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गर्मी में रहें सावधान, फंगस बिगाड़ सकता काम, जानवरों के संपर्क में आने से फैलती है ये बीमारी

गर्मी का पारा चढ़ते ही कई तरह की बीमारियां भी पांव पसारने लगती हैं। बदले मौसम की वजह से यदि शरीर में खुजली लाल चकत्ता या सफेद पपड़ी पडऩे लगे तो सतर्क हो जाएं।

By Vandana SinghEdited By: Published: Wed, 08 May 2019 07:34 PM (IST)Updated: Thu, 09 May 2019 01:00 PM (IST)
गर्मी में रहें सावधान, फंगस बिगाड़ सकता काम, जानवरों के संपर्क में आने से फैलती है ये बीमारी
गर्मी में रहें सावधान, फंगस बिगाड़ सकता काम, जानवरों के संपर्क में आने से फैलती है ये बीमारी

वाराणसी, [अनुराग सिंह ]। गर्मी का पारा चढ़ते ही कई तरह की बीमारियां भी पांव पसारने लगती हैं। बदले मौसम की वजह से यदि शरीर में खुजली, लाल चकत्ता या सफेद पपड़ी पडऩे लगे तो सतर्क हो जाएं, क्योंकि यह फंगल इंफेक्शन हो सकता है। इसमें थोड़ी सी लापरवाही आप को अस्पताल पहुंचा सकती है।

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 गर्मी के मौसम में अप्रैल से जुलाई तक फंगल इंफेक्शन के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती है। ऐसे में क्या हैं इसके लक्षण, कारण, बचाव आदि की जानकारी दे रही हैं बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रो. रागिनी तिलक। उन्होंने बताया कि इसका कारण गर्मी व वातावरण में नमी का होना है। ऐसे में शरीर में पानी लगने से कई जगह फंगस हो जाता है। शरीर में जहां पर नमी रहता है वहां फंगल संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। इसमें से कई ऐसे फंगस हैं जो हमारे शरीर पर रहते है पर संक्रमण नहीं होता, लेकिन जब प्रतिरोधक क्षमता कम हो तो संक्रमण बढ़ जाता है। अधिक वजन वाले लोगों या मधुमेह से ग्रसित रोगियों में इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।

कैसे करें पहचान 

ज्यादातर फंगल संक्रमण को देखते ही समझा जा सकता है। जैसे की शरीर पर लाल चकत्ता, चकत्ता धीरे-धीरे बड़ा होना, फिर भी पुष्टि करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी डायग्नोसिस करना आवश्यक है।

लेबोरेटरी डायग्नोसिस 

पहले तो पारंपरिक तरीके यानी माइक्रोस्कोपी फंगल कल्चर से 14 से 21 दिन में इसका पता लग जाता था, मगर अब नई तकनीकों का ईजाद होने से महज 48 घंटे में इस मर्ज का पता लग जाता है। इसका फायदा यह है कि संक्रमण की जानकारी के साथ ही फंगस के प्रकार का भी पता चल जाता है। ऐसे में चिकित्सक जिस फंगस का संक्रमण होता है उसका सही इलाज शुरू कर देता है।

नई तकनीक 

आज नई तकनीक में मॉलीक्यूलर मेथड का भी योगदान है। यह जल्दी निरीक्षण का उचित विकल्प है। इससे 48 घंटे में यह पता लगाया जा सकता है कि यह फफूदी है या इससे मिलता-जुलता चर्म रोग है। जैसे सोरासिस या एलर्जी या कोई अन्य चर्म रोग है।

सावधानियां

- साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए जहां पर ज्यादा नमी हो। इसके लिए रोज नहाना चाहिए।

- सूती एवं ढीला कपड़ा पहनना चाहिए।

- तौलिया साझा नहीं करना चाहिए।

- स्टेरॉड नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।

- उचित डाक्टरी सलाह के बाद ही दवा का सेवन करना चाहिए।

- आजकल पांच में से चार दवाएं इस बीमारी में काम नहीं करती हैं। 

- यह बीमारी एक दूसरे से, पालतू जानवरों व मिट्टी के संपर्क में आने से भी फैलती है। ऐसे में हमें इनसे बचना चाहिए।

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