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आइआइटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने बनाई इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग की नई तकनीक

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने वाहनों में आन बोर्ड चार्जर की नई तकनीक विकसित की है जिसकी लागत वर्तमान आन बोर्ड चार्जर की तकनीक से लगभग आधी है और इसका उपयोग करने से दो और चार पहिया के इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत में भारी कमी आएगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 05:56 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 05:56 PM (IST)
आइआइटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने बनाई इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग की नई तकनीक
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने वाहनों में आन बोर्ड चार्जर की नई तकनीक विकसित की है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। देश में पेट्रोल और डीजल की बजाय कम कीमत वाले इलेक्ट्रिक वाहनों को आम जन तक पहुंचाने की भारत सरकार की पहल को अमली जामा पहनाने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय) ने शुरुआत कर दी है। संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने वाहनों में लगने वाले आन बोर्ड चार्जर की नई तकनीक विकसित कर ली है जिसकी लागत वर्तमान आन बोर्ड चार्जर की तकनीक से लगभग आधी है और इसका उपयोग करने से दो और चार पहिया के इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत में भारी कमी आएगी।

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कम होगी आन बोर्ड चार्जर की लागत : नई तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और मुख्‍य परियोजना अन्‍वेषक डसं राजीव कुमार सिंह ने बताया देश में पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों ने दो पहिया और चार पहिया से चलने वाले आम जनमानस को चिंता में डाल दिया है। पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमत और बढ़ते प्रदूषण स्तर के बीच, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पारंपरिक आईसी इंजन का सबसे अच्छा विकल्प हैं लेकिन हाई पॉवर ऑफ बोर्ड चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते वाहन निर्माता कंपनियों को वाहन में ही ऑनबोर्ड चार्जर शामिल करना पड़ता है जिससे वाहन स्वामी आउटलेट के जरिये वाहनों को चार्ज कर सके। ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहन काफी महंगे हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि संस्थान में विकसित नई तकनीक से ऑन-बोर्ड चार्जर की लागत को लगभग 50 फीसद कम किया जा सकता है। इससे इलेक्ट्रिक वाहन की लागत में भी काफी कमी आएगी। प्रौद्योगिकी पूरी तरह से स्वदेशी होगी और भारतीय सड़कों पर बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को चलाने में एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। आईआईटी (बीएचयू) में लैब स्केल का विकास पहले ही किया जा चुका है और उन्नयन और व्यवसायीकरण का काम प्रगति पर है। उन्होंने आगे कहा कि देश के प्रमुख इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी ने भी इस नई तकनीक में रूचि दिखाई है और एक पूर्ण वाणिज्यिक उत्पाद विकसित करने के लिए तैयार हैं जिसे मौजूदा इलेक्ट्रिक वाहनों पर लागू किया जा सकता है। इस प्रौद्योगिकी विकास के लिए IIT गुवाहाटी और IIT भुवनेश्वर के विशेषज्ञों ने भी सहयोग किया है।

आम जन तक सुलभ होंगे इलेक्ट्रिक वाहन : डॉ. सिंह ने बताया कि यह शोध भारत सरकार की इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा आर्थिक रूप से समर्थित है। संस्थान की यह नवीन प्रौद्योगिकी सरकार के ई-मोबिलिटी मिशन में भी योगदान देगी। इस नई तकनीक की मदद से देश में वाहनों के चार्जिंग बुनियादी के ढांचे में सुधार होगा और इलेक्ट्रिक वाहन तक आम जनमानस की पहुंच आसानी से संभव हो सकेगी। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिक वाहन सतत विकास में योगदान देता है क्योंकि यह टेल पाइप उत्सर्जन को समाप्त करके सामुदायिक स्वास्थ्य में सुधार करता है, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है और मौजूदा बिजली नेटवर्क में अक्षय ऊर्जा के एकीकरण के साथ, बिजली की दरों को कम किया जा सकता है।

संस्थान में ईवी प्रौद्योगिकी पर स्थापित होगा अंतःविषय केंद्र : संस्थान के निदेशक प्रो. प्रमोद कुमार जैन ने कहा कि विकसित तकनीक सस्ते इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में मदद करेगी जो आम आदमी के लिए लाभकारी होगा। प्रौद्योगिकी का तकनीकी-वाणिज्यिक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी सकारात्मक होगा। प्रौद्योगिकी चार्जिंग बुनियादी ढांचे में सुधार करेगी और भारतीय सड़कों पर बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों को लाने के सरकारी मिशन का समर्थन करेगी। प्रो. जैन ने बताया कि आईआईटी (बीएचयू) वाराणसी में ऑटोनॉमस व्हीकल, कनेक्टेड व्हीकल विकसित करने की कुछ परियोजनाएं पहले से ही चल रही हैं। ऐसी ही एक परियोजना है एवरेरा परियोजना जिसने पिछले साल शेल इको मैराथन में विश्व स्तर पर प्रथम पुरस्कार जीता है। आईआईटी (बीएचयू), वाराणसी ईवी प्रौद्योगिकियों पर एक अंतःविषय केंद्र स्थापित करने की योजना बना रहा है ताकि बैटरी प्रबंधन प्रणाली का डिजाइन, निर्माण और परीक्षण किया जा सके, अनुसंधान का व्यवसायीकरण किया जा सके, अनुसंधान एवं विकास समस्याओं का समाधान प्रदान किया जा सके और इस क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित किया जा सके।


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