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पूर्वांचल में टिड्डियों का मड़राने लगा खतरा, जिला प्रशासन फसलों को बचाने के लिए उठा रहे ठोस कदम

पूर्वांचल में टिड्डियों का खतरा मड़राने लगा तो जिला प्रशासन फसलों को बचाने के लिए ठोस कदम उठा रहे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 06:40 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 09:40 AM (IST)
पूर्वांचल में टिड्डियों का मड़राने लगा खतरा, जिला प्रशासन फसलों को बचाने के लिए उठा रहे ठोस कदम
पूर्वांचल में टिड्डियों का मड़राने लगा खतरा, जिला प्रशासन फसलों को बचाने के लिए उठा रहे ठोस कदम

वाराणसी, जेएनएन। कोरोना संकट झेल रहे किसानों पर अब टिड्डियों का खतरा मडऱाने लगा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में अपना आंतक फैलाने के बाद टिड्डियों ने अपना रुख उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाकों में कर लिया है। प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के कई जनपदों में इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए डा. देवेश चतुर्वेदी (प्रमुख सचिव, कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान) ने समस्त जिलाधिकारी व उप निदेशक कृषि को पत्र भेज कर इसके प्रकोप से फसलों को बचाने की दिशा में ठोस व कारगर कदम उठाने का निर्देश दिया है। इसके बाद पूर्वांचल के जिलों में सतर्कता शुरू हो गई है।

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प्रमुख सचिव के पत्र के आलोक में बलिया जिला प्रशसन ने मंगलवार को आनन-फानन जिलास्तर पर सीडीओ की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमेटी गठित करने के साथ ही कंट्रोल रुम भी बना दिया। टिड्डी नियंत्रण के बनी समिति में उप निदेशक कृषि के अलावा जिला कृषि अधिकारी सदस्य होंगे वहीं कृषि रक्षा अधिकारी को सचिव नामित किया गया है।यह टीम जिलाधिकारी के पर्यवेक्षण में कार्य करेगी। मीरजापुर के जिलाधिकारी सुशील कुमार पटेल द्वारा दवा छिड़काव और खेतों की जुताई की समुचित व्यवस्था कराई जा रही है। डीपीआरओ अरङ्क्षवद कुमार को हिदायत दिया है कि टैक्टर व पानी के टैंकर की व्यवस्था इन गांवों में करे। दवा छिड़काव के लिए मशीनों की व्यवस्था कराई गई है, जिससे आवश्यकता पडऩे पर दवा छिड़काव तत्काल कराया जा सके। किसानों को आसानी से दवा उपलब्ध हो इसके लिए सभी दुकानों पर व्यवस्था कराई जा रही है। अरविंद कुमार सिंह, उपकृषि निदेशक, भदोही के अनुसार जिले में कोई खतरा नहीं है। टिड्डी दल शिवपुरी से झांसी की ओर आया था। अनुमान लगाया जा रहा था कि इधर भी इनका झुंड आएगा किंतु लेकिन हवा का दिशा बदल जाने से इनका झुंड ललितपुर होते हुए दौसा-मध्य प्रदेश की ओर चला गया है। फिलहाल सतर्क नजर रखते हुए तैयारी की जा रही है।

धान की नर्सरी को नुकसान पहुंचा रहे टिड्डी

फसलों पर टिड्डियों का हमला शुरू हो गया है। वह फसलों की पत्तियों को चट कर जा रहे हैं। इसके कारण किसान परेशान हैं। वाराणसी के कोर्री गांव के किसान अशोक सिंह ने बताया कि खेत में लगे गन्ना की पत्ती, पशुओं के चारे की चरी व धान की नर्सरी को टिड्डी नुकसान पहुंचा रहे है। कृषि विज्ञान केंद्र के डा. नवीन कुमार सिंह ने बताया टिड्डी कीट अब वाराणसी में भी तबाही मचा रहा है। पूर्वांचल के कई जिलों में इसका गंभीर खतरा है। हवा की दिशा से यह दल बहुत तेजी से चलता है। यह टिड्डियां फसलों, सब्जी व बाग को चट जाती है। लॉकडाउन के चलते इस बार राजस्थान में हवाई छिड़काव न होने से खतरा ज्यादा है। टिड्डी का एक झुंड दस हाथी, 25 ऊंट व ढाई हजार आदमियों जैसा नुकसान पहुंचाता है। किसानों को पहले यह समझना होगा कि टिड्डी किस समय फसलों पर बैठ रही है, उसी हिसाब से दवा का छिड़काव करना चाहिए। वैसे अधिकांश यह शाम के समय ही बैठती है। इस वर्ष टिड्डी को लेकर हाई एलर्ट घोषित किया गया है।

केंद्र के डा. एनके सिंह ने बताया कि आस-पास के जनपदों में भी टिड्डी दल के आक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। टिड्डी दल राजस्थान से मध्य प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रवेश हो चुका है। फिलहाल झांसी में इनके आक्रमण की सूचना प्राप्त हुई है। ये टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम 6 से 8 बजे के आसपास पहुंचकर जमीन पर बैठ जाते हैं। वहीं पर रात भर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फिर सुबह 8-9 बजे के करीब उड़ान भरते हैं। किसान टिड्डी से फसलों को बचाने के लिए समय-समय पर दवाओं का छिड़काव करते रहे।

बचाव हेतु ध्वनि का करें प्रयोग  

बलिया के सीडीओ बद्रीनाथ सिंह ने बताया कि यह सर्वभक्षी कीटों की श्रेणी में आता है जो किसी भी पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है। लगभग दो-ढाई इंच लंबा यह कीट कुछ ही घंटों में फसलों को चट कर जाते हैं। टिड्डी दल किसी क्षेत्र में प्राय: शाम छह बजे से आठ बजे के आसपास पहुंच कर जमीन पर बैठ जाते हैं और रात में फसल को तहस-नहस कर देते हैं। बताया कि इनको किसान सामुहिक रूप से गांव व क्षेत्र में ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग कर भगा सकते हैं। इसके अलावा आग जलाने, पटाखे फोडऩे, थाली, टीन पीटने, ढोल व नगाड़े बजाने से भी ये भाग जाते हैं। तेज ध्वनि को ये कीट बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसके अलावा खेतों में कल्टीवेटर या रोटावेटर चलाकर टिड्डी व उसके अंडों को नष्ट किया जा सकता है। बताया कि ये गन्ना, मक्का, उड़द, मूंग, सूरजमुखी तथा सब्जियों में कद्दू, भिन्डी, ल़ोविया आदि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

इन रसायनों का करें छिड़काव

फसलोंं में यदि टिड्डियों को प्रकोप बढ़ गया हो तो कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव करके भी इनकों मारा जा सकता है। टिड्डी प्रबंधन हेतु फसलों पर नीम के बीजों का पाउडर बनाकर 40 ग्राम पाउडर प्रति लीटर पानी में घोल कर उसका छिड़काव किया जाय तो दो-तीन सप्ताह तक फसल सुरक्षित रहती है। इसके अलावा बेन्डियोकार्ब 80 प्रतिशत 125 ग्राम या क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1200 मिली या क्लोरपाइरीफास 50 प्रतिशत ईसी 480 मिली या डेल्टामेथरिन 2.8 प्रतिशत ईसी 625 मिली या डेल्टामेथरिन 1.25 प्रतिशत एससी 1400 मिली या डाईफ्लूबेनज्यूरॉन 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी 120 ग्राम या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 400 मिली या लैम्ब्डा-साईहेलोथ्रिन 10 प्रतिशत डब्ल्यूपी 200 ग्राम को 500-600 लीटर पानी मे घोल कर प्रति हैक्टेयर अर्थात चार बीघा खेत मे छिड़काव करना होगा। इससे इनके प्रकोप को न सिर्फ कम किया जा सकता है बल्कि उन्हें भगाया भी जा सकता है।

क्या है मामला

उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा आदि में वर्तमान समय में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाला मुख्य कीट टिड्डी दल का प्रकोप लगातार फैल रहा है। टिड्डी झुंड में रहने पर बहुत खतरनाक व आक्रामक होती हैं। हजारों मील उड़ान की क्षमता वाले टिड्डियों के दल एक दिन में लगभग 100 से 150 किमी तक उड़ सकते हैं। टिड्डी दल हरी फसलों, सब्जी फसल, बाग-बगीचों में एक साथ झुंड के रूप में बैठकर पत्तियों को नष्ट कर देती है और कुछ ही घंटों के आक्रमण में फसल को पूरी तरह से बरबाद कर देती है। अपने वजन के बराबर खाना खाने वाली टिड्डी फसलों का एक बार में सफाया कर देती है।

क्या है टिड्डी

टिड्डी दो से ढाई इंच लम्बा कीट होता है। यह डरपोक होने के कारण समूह में रहते हैं। टिड्डी दल किसानों का सबसे बड़ा शत्रु है। यह एक दिन में 100 से 150 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती हैं। झुंड में यह पेड़-पौधे एवं वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह दल 15 से 20 मिनट में फसल के पत्तियों को पूर्ण रूप से खाकर नष्ट कर सकते हैं। टिड्डी दल किसी क्षेत्र में शाम 6 से 8 बजे के आस-पास पहुंचकर जमीन पर बैठ जाते हैं। या फिर पेड़ों, झाडिय़ों एवं फसलों पर बसेरा करते हैं। वहीं पर रात गुजारते हैं तथा फसल को खाकर नुकसान पहुंचाते। फिर सुबह 8 से 9 बजे के करीब उड़ान भरते हैं। अंडा देने की अवधि में इनका दल एक स्थान पर 3 से 4 दिन तक रुक जाता है। हालांकि इनके आगे बढऩे की दिशा हवा की गति पर निर्भर करती है।


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