सुर-राग में गूंजी ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी की याद, जन्म दिवस पर शिष्याओं ने दी प्रस्तुतियां
ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी के 91वें जन्म दिवस पर शुक्रवार को उनके शिष्यों ने स्वरांजलि दी।
वाराणसी, जेएनएन। ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी के 91वें जन्म दिवस पर शुक्रवार को उनके शिष्यों ने स्वरांजलि दी। लॉकडाउन के कारण देश-विदेश से शिष्य-शिष्याओं ने अपने घरों से ही फेसबुक पर सुबह और शाम लाइव प्रस्तुतियां दीं। इसमें ठुमरी, दादरा व टप्पा को सुरों में पिरोया और अप्पा जी को याद किया।
पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने ठुमरी -बाबुल मोरा नइहर छूटो जाए... को सुरों में पिरोया। सुनंदा शर्मा ने भैरवी में ठुमरी दरवजवा में ठड़ी रही... से विभोर किया। राहुल रोहित मिश्र ने मिश्र राग गुजरी तोड़ी में बंदिश चमक-चमक बिजुरिया... को सुरों से सजाया। दादरा नयन की मत मारो... से मुग्ध किया। शक्ति चक्रवर्ती, ओंकार दादरकर, डा. रीता देव आदि ने ख्याल, टप्पा, ठुमरी प्रस्तुत किया। शनिवार को सुबह 11 व शाम छह बजे से मौसमी सेन, विवेक करमहे, उर्वशी झा, सुरंजना बोस, कृष्णा मुखेदकर, डा. शालिनी देव सुर लगाएंगे। गिरिजा देवी की पुत्री डा. सुधा दत्ता ने विषय स्थापना और संचालन विरासत फाउंडेशन की शिवानी, स्वाति व माला ने किया।
समाज की बंदिशों को तोड़कर जिसने ठुमरी को दिया नया मुकाम वह थीं गिरिजा देवी
ठुमरी की रानी के नाम से मशहूर गिरिजा देवी संगीत की दुनिया का जाना-माना चेहरा थीं। बीते वर्ष आज ही के दिन वह हम सभी को अलविदा कह गई थीं। 1929 में बनारस में जन्म लेने वाली गिरिजा ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। वह ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती थी जहां पर गाना और बजाना सही नहीं माना जाता था। इसके बाद भी उन्होंने समाज की इन दायरों को लांघकर अपने लिए अलग मुकाम तैयार किया। गिरिजा को उनके चाहने वाले प्यार से अप्पा जी कहकर बुलाते थे गिरिजा देवी बनारस घराने से गाती थीं और पूरबी आंग ठुमरी शैली परंपरा का प्रदर्शन करती थीं। गिरिजा ने अर्द्ध शास्त्रीय शैलियों जैसे कजरी, होली, चैती को अलग मुकाम दिया। वह ख्याल, भारतीय लोक संगीत और टप्पा भी बहुत ही शानदार तरीके से गाती थीं।
एक परिचय - ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी
प्रख्यात ठुमरी साम्राज्ञी पद्मविभूषण गिरिजा देवी का जन्म आठ मई, 1929 को कला और संस्कृति की प्राचीन नगरी वाराणसी (तत्कालीन बनारस) में हुआ था। उनके पिता रामदेव राय जमींदार थे। उन्होंने पांच वर्ष की आयु में ही गिरिजा देवी के लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी। गिरिजा देवी के प्रारंभिक संगीत गुरु पंडित सरयू प्रसाद मिश्र थे। नौ वर्ष की आयु में पंडित श्रीचंद्र मिश्र से उन्होंने संगीत की विभिन्न शैलियों की शिक्षा प्राप्त की। इस अल्प आयु में ही एक हिंदू फिल्म 'याद रहे' में उन्होंने अभिनय भी किया था।