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कालिदास की मालविकाग्निमित्रम मंचन भोजपुरी में, विश्व रंग मंच दिवस पर वाराणसी के नागरी नाटक मंडली में होगा मंचन

विश्व रंग मंच दिवस पर पहली बार कालिदास की कालजयी रचना मालविकाग्निमित्रम का बनारस में भोजपुरी बोली में मंचन होगा। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दीक्षांत समारोह पर 26 और 27 मार्च को वाराणसी के नागरी नाटक मंडली में इसका मंचन शाम 6.30 बजे से शुरू हो जाएगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 04:56 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 04:56 PM (IST)
कालिदास की मालविकाग्निमित्रम मंचन भोजपुरी में, विश्व रंग मंच दिवस पर वाराणसी के नागरी नाटक मंडली में होगा मंचन
कालिदास की कालजयी रचना मालविकाग्निमित्रम का बनारस में भोजपुरी बोली में मंचन होगा।

वाराणसी, जेएनएन। विश्व रंग मंच दिवस पर पहली बार कालिदास की कालजयी रचना मालविकाग्निमित्रम का बनारस में भोजपुरी बोली में मंचन होगा। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दीक्षांत समारोह पर 26 और 27 मार्च को वाराणसी के नागरी नाटक मंडली में इसका मंचन शाम 6.30 बजे से शुरू हो जाएगा। नाट्य विद्यालय के निदेशक रामजी बाली के अनुसार गीत, परिकल्पना और निर्देशन की जिम्मेदारी वह खुद ही संभाल रहे हैं, वहीं संगीत यहां के विजिटिंग फैकल्टी आमोद भट्ट का होगा।

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इसमें मुंबई से नारायण सिंह चौहान सहित देश भर में चार नाट्य विद्यालय के कुल बीस छात्र अभिनय करेंगे। वहीं इसकी कथा सार चौथी और पांचवीं शताब्दी के बीच पुष्यमित्र शुंग और उसके अग्निमित्र के कालखंड और राजनैतिक घटनाओं के संघर्षों को शामिल किया गया है। इस नाटक में श्रृंगार रस के खास पांच अंकों का मंचन होगा। इसमें विदिशा के राजा अग्निमित्र ही नाटक के असली किरदार हैं, इसके बाद विदर्भ की राजकुमारी मालविका नायिका की भूमिका का निर्वहन करेंगी। सबसे गौर करने वाली बात यह होगी कि इसमें सभी प्रणय कथा और राजनीतिक किस्सों को पहली बार भोजपुरी में सुना जाएगा। वहीं कार्यक्रम दो दिन तक चलेगा, जिसके अंत में यहां से अभिनय सीखे छात्रों को दीक्षांत समारोह में उपाधियां भी वितरित की जाएंगी। इस नाटक का रिहर्सल करते वक्त कई संवाद बोले गए भोजपुरी में जो कि यहां की पूर्वांचली बयार को जोड़ने का काम करती है। जैसे राजा अग्निमित्र का एक संवाद देखे तो कुछ ऐसे होगा कि साथी मित्र गीले महावर से रंगे हुए इसके पैर से फूंक मारने का कितना अच्छा अवसर प्राप्त हुआ है। इस पर विदूषक जवाब देता है कि अरे रूका-रूका तू, अवसर त अभी रउर के आजीवन मिली। तीसरी किरदार कहती है कि तोहरा तो पैर लाल कमल के जइसन खिल उठल है। इस पर नाटक की नायिका मालविका कहती हैं कि सखी ई चिजिया कहां से सीखत हो।


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