आपदा बना अवसर तो खंडहर भी बोल उठा, ‘वाह गुरुजी’, जूनियर स्कूल को बना दिया कान्वेंट जैसा
बंद स्कूलों में शिक्षक कोई काम नहीं होने का हवाला देकर जाने से कतराते रहे तो वहीं कुछ शिक्षकों ने विपरीत हालात में भी कमाल कर दिखाया।
मऊ, जेएनएन। वैश्विक महामारी कोरोना कोविड-19 के चलते जहां बंद स्कूलों में शिक्षक कोई काम नहीं होने का हवाला देकर जाने से कतराते रहे तो वहीं कुछ शिक्षकों ने विपरीत हालात में भी कमाल कर दिखाया। ऐसे ही हालात में घोसी शिक्षा क्षेत्र के इटौरा डोरीपुर गांव में बने उच्च प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक की कमान जब बीते 31 मार्च को आदर्श शिक्षक रूपेश पांडेय के हाथ में मिली तो उन्होंने आपदा को ऐसा अवसर बनाया कि उनके विद्यालय की खंडहर इमारत भी चंद दिनों में ही बोल उठी -‘वाह गुरुजी’।
पिछड़े क्षेत्र में स्थित इटौरा डोरीपुर जूनियर का शरारती तत्वों ने ऐसा हाल किया था कि खिड़कियां तो खिड़कियां फर्श की ईंट भी सलामत नहीं थी। अनलाक शुरू होते ही प्रधानाध्यापक ने अपने प्रयासों से ऐसा कायाकल्प किया कि गांव में उसी विद्यालय को अब कान्वेंट से भी ज्यादा सम्मान से देखा जा रहा है। आलम यह है कि कान्वेंट के बच्चे अब इस सरकारी उच्च प्राथमिक स्कूल में प्रवेश को बेताब हैं। लगभग एक दशक पहले उच्च प्राथमिक विद्यालय इटौरा डोरीपुर का निर्माण हुआ था। विद्यालय अत्यंत पिछड़े क्षेत्र में होने के चलते गांव के शरारती तत्व कभी खिड़कियों का दरवाजा तोड़ देते तो कभी फर्श और दीवारों को नुकसान पहुंचाते थे। इसके चलते विद्यालय जीर्ण-शीर्ण हाल में पड़ा रहा। 31 मार्च को प्रधानाध्यापक के सेवानिवृत्त होते ही अक्टूबर 2018 में सहायक अध्यापक पद पर स्थानांतरित होकर आए रूपेश पांडेय को प्रधानाध्यापक का प्रभार मिला। प्रभार मिलते ही कोरोना के चलते प्रतिबंध लागू हो गया और स्कूल बंद हो गए। आनलाइन कक्षाएं चलाने की व्यवस्था हुई, लेकिन अधिकांश मजदूर वर्ग के बच्चों के विद्यालय में होने के चलते इससे ज्यादा बच्चे नहीं जुड़ पाए। इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षा आपके द्वार कार्यक्रम के तहत प्रधानाध्यापक छात्रों के घर-घर जाकर न सिर्फ उन्हें पढ़ाते-लिखाते रहे, बल्कि कोरोना वायरस से बचने के उपायों के प्रति भी बच्चों व ग्रामीणों को जागरूक करते रहे।
चमक रहा है फर्श और बोल रहीं दीवारें
कुछ कायाकल्प योजना के जरिए तो कुछ प्रधानाध्यापक ने अपने निजी धनराशि से विद्यालय को न सिर्फ अंदर बाहर से सुरक्षित किया है, बल्कि विद्यालय के अंदर और बाहर पेंटिंग और चित्रकारी से बेहतरीन तरीके से सजा दिया गया है। टूटे-फूटे फर्नीचरों को मरम्मत कराकर ठीक कर दिया गया है तो खिड़कियां तोड़ी न जा सकें इसलिए उन्हें लोहे का लगवा दिया गया है। कार्यालय से लेकर छात्रों के कमरों तक में जरूरत के मुताबिक टीएलएम का चित्रांकन कर दिया गया है, ताकि दीवारें भी सीखने वालों को ज्ञान बांटती रहें। प्रधानाध्यापक एवं राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिलाध्यक्ष रूपेश पांडेय ने कहा कि जब विद्यालय का परिवेश सुंदर होगा तो पढ़ने-पढ़ाने वालों का मन प्रसन्न होगा। छात्रों को अब कोई असुविधा न झेलनी पड़े, इसके लिए हर संभव उपाय लगभग कर दिए गए हैं। कहा कि प्रतिदिन कोई न कोई कान्वेंट का छात्र आकर विद्यालय में प्रवेश ले रहा है।