बार भी कोरोना ने परंपरा पर मानो ग्रहण लगा दिया है।

वाराणसी, जेएनएन। नवरात्र की सप्‍तमी पर महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट पर बीते वर्ष नृत्‍यांजलि की परंपरा क्‍या टूटी इस बार भी कोरोना ने परंपरा पर मानो ग्रहण लगा दिया है। आयोजकों के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से सदियों से चली आ रही नगरवधुओं की राग विराग की नगरी काशी के महाश्‍मशान पर रात भर नृत्‍य की परंपरा इस बार भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए रद की जा रही है। मात्र महाश्‍मशान पर पूजा की परंपरा का ही निर्वहन किया जा रहा है। 

loksabha election banner

इस बार उन्‍मुक्‍त होकर डांस करती नृत्‍यांगनाओं की जगह कोरोना वायरस से संक्रमित चिताएं घाट पर धधककर भगवान शिव की नगरी की खंडित हो रही परंपराओं की व्‍यथा को उजागर कर रही हैं। वहीं रसिकजनों के लिए भी यह आयोजन न होना उत्‍सव धर्मी काशी के लिए किसी अपशकुन से कम नहीं है। 

दरअसल वाराणसी को राग विराग की नगरी का तमगा यों ही नहीं मिला है। यहां महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट पर नवरात्र की सप्‍तमी की रात नगरवधुओं की महफि‍ल जमती है। सा‍री रात नृत्‍यांगनाएं ढोल पखावज की धुन पर थिरक कर धधकती चिताओंं के बीच काशी को राग विराग की नगरी की परंपराओं का निर्वहन करती हैं। सदी से भी पुरानी काशी की यह परंपरा में शामिल है। मणिकर्णिका पर एक ओर चिताओं की आंच से शरीर पंचतत्‍वों में विलीन होता है वहीं घाट पर घुंघरुओं की आवाज और साज का मेल काशी की राग विराग की परंपरा का निर्वहन करता नजर आता है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से यह लगातार दूसरा साल है जब काशी में मणिकर्णिका घाट पर नृत्‍यांजलि का यह आयोजन नहीं होगा। 

राजा मानसिंह के दौर में शुरू हुई परंपरा

राजा मानसिंह अकबर के नवरत्‍नों में एक थे, उन्‍होंने प्राचीन नगरी काशी में भगवान शिव के मंदिर का उस काल में जीर्णोद्धार कराया था। इस दौरान राजा मानसिंह एक मणिकर्णिका घाट पर नवरात्र की सप्‍तमी पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराना चाह रहे थे लेकिन काशी का कोई कलाकार श्मशान में जाकर कला का प्रदर्शन करने के लिए तैयार नहीं हुआ। मान्‍यता है कि इस बात की जानकारी काशी की तत्‍कालीन नगर वधुओं को हुई तो शिव के समक्ष शक्ति स्‍वरुप में वह स्वयं ही श्मशान घाट पर होने वाले इस उत्सव में नृत्य करने को तैयार हो गईं। मान्‍यता है कि इस दिन से धीरे-धीरे यह आयोजन उत्‍सवधर्मी काशी की ही एक परंपरा का हिस्सा बन गई। आज तक चैत्र नवरात्रि की सातवीं निशा में हर साल यहां श्मशानघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है जिसका क्रम बीते वर्ष की नवरात्र की सप्तमी को टूटा तो वर्ष 2021 में भी परंपरा का निर्वहन कोरोना की वजह से नहीं को सका।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.