काशी उत्सव : रुद्राक्ष में भक्ति की निर्गुण और सगुण भक्ति धारा का मिलन, मैथिली ठाकुर ने लोक प्रस्तुतियों से किया विभोर
महफिल में रंग तो तब जमा जब मंच पर मैथिली ठाकुर की उपस्थिति हुई। कबीर की निर्गुण भक्ति के जमे जमाए रंग को फेटते हुए उन्होंने मंच से सबसे पहले श्रोताओं को कबीर खड़ा बाजार में मांगत सबकी खैर... उसके बाद मन लागो मेरो यार फकीरी में... से शुरुआत किया।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में रुद्राक्ष सम्मेलन केंद्र में चल रहे काशी महोत्सव की दूसरी संध्या में पद्मश्री भारती बंधु ने ऐसा महफिल जमाया कि पूरा थिएटर आनंदित हो उठा। उन्होंने मंच पर आते ही बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ, मां गंगा और अन्नपूर्णेश्वरी को प्रणाम किया। श्रोताओं को शाम से इंतजार करने के लिए धन्यवाद दिया। काशी के भाव में उतरते हुए उन्होंने तुलसी को नमन करते हुए पहली प्रस्तुति मोरे नैना में राम रंग छाए रहे हो... से किया। उसके उन्होंने कबीर का ध्यान किया और जरा धीरे-धीरे गाड़ी हांको रे, मेरे राम गाड़ी वाला... सुनाया। इस पर तो श्रोता अपने जगह को छोड़ कबीर की राम भक्ति में लीन होकर झूमने लगे। अंतिम प्रस्तुति में उन्होंने साधो यह मुर्दों का गांव... सुनाया। उनके साथ सहगायक के रूप में गोपी किशन भारती, भूषण भारती, सीबी वाचस्पति भारती थे। तबले पर अनुभव भारती, मंजीरा पर वी पासवानानन्द भारती ने कुशल संगत किया।
इससे पहले प्रथम सोपान में भुवनेश कोंकने ने गायन की अद्भुत प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत मंगला चरण से किया। वहीं कलापिनी कोमकली ने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित विनय पत्रिका की रचना सुनाकर श्रोताओं को भक्ति भाव में डुबोया। पहली प्रस्तुति के रूप में केहि कहूं बिपति अति भारी..., दूसरी प्रस्तुति भज ले रे मन गोपाल गुनागर रही..., तीसरी प्रस्तुति कबीर की रचना रही। भुवनेश ने नैहरवा हमका ना भाए सुनाकर कबीर के निर्गुण का प्रवाह आरंभ कर दिया। जिसके बोल साधो-साधो देखो यह जग बौरायो... थे। फिर कलापिनी कोमकली ने गुरुजी जहां बैठो वहां छाया रे... सुनाया तो भुवनेश कोंकने ने कबीर का लोकप्रिय भजन कौन ठगवा नगरिया लूटल हो सुनाया।
महफिल में रंग तो तब जमा जब मंच पर मैथिली ठाकुर की उपस्थिति हुई। कबीर की निर्गुण भक्ति के जमे जमाए रंग को फेटते हुए उन्होंने मंच से सबसे पहले श्रोताओं को कबीर खड़ा बाजार में मांगत सबकी खैर..., उसके बाद मन लागो मेरो यार फकीरी में... से शुरुआत किया। उन्होंने गीतों से ऐसा समां बांधा की श्रोता अंत तक उठने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अगली प्रस्तुति के रूप में कबीर के भजन माया महाठगिनी हम जानी... को पूरे मनोयोग से सुनाया। फिर बारी आई काशी की। उन्होंने पद्मविभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र को मंच से प्रणाम किया। उसके बाद होली खेलें मसाने में, होरी दिगम्बर... सुनाकर महोत्सव को होलियाना मूड में बदल दिया। अंदाज तब सूफियाना हुआ जब उन्होंने छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके... को स्वर दिया। इस गीत पर श्रोता भी एकाकार हो गए। तालियों की ताल और गड़गड़ाहट से पूरा सभागार गुंजित हो उठा। उन्होंने श्रोताओं की फरमाइश पर दमादम मस्त कलन्दर..., ओ लाल मेरी सखियों बला ओ झूलेलाल..., सोहर जुग-जुग जीअ तू लालनवा..., भवनवा के भाग जागल हो..., आज मिथिला नगरिया निहाल सखियां चारों दुलहा में बड़का कमाल सखियां..., डिमिक- डिमिक डमरू कर बाजे प्रेम मगन नाचे भोला... सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। उनके साथ रमेश ठाकुर, पिता ऋषभ ठाकुर, तबले आयाची ठाकुर ने कुशल संगत किया।