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देश में लाक डाउन के दौरान नौकरी छोड़ी और मशरूम की खेती में आजमा रहे भाग्य

ईरोड तमिलनाडु में कपड़े की फैक्ट्री में सहायक प्रबंधक के पद पर तैनात कौशल श्रीवास्तव के जीवन की गाड़ी बड़े आराम से दौड़ रही थी। मगर कोरोना महामारी ने अचानक विराम लगा दिया। लाकडाउन के दौरान कंपनी बंद होने के कगार पर आ गयी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 26 Dec 2020 05:15 PM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 09:56 AM (IST)
देश में लाक डाउन के दौरान नौकरी छोड़ी और मशरूम की खेती में आजमा रहे भाग्य
लाकडाउन के दौरान कंपनी बंद होने के कगार पर आ गयी।

वाराणसी, जेएनएन। ईरोड तमिलनाडु में कपड़े की फैक्ट्री में सहायक प्रबंधक के पद पर तैनात कौशल श्रीवास्तव के जीवन की गाड़ी बड़े आराम से दौड़ रही थी। मगर कोरोना महामारी ने अचानक विराम लगा दिया।लाकडाउन के दौरान कंपनी बंद होने के कगार पर आ गयी। 65 हजार मासिक वेतन पाने की जगह एक तिहाई वेतन पर आ गये। इसके साथ भविष्य का कोई ठीकाना भी न रहा कि कब नौकरी से हाथ धोना पड़ जाय। ऐसे में परिवार चलाने की चिंता सताने लगी।

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50 वर्षीय बीए पास कौशल कहते हैं कि अचानक मेरे दिमाग में खुद का रोजगार करने की बात आ गयी। कुछ करीबियों से सलाह पर मशरूम की खेती करने का विचार आते ही कानपुर स्थित एक प्रशिक्षण केंद्र से प्रशिक्षण लेकर अपने गांव जफराबाद आ गया। घर के दरवाजे पर ही 24 फीट चौड़ाई व 55 फीट लंबाई में झोपड़ी बनाकर बटन मशरूम की खेती शुरु कर दी।

लागत- खेती शुरु करने में करीब सवा दो लाख रुपया खर्च आया है जिसमें झोपड़ी निर्माण, खाद, बीज आदि शामिल हैं। बीज को दिल्ली से मंगाया है। अक्टूबर माह में खेती शुरू की है। जनवरी के प्रथम सप्ताह से पैदावार शुरू हो जाएगी जो मार्च माह तक चलेगा। बीज, खाद पर लगे लागत का 20 फीसदी मुनाफा मिलेगा।

क्षेत्र के लिए नजीर- कौशल के जज्बे की चर्चा जफराबाद में ही नहीं बल्कि गोविंदपुर, नरऊर, दफ्फलपुर, मडांव समेत आसपास के गांवों में भी है। उनकी खेती को देखने भी लोग आते है। जो युवाओं को स्वरोजगार के प्रति प्रेरित करती है।

बढाएंगे खेती-  कहते हैं अगर सफलता मिली हो खेती को और वृहदस्तर पर करुंगा। भविष्य में पशुपालन व्यवसाय से भी जुड़ने की बात कही।


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