भारत अपनी सजग सामाजिक और राजनीतिक चेतना के कारण अपनी संस्कृति को बनाए हुए हैं : पद्मश्री मालिनी अवस्थी
संस्कार भारती काशी महानगर की ओर से 20 से 26 जनवरी तक प्रस्तावित स्वाधीनता संग्राम की विरासत विषयक सात दिवसीय व्याख्यानमाला माला का आयोजन किया गया। इसमें लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी सहित कई विशेषज्ञों ने अपना पक्ष रखा।
जागरण संवाददाता,वाराणसी। संस्कार भारती काशी महानगर की ओर से 20 जनवरी से 26 जनवरी तक प्रस्तावित स्वाधीनता संग्राम की विरासत विषयक सात दिवसीय व्याख्यानमाला माला में में "स्वधीनता आंदोलन का लोक सन्दर्भ विषय पर कई वक्ताओं ने अपना पक्ष रखा। पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि भारत अपनी सजग सामाजिक और राजनीतिक चेतना के ही कारण अपनी संस्कृति को बनाए हुए हैं। प्रत्येक भारतीय अपनी संस्कृति से इसीलिए आज भी जुड़ा हुआ है। सबको साथ लेकर चलने की भावना भारत की विशेषता है। हमने अशेष लोगों के त्याग और बलिदान के आधार पर यह स्वतंत्रता पाई है।लोक जनमानस का सर्वाधिक बड़ा योगदान है।
लोकगीत इसके जीवंत उदाहरण।"भागीरथी बाई की कोख से जन्मी मोरपंथ तांबे की बिटिया हो राम"आल्हा तथा जेलन में अज़ाब बहार गीतों के माध्यम से इन उदाहरण को पूरा किया। "हमारे जनमानस में लोकगीत संदर्भ से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि लोक गीतों के माध्यम से शहीद हुए वीरों की अद्भुत झांकी प्रस्तुत की गई बिस्मिल भगत सिंह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने देश के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसने पूरे भारत को एक सूत्र में बांधकर रखा।स्वाधीनता संग्राम की अमूल्य विरासत हमारे लोकगीत हैं देश की आजादी के समय गांव गांव में सोहर और आल्हा गाए गए जो वीर माताओं के द्वारा गाए गए।
हमारी पुरखिनों का सबसे बड़ा योगदान इस आजादी में है जिन्होंने अपने पांच 5 वर्ष के बालकों को वीर कथाएं सुनाई, यदि हमारा बच्चा देश सेवा में जाता हैतो हमारी कोख पवित्र होगी दिनकर सुमित्रानंदन पंत सुभद्रा कुमारी चौहान मैथिलीशरण गुप्त तथा अन्य साहित्यकारों और कवियों का बहुत बड़ा योगदान हमारी आजादी में है। मानसिक गुलामी से मुक्ति ही भारत की असली स्वतंत्रता होगी।
"स्वाधीनता आंदोलन की विरासत" विषय पर बोलते हुए बीएचयू इतिहास विभाग के प्रोफेसर केशव मिश्रा ने कहा कि 1857 से प्रारंभ हुआ स्वाधीनता आंदोलन मूलतः जनजातियों और आदिवासी आंदोलन का ही विस्तृत स्वरूप है जो हमारी विरासत का प्रारंभ माना जाना चाहिए स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का यह पहला पड़ाव है काशी हिंदू विश्वविद्यालय और। उसी स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का हिस्सा है। जनजातियों के माध्यम से प्रारम्भ हुई। सामाजिक भूमिका हमारी विरासत के ही अंतर्गत आता है भारतीय स्वधीनता हमें एक सूत्र में बांधने का प्रयास करती है स्वराज और सुशासन का विचार भी स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का ही विकसित रूप है सब।
ब्रिटिश शासन से। हम भविष्य और समता मूलक समाज बनाएं हमारी स्वतंत्रता का स्वाधीनता स्वतंत्र और स्वाधीनता का मूल अर्थ भी यही था इस स्वतंत्रता को हमें समावेशी बनाना था जिसमें स्त्रियों की सबसे बड़ी भूमिका थी बेगम हजरत महल लक्ष्मीबाई अजीजन बाई आदि स्त्रियों के महत्त्व को हमें समझना होगा। ग्रामीण भारत और किसानों का संघर्ष भी हमारी विरासत है जो स्वामी सहजानंद सरस्वती के माध्यम से आती है। आज की युवा पीढ़ी को ग्रामीण व्यवस्था, विज्ञान और तकनीक तकनीकी के क्षेत्र में विज्ञान और समाज सुधार के क्षेत्र में देश को आगे ले जाना ही हमारी असली स्वतंत्रता होगी। कार्यक्रम संयोजक डा.अमित पांडेय और डाक्टर ज्योति पांडेय रहीं।