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जन्मभूमि के आंदोलन की सफलता के लिए स्वत: स्फूर्त बन गई थी काशी की उदारता

कारसेवा के दौरान काशी ने अपनी उदारता का बखूबी परिचय कराया था।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 06:40 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 01:31 PM (IST)
जन्मभूमि के आंदोलन की सफलता के लिए स्वत: स्फूर्त बन गई थी काशी की उदारता
जन्मभूमि के आंदोलन की सफलता के लिए स्वत: स्फूर्त बन गई थी काशी की उदारता

वाराणसी [मुकेश चंद्र श्रीवास्तव]। अयोध्‍या में कारसेवा के दौरान काशी ने अपनी उदारता का बखूबी परिचय कराया था। श्रीराम जन्मभूमि के लिए जब यहां हजारों की संख्या में दक्षिण भारतीय कारसेवक आए तो उनके लिए 24 घंटे लगातार भंडारे चले। यहां के कारसेवक व्यापारियों से जब दान में एक बोरा चावल मांगते थे तो व्यापारी खुद ही आठ बोरा चावल दे देते थे। चावल ही नहीं काशीवासियों ने हर खाद्य सामग्री दिल खोलकर दी। स्थिति यह रही ही करीब 36 बोरा चावल व काफी मात्रा में अन्य सामग्री बच गई थी। रामलला के लिए लोगों में स्वत: ही स्फूर्ति जग गई थी। यहां के लोगों ने पर्दे के पीछे भी खूब मेहनत की थी। 

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जब श्रीराम जन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर का भूमि पूजन होने जा रही है तो पिछले 476 वर्ष के सतत-अनवरत संघर्ष की ओ भी ध्यान जाता है। विहित द्वारा घोषित यह आंदोलन श्रीराम शिलापूजन, चरण पादुका पूजन के बाद शनै:-शनै: आंदोलन शहर, गांव, गली से होता हुआ स्वत: स्फूर्त हो गया। देश के साथ काशी का जन समुदाय पूर्णत: खुद ही आंदोलन का हिस्सा बनते चला जा रहा था। अमीर-गरीब, जाति-पाति की दीवार स्वत: ढहकर 'एक ही नारा, एक ही नाम, जय श्रीराम-जय श्रीराम' में समाहित हो गया था। वहीं दक्षिण भारत से आए कारसेवकों का एक ही जुनून 'अयोध्या चलो-अयोध्या चलो, खाना मिले या न मिले चलते चलो।' भले ही उनकी भाषा यहां के लोगों को समझ में नहीं आ रही थी, लेकिन उनके भाव सब बता रहे थे। वे 'मंदिर वहीं बनाएंगे, मंदिर भव्य बनाएं' का नारा लगा रहे थे। उनके रहने व खाने की व्यवस्था इंगिलशिया लाइन स्थित विद्यायल में की गई थी। उस वक्त इसकी जिम्मेदारी मुख्य रूप से तत्कालीन विभाग अध्यक्ष शिव कुमार शुक्ल, महानगर अध्यक्ष छोटे लाल पटेल, उपाध्यक्ष डा. सोहन लाल आर्य, बजरंग दल के संयोजक, सत्यशील चतुर्वेदी, कोषाध्यक्ष अरुण जायसवाल आदि के कंधों पर थी। सभी भूमिगत रहकर यह नेक कार्य कर रहे थे। 

उस समय कारसेवा में शामिल यहां से जत्थे में शामिल डा. सोहनलाल आर्य बताते हैं कि कारसेवक गोपनीय ढंक से ट्रेन तो कोई जुनूनी पैदल ही निकल पड़े थे। पुलिस व गुप्तचर विभाग सतर्क थे, लेकिन वे डाल-डाल तो कारसेवक पात-पात से अयोध्या कूंच कर रहे थे। धीरे-धीरे सभी पदाधिकारी भी अयोध्या रवाना हो गए। अयोध्या पहुंचकर जन समुद्र में शामिल हो गए। वहां सभा चल रही थी, कि अचानक ही कोलाहल बढ़ा...। पहला ढांचा, दूसरा ढांचा, तीसरा ढांचा ढहते ही ये लोग कारसेवापुरम पहुंचे। वहीं प्रभारी ठाकुर गुरुजन सिंह ने हर्षित होकर काशी लौटने के लिए कहा। इसके बाद सभी ध्वस्त बाबरी मस्जिद का ईंट लिए वापस काशी आ गए। 


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