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बलिया में जागरण विमर्श : नदियों का एक-दूसरे से जुड़ाव है बाढ़ का स्थायी निदान, चौथे सत्र में बोले वीरेंद्र सिंह मस्त

Jagran Vimarsh in Ballia सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ से निजात पाई जा सकती है। ताल व अन्य जल स्रोतों से भी जलनिकासी की व्यवस्था करनी होगी। कटानरोधी कार्य का प्रोजेक्ट तैयार करते समय विशेषज्ञ टीम को गहन मंथन करना होगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 07:54 PM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 08:42 PM (IST)
बलिया में जागरण विमर्श : नदियों का एक-दूसरे से जुड़ाव है बाढ़ का स्थायी निदान, चौथे सत्र में बोले वीरेंद्र सिंह मस्त
जागरण विमर्श में सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त व साथ में एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडेंट व जिला विकास अधिकारी।

बलिया, लवकुश सिंह। Jagran Vimarsh in Ballia सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ से निजात पाई जा सकती है। ताल व अन्य जल स्रोतों से भी जलनिकासी की व्यवस्था करनी होगी। कटानरोधी कार्य का प्रोजेक्ट तैयार करते समय विशेषज्ञ टीम को गहन मंथन करना होगा। इसके बाद ही बाढ़ या कटान का स्थायी हल निकल सकता है। उन्होंने कहा कि नदियों का जुड़ाव नहीं होने के चलते बाढ़ के दौरान प्रभावित इलाकों में भयावह हालात उत्पन्न हो जाते हैं। नदियों का एक-दूसरे से जुड़ाव होने पर लाभ यह होगा कि यदि एक नदी में पानी बढ़ेगा तो उसका फैलाव दूसरी नदी में हो जाएगा। इससे प्रभावित इलाकों पर पानी का कम दबाव रहेगा। सांसद जागरण फोरम के पांचवें सत्र बार-बार बाढ़: निदान क्या विषय पर बोल रहे थे।

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उन्होंने कहा कि बाढ़ का निदान केवल रिंग बनाने से नहीं होगा। बलिया में गंगा और सरयू के अलावा और भी नदियां हैं। ये नदियां जितना नुकसान पहुंचातीं हैं, उतना ही फायदा भी पहुंचती हैं। बाढ़ के दिनों में फसल नष्ट होती है तो बाढ़ के बाद रबी का उत्पादन भी अच्छा होता है। बलिया में बाढ़ या कटान से राहत दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने कुल 13 परियोजनाओं पर 99 करोड़ की धनराशि जारी की थी। इसके अलावा दुबे छपरा में 130 करोड़ का ड्रेजिंग कार्य और सिताबदियारा में 125 करोड़ की लागत से नए रिंग बांध का निर्माण हो रहा है। इस वजह से इस बार हर इलाके में बाढ़ की स्थिति नियंत्रण में रही।

बाढ़ का आकलन करने के बाद हो विकास कार्य

एनडीआरएफ के कमांडेट मनोज कुमार शर्मा ने कहा कि बाढ़ का सीजन मुख्य रूप से तीन माह तक ही रहता है। इसके बाद भी कई इलाकों में जलजमाव बाढ़ की तरह ही होता है। इसके निदान के लिए हमें सभी नालों को साफ रखना होगा, ताकि नदी का पानी कम हो तो सभी इलाकों का पानी आसानी से वापस लौट जाए। नदी में ड्रेजिंग कर प्रवाह का रूट भी ठीक करना होगा। नदी के पेटे में सिल्ट भरा होने के कारण जलधार सीधे प्रवाहित न होकर, कई तरफ मुड़ जाती है और आबादी को नुकसान पहुंचाती हैं। बाढ़ क्षेत्र के लोगों को चाहिए कि जब भी कोई नया मकान बनाए तो बाढ़ की स्थिति का आकलन अवश्य कर लें। इस सत्र का संचालन दैनिक जागरण गोरखपुर के संपादकीय प्रभारी मदन मोहन सिंह ने किया।


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