सिल्क के ऊपर भरपूर जरी के बावजूद भी जामदानी साड़ी होती है हल्की, रंगकाट तकनीक से बुनाई संग बनती है डिजाइन
बीएचयू के भारत कला भवन में बनारस की जामदानी साड़ी की यूनिक बनारसी तकनीक से छात्रों ओर बुनकरों को अवगत कराया गया। जामदानी साड़ी में कई तरह के रंग दिखते हैं क्योंकि बुनाई के साथ-साथ डिजाइन भी चलती है इस कारण से साड़ी के जमीन का रंग भी बदलता है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। बीएचयू के भारत कला भवन में बनारस की जामदानी साड़ी की यूनिक बनारसी तकनीक से छात्रों ओर बुनकरों को अवगत कराया गया। छठें हथकरघा दिवस (सात अगस्त) के पूर्व विश्वविद्यालय के वस्त्र अभिकल्प ईकाई द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बताया गया कि बनारस के चोलापुर में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त बुनकर उस्ताद पीर मोहम्मद द्वारा जामदानी चालीस साल से बनाई जा रही है, जो कि देश में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। वहीं इसमें समय के साथ कई बदलाव भी किए गए जिससे इसकी मांग देश-विदेश में बनी रहती है। जैसे जरी के खूब इस्तेमाल के बावजूद भी जामदानी साड़ियां क्यों बेहद हल्की होती हैं इसकी तकनीक भी छात्रों और आम बुनकरों को समझाई।
पीर मोहम्मद ने बीएचयू में आयोजित इस कार्यक्रम में वस्त्र अभिकल्प की एसोसिएट प्रोफेसर डा. जसमिंदर कौर को बताया कि कढ़ुवा तकनीक से बनाई जाने वाली जामदानी को पावरलूम पर तैयार करना संभव नहीं है। कढ़ुआ तकनीक को ही स्थानीय भाषा में दपंच कहते हैं। इस तकनीक से बनाई जाने वाली साडी में डिजाइन उभरी नहीं हाेती, बल्कि साड़ी की जमीन में समाई रहती है। जबकि ब्रोकेड साड़ियों में ऐसा नहीं होता। यानि कि साड़ी की बुनाई के साथ ही डिजाइन भी तैयार होते जाते हैं। पीर मोहम्मद ने कहा कि जामदानी साड़ी में कई तरह के रंग दिखते हैं, क्योंकि बुनाई के साथ-साथ डिजाइन भी चलती रहती है, इस कारण से साड़ी के जमीन का रंग भी बदलता जाता है। इसे रंगकाट तकनीक भी कहा जाता है। वहीं इसमें जब सोने-चांदी की पालिशिंग हो जाती है तो इसका मूल्य लाखों में जाता है।
सिल्क के ऊपर जरी से डिजाइन वाले एकमात्र ज्ञात बुनकर
पीर मोहम्मद सिल्क के ऊपर जरी से डिजाइन करके साड़ियां तैयार करते हैं, वर्तमान में ऐसा प्रयोग केवल उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है। इससे पहले जरी से मीनाकारी का चलन था। इस विशिष्ट बुनाई तकनीक से जरी का इस्तेमाल होते हुए भी साड़ी पारदर्शी और बेहद हल्की नजर आती है, इस कारण से आमतौर पर इसे श्वांस लेती साड़ी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि जामदानी में जब डिजाइन बुनते हैं तो आम पावरलूम या अन्य शैलियों की तरह से धागा नहीं तोड़ा जाता, बल्कि वह दूसरी डिजाइन से जुड़ी होती है और सिरकी पीछे-पीछे चलती जाती है। कार्यक्रम के अलावा भारत कला भवन में महंगी बनारसी साड़ियों का एक कलेक्शन भी एग्जीबिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इसमें तीन-चार लाख रुपये से भी ऊपर तक की साड़ियों को प्रदर्शित किया जाएगा।