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पूर्वांचल में गरीबों के आय का अच्छा स्रोत है कमल, जड़ से फूल तक सेहत और कमाई में बेजोड़

हिंदी साहित्य में विविध नामों से प्रसिद्ध कमल की अपनी एक दर्शनीय छटा होती है। यह वर्ष में दो बार सितंबर अक्टूबर व अप्रैल मई माह में अपने सौंदर्य से जिन तालाबों में खिलता है उनकी दशा में दो गुना वृद्धि कर देता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 26 Apr 2021 12:57 PM (IST)Updated: Mon, 26 Apr 2021 12:57 PM (IST)
पूर्वांचल में गरीबों के आय का अच्छा स्रोत है कमल, जड़ से फूल तक सेहत और कमाई में बेजोड़
हिंदी साहित्य में विविध नामों से प्रसिद्ध कमल की अपनी एक दर्शनीय छटा होती है।

जौनपुर, जेएनएन। हिंदी साहित्य में विविध नामों से प्रसिद्ध कमल की अपनी एक दर्शनीय छटा होती है। यह वर्ष में दो बार सितंबर, अक्टूबर व अप्रैल, मई माह में अपने सौंदर्य से जिन तालाबों में खिलता है उनकी दशा में दो गुना वृद्धि कर देता है।

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जौनपुर में खेतासराय बाजार के पूर्व व पश्चिम में अनेक तालाबों यथा गूजर ताल बेरुकताल,ढेसुरा ताल एवं पोरई ताल, नैनीताल की शोभा दर्शनीय होती है। जो भी बाहरी व्यक्ति आता है उसे इनकी निराली छटा मुग्ध कर लेती है। यही नहीं इन तालाबों के इर्द-गिर्द ग्रामों में रहने वालों के लिए यह पुष्प व इसका फल आय का अच्छा साधन भी उपलब्ध कराता है। वे इन फूलों को तोड़कर जौनपुर, वाराणसी आदि मंडियों में बिक्री कर अच्छी आय प्राप्त करते हैं साथ ही इसका फल जो कमलगट्टा के नाम से जाना जाता है हरा रहने पर खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है और सूखने पर इसका यूनानी एवं आयुर्वेदिक औषधियों के काम आता है।

तालाबों के निकट के निवासियों के लिए यह दूसरा आय का साधन होता है, जून मास में जब तालाब सूख जाते हैं अनेक ग्रामों के भूमिहीन व्यक्ति इनकी जड़ों की खोदाई कर बाजारों में ले जाकर भेजते हैं जो भसीड़ व पौनार के नाम से जाना जाता है। लोग इसे खरीदकर सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। हिंदी साहित्य के कवियों और लेखकों में उपमा का सबसे बड़ा स्रोत कमल है, चाहे आंखों के सौंदर्य का वर्णन हो मुख का वर्णन हो अथवा चरणों का वर्णन हो कोई भी कभी कमल को भूल ही नहीं सकता। वास्तव में यह हिंदी साहित्य से कमल उर्दू अदब से बुलबुल एवं गुलिस्ता को निकाल दिया जाए तो कवियों और लेखकों को उपमा का टोटा पड़ जाएगा। 


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