जानिए, सोनभद्र के उस सेवा कुंज आश्रम को जहां पहुंचने वाले हैं राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द
आदिवासियों-वनवासियों की दुश्वारियां दूर कर उन्हेंं स्वावलंबी बनाने की दिशा में बभनी का सेवा कुंज मील का पत्थर साबित हो रहा है। इसे और पुख्ता किया है राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द से आश्रम के रिश्ते ने। इस रिश्ते को और मजबूती देने के लिए राष्ट्रपति रविवार को यहां आएंगे।
सोनभद्र [सतीश सिंंह]। चार प्रदेशों की सीमा से सटा उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला सोनभद्र भारत के ऊर्जा की राजधानी है। यहां अर्से से विकास की मुख्य धारा से अलग थलग पड़े आदिवासियों के विकास की जो नई कहानी गढ़ी जा रही है, वह किसी सुखद आश्चर्य सरीखी है। छत्तीसगढ़ की सीमा पर जिले का एक इलाका है बभनी, यहां घनघोर आदिवासी इलाके में नक्सली गतिविधियों का हाल के बरसों तक बोल-बाला था। जंगली इलाका, संसाधनों का टोटा और मुख्य मार्गों तक पहुंचने के लिए मीलों का पैदल सफर तय करना पड़ता है। ऐसे कठिन हालात में यदि यहां कें बच्चे इंजीनियर और कुशल पेशेवर बने तो सुखद आश्चर्य होना स्वाभाविक है। इन आदिवासी बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाने में सेतु का काम किया क्षेत्र के ही सेवा कुंज आश्रम ने। सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला के इस ग्रामीणांचल में कुछ साल पहले एक शिक्षित क्या साक्षर भी खोजने से नहीं मिलते थे।
लेकिन अब यहां युवाओं की नई पौध तैयार हो रही है। बीते दो दशक से इस आश्रम ने वनवासियों को जागरुक कर समग्र विकास के लिए प्रेरित किया। अब यहां आदिवासियों की सोच बदल रही है। वह शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं। आश्रम में इस समय 250 आदिवासी बच्चे पढ़ रहे हैं। करीब 40 एकड़ में फैले इस आश्रम में 500 बच्चों के रहने की क्षमता है। अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम से संचालित सेवा समर्पण संस्थान के बभनी सेवाकुंज आश्रम में तीरदांजी से लगायत कंम्प्यूटर शिक्षा तक हर वह व्यवस्था करने का प्रयास किया गया है जो आदिवासियों के मन व जीवन को विकास की दौड़ में रफ्तार भरने के काबिल बना सके।
आदिवासी बाहुल्य वाले इस इलाके में जहां कभी शिक्षा पाने के लिए बच्चों को तरसना पड़ता था, वहां नक्सलियों की चहलकदमी होती थी। उसी क्षेत्र में सेवा कुंज आश्रम आज शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दे रहा है। यहां जिले के सभी ब्लाकों, पड़ोसी राज्यों के वनवासी बच्चे छात्रावास में रहकर निश्शुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं।
भारत के राष्ट्रपति जैसे प्रतिष्ठित पद पर आसीन रामनाथ कोविंद का आदिवासियों के विकास व इस आश्रम से गहरा नाता है। वे यहां पहले भी आ चुके हैं। हालांकि उस दौरान वह राज्यसभा सांसद थे। बताया जाता है कि यहां वनवासी बच्चों के छात्रावास के लिए सांसद रहते हुए वित्तीय सहयोग दे चुके हैं। उसी का लोकार्पण करने के लिए 19 सितंबर 2001 को आश्रम में आए थे।
इस बार 14 मार्च को भारत के राष्ट्रपति के रूप में यहां उनका आगमन प्रस्तावित है तो आश्रम से जुड़े लोगों व आदिवासियों के मन में विकास की नई उम्मीदें कुलांचे मारने लगी हैं। 1998 से लगायत अब तक विकास की राह में आईं बेशुमार चुनौतियों को भूलकर अब वे राष्ट् व अपने समाज के विकास में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के प्रति आतुर हैं।
13 जिलों में चल रहा अभियान
आदिवासी/वनवासी समाज के सर्वांगीण विकास के लिए यह अभियान प्रदेश के 13 जिलों में चल रहा है। इसमें सोनभद्र, मीरजापुर, प्रयागराज, चन्दौली, चित्रकूट, ललितपुर, बांदा, झांसी, महराजगंज, बलरामपुर, श्रावस्ती, लखीमपुर और बहराइच हैं। सेवा समर्पण संस्थान के प्रांत सह संगठन मंत्री आनंद ने बताया कि इन जिलों में इस समाज की संख्या की बहुलता है। उन्होंने बताया कि मुसहर,घसिया,उराव,पोल व कोरवा जातियों के उत्थान के लिए यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इनकी धार्मिक आस्था धरती,पत्थर और पेड़ को भी विकसित करने का काम किया जाता है।
ईसाई मिशनरियों के हमले से बचाने की कोशिश
1998 से पहले बभनी सहित सोनभद्र के निर्जन इलाके व छत्तीसगढ़ की सीमा तक ईसाई मिशनरी के 40 स्कूल चलते थे। वे मतांतरण की हर संभव कोशिश कर हिन्दू समाज को आघात पहुंचा रहे थे। अब मिशनरी का कोई स्कूल नहीं बचा।