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प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहा तनाव

जागरण संवाददाता, वाराणसी : अत्यधिक मानसिक तनाव का असर स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि प्रजनन क्षमता पर

By JagranEdited By: Published: Sun, 31 Dec 2017 09:43 PM (IST)Updated: Sun, 31 Dec 2017 09:43 PM (IST)
प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहा तनाव
प्रजनन क्षमता पर असर डाल रहा तनाव

जागरण संवाददाता, वाराणसी :

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अत्यधिक मानसिक तनाव का असर स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि प्रजनन क्षमता पर भी पड़ रहा है। अधिकांश स्तनधारियों के अंडाणु तनाव के कारण खराब होने लगे हैं। निर्धारित समय से पहले इनका प्रोटीन भी टूटकर बिखर जा रहा है। यह खुलासा हुआ है जंतु विज्ञान विभाग, बीएचयू की ओर से दस साल तक किए गए शोध में। विभाग के प्रो. शैल कुमार चौबे के नेतृत्व में डा. प्रेमकुमार, डा. अनिमा त्रिपाठी, डा. आशुतोष नारायण पांडेय, डा. शिल्पा, डा. मीनाक्षी तिवारी, अनुमेधा गुप्ता, प्रमोद यादव, अलका शर्मा, कांक्षी साहू व सुजीत कुमार के 10 वर्ष तक चूहों पर किए गए शोध में यह बात सामने आई। प्रो. चौबे ने बताया कि बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधन तथा प्रदूषित खान-पान का असर समाज पर पड़ रहा है। जिससे हर व्यक्ति तनाव की चपेट में आ गया है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा तनावग्रस्त हो रही हैं। उन्हें आए दिन किसी न किसी असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा। जिससे उनके शरीर में स्ट्रेस हार्मोन व फ्री रेडिकल सामान्य से अधिक हो जा रहा है। जिससे वे कई बीमारियों से पीड़ित हो जा रही हैं। वहीं जनन कोशिकाओं व ओवम यानी डिंबाणु (अंडाणु) पर भी असर पड़ रहा।

- जनन कोशिका की संरचना प्रभावित

दस साल के निरंतर अनुसंधान में सामने आया कि तनाव के कारण फ्री रेडिकल के स्तर में वृद्धि होने से समस्या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस में परिवर्तित हो जाती है। इससे जनन कोशिकाओं, डिंबाणु के माइक्रोकांड्रिया की संरचना व क्रियाकलाप में बदलाव हो जाता है। यह स्थिति बहुत ही घातक है।

- प्रजनन में आनुवांशिकी गड़बड़ी

डीबीटी और डीएसटी के वित्तीय सहयोग से किए गए शोध के अनुसार अंडाणु की गुणवत्ता खराब होने के कारण प्रजनन नहीं हो पाता। अगर प्रजनन होता है तो बच्चे में बड़ी आनुवांशिकी गड़बड़ियां हो जाती हैं। इसके बचाव पर शोध होना बाकी है।

- शोधपत्र कई जर्नल में प्रकाशित

उत्कृष्ट शोध कार्य के लिए पिछले वर्ष प्रो. शैल कुमार चौबे और डा. मीनाक्षी को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर का कई सम्मान मिले। यह शोध जर्नल ऑफ बॉयोमेडिकल साइंस, जर्नलऑफ सेलुलर फिजियोलॉजी, जर्नल ऑफ सेलुलर बॉयोकेमेस्ट्री और जर्नल ऑफ असिस्टेड री प्रोडक्शन एंड जेनेटिक्स में प्रकाशित हो चुका है।

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