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काशी में बुना जाएगा कश्मीर का पश्मीना शाल, बुनकरों के लिए खादी ग्रामोद्योग ने दिया अवसर

संदीप सिंह ने बताया कि अक्टूबर में खादी मेले के दौरान उनकी मुलाकात खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष विजय कुमार सक्सेना से हुई थी। उन्होंने इच्छा जाहिर की कश्मीर के पश्मीना ऊन से निर्मित ऊनी कपड़े की बुनकारी काशी में होनी चाहिए।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 09:57 AM (IST)
काशी में बुना जाएगा कश्मीर का पश्मीना शाल, बुनकरों के लिए खादी ग्रामोद्योग ने दिया अवसर
खादी मेले के दौरान उनकी मुलाकात खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष विजय कुमार सक्सेना से हुई थी।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। यदि आप जम्मू-कश्मीर घूमने जाते हैं तो वहां से अपने लिए पश्मीना ऊन से बने शाल, स्वेटर, मफलर, चादर जरूर खरीदकर लाते हैं। लेकिन, अब इसका उत्पादन बनारस में शुरु होने जा रहा है। इस योजना को खादी ग्रामोद्योग आयोग की सहायता से सेवापुरी के संदीप सिंह साकार कर रहे हैं। आगामी वर्ष जनवरी माह में इसका उत्पादन शुरु हो जाएगा। फरवरी माह से खादी ग्रामोद्योग इसकी बिक्री शुरु करेगा।

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लेह जाकर एक माह का लिया प्रशिक्षण, फिर की शुरुआत : संदीप सिंह ने बताया कि अक्टूबर में खादी मेले के दौरान उनकी मुलाकात खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष विजय कुमार सक्सेना से हुई थी। उन्होंने इच्छा जाहिर की कश्मीर के पश्मीना ऊन से निर्मित ऊनी कपड़े की बुनकारी काशी में होनी चाहिए। उनकी योजना हमें अच्छी लगी। फिर हम उस पर काम करना शुरु किए। उनके निर्देशन में हम अपनी चार सदस्यीय टीम के साथ लेह गए। वहां एक माह का प्रशिक्षण लिया। इसका पूरा खर्च खादी ग्रामोद्योग ने दिया। प्रशिक्षण के उपरांत अब हम सेवापुरी के सिरहिरा में इसका उत्पादन शुरु करने जा रहे हैं।

लेह से काशी आएगा पश्मीना ऊन का धागा : प्रक्रिया के तहत संदीप सिंह लेह से पश्मीना ऊन खरीदेंगे। इसके बाद दिल्ली में इसकी पूनिंग और रूविंग होगी। इसके बाद वापस इसे फिर लेह ले लाया जाएगा। यहां इस ऊन की कताई करके उससे धागा बनाया जाएगा। तैयार धागा फिर बनारस आएगा। फिर यहां के बुनकर उससे शाल, स्वेटर, मफलर, चादर बुनेंगे। काशी बुनकारी के लिए ख्यात है। उम्मीद है कि यहां के बुनकर कश्मीर से अच्छी बुनकारी करेंगे। जो लोगों को आकर्षित करेगा।

खादी के सहयोग से लेह में लगेगा प्लांट : यदि योजना सफल रही तो खादी ग्रामोद्योग आयोग के सहयोग से लेह में पूनिंग और रूविंग का प्लांट लगेगा। इससे लागत में कमी आएगी। तो पश्मीना ऊन का उत्पाद आम आदमी की पहुंच में होगा।

80 फीसद निकल जाता है अवशेष : संदीप सिंह ने बताया कि पश्मीना ऊन महंगा है। एक किलोग्राम कच्चा ऊन खरीदने पर कई प्रक्रिया के तहत इससे दो सौ ग्राम धागा तैयार होता है। अवशेष के साथ-साथ यात्रा व्यय भी बहुत है। इस कारण इसकी लागत बढ़ जाती है।

खादी आयोग करेगा आनलाइन मार्केटिंग : उत्पादन शुरु होते ही खादी ग्रामोद्योग आयोग इसकी आनलाइन मार्केटिंग करेगा। जिससे कि बुनकरों को बिक्री में सहूलियत हो। देखा जाए तो बुनकरों के लिए खादी आयोग की ओर से यह एक नई पहल है। इसका सीधा लाभ बुनकरों को मिलेगा।

बोले अधिकारी : खादी आयोग के सहयोग से कुछ बुनकर पश्मीना ऊन से बुनकारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। यह अन्य बुनकरों के लिए अच्छा अवसर है। उनके उत्पादों की बिक्री में भी खादी आयोग की ओर से सहयोग किया जाएगा। - डीएस भाटी, निदेशक खादी ग्रामोद्योग आयोग। 


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