Jagannath Rath Yatra 2020 : जगन्नाथ प्रभु स्नान के बाद पड़ गए बीमार, 15 दिन तक करेंगे विश्राम
Jagannath Rath Yatra 2020 वाराणसी स्थित अस्सी घाट क्षेत्र में जगन्नाथ प्रभु स्नान के बाद पड़ गए बीमार 15 दिन तक विश्राम करेंगे।
वाराणसी, जेएनएन। भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा की परम्परा शुक्रवार को अस्सी घाट स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में ही निभाई गयी। परंपरानुसार भगवान जगन्नाथ 15 दिन का स्वास्थ्य लाभ लेंगे, लेकिन उनके स्वस्थ्य होने पर इस बार न तो डोली यात्रा निकाली जाएगी और न ही काशी के लक्खी मेलों में शुमार रथयात्रा मेला का आयोजन होगा।
कोरोना संक्रमण के कारण धार्मिक स्थलों की बंदी के चलते जेष्ठ पूर्णिमा शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ विग्रह स्नान की परंपरा ही निभाई गयी। भगवान के विग्रह का स्नान गर्भगृह में ही मंदिर के पुजारी राधेश्याम पांडेय व हिमांशु मिश्र ने कराया। साथ ही मंदिर के गर्भगृह के बाहर लॉकडाउन के कारण रथयात्रा मेला व इससे संबंधित अन्य कार्यक्रमों के स्थगन की सूचना भी चस्पा कर दी गयी।
परम्परानुसार स्नान भगवान जगन्नाथ के विग्रह स्नान की तिथि जेष्ठ पूर्णिमा निर्धारित है। कोरोना संक्रमण के चलते मंदिर बंद होने से इस बार भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र व बहन सुभद्रा के विग्रहों को गर्भगृह से बाहर नहीं निकाला गया। हर वर्ष मंदिर की छत पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा के विग्रहों को भक्तों द्वारा मंदिर की छत पर ले जाया जाता है। छत पर ही काशी में रथयात्रा मेला का आरंभ करने वाले शापुरी परिवार के आलोक शापुरी व दीपक शापुरी सपरिवार भगवान को प्रथम स्नान कराते हैं। इसके बाद भक्तजन दिनभर स्नान कराने की परंपरा का पालन करते हैं। इस बार न तो शापुरी परिवार शामिल हुआ और न भक्तगण। इस बार कोरोना संक्रमण कोविड-19 के कारण धार्मिक स्थल बंद रखने के केंद्र व प्रदेश सरकार के आदेश के अनुपालन में आयोजक संस्था ट्रस्ट श्रीजगन्नाथजी के सचिव आलोक शापुरी ने रथयात्रा मेला और इससे संबंधित अन्य आयोजनों को स्थगित कर दिया। उन्होंने इसकी सूचना दो दिन पूर्व ही डीएम को भेज दी।
गौरतलब है कि1802 से हर वर्ष अस्सी घाट स्थित जगन्नाथ मंदिर में जेष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ के मंदिर के ऊपर विग्रह के स्नान कराने का रिवाज संपन्न कराया जाता है। इसके बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं। 15 दिनों तक (एक पक्ष, आषाढ़ कृष्ण पक्ष) काढ़े का सेवन कर स्वास्थ्य लाभ लेते हैं। भक्त भी प्रसाद स्वरूप मंदिर में जाकर काढ़े का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा (इस वर्ष 22 जून) को भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा होती है। अगले दिन तीन दिवसीय लक्खी रथयात्रा का मेला का आयोजन होता है जो इस वर्ष 23 जून से होना था।