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बैंक से मैसेज न आये तो हो जाएं सावधान, साइबर अपराधी बड़ी घटना को दे सकते हैं अंजाम

बैंक से मिली चेक बुक में खाताधारक के नाम खाता नंबर और माइकर कोड को केमिकल से मिटा देते हैं। इसके बाद प्रिंटर की मदद से उस पर प्रयोग किये चेक पर खाताधारक का नाम खाता संख्या और माइकर कोड डालकर चेक तैयार कर लेते हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 06 Apr 2021 12:02 PM (IST)Updated: Tue, 06 Apr 2021 12:02 PM (IST)
बैंक से मैसेज न आये तो हो जाएं सावधान, साइबर अपराधी बड़ी घटना को दे सकते हैं अंजाम
चेक बुक में खाताधारक के नाम, खाता नंबर और माइकर कोड को केमिकल से मिटा देते हैं।

वाराणसी, जेएनएन। जालसाज बैंक के किसी कर्मचारी या अधिकारी से मिलकर इस तरह की घटना को अंजाम देते हैं या कस्टमर केयर से पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। इस काम को अंजाम देने में चेक का इस्तेमाल किया जाता है। चेक क्लोनिंग की घटना में शामिल रहे बैंक के अधिकारी या कर्मचारी व्यक्ति के खाते की जानकारी उसके हस्ताक्षर और खाली चेक मुहैया करा सकते हैं। इसके बाद जालसाज एक फर्जी एप्लीकेशन डालकर खाताधारक का मोबाइल नंबर खाते से हटवा देते हैं ताकि ट्रांजेक्शन का मैसेज उक्त व्यक्ति तक न पहुंचें। ऐसे जालसाज खाताधारक के चेक का फोटो लेकर उसका क्लोन कर फिर फर्जी हस्ताक्षर कर खाते से रकम निकाल लेते हैं। जालसाज ऐसे खाते को टारगेट करते हैं जिनमें ज्यादा पैसा होता है। ये लोग बैंक खाते से खाताधारक का मोबाइल नंबर हटवा देते हैं। साइबर अपराधी कैसे देते हैं घटना को अंजाम और कैसे किया जा सकता है बचाव, बता रहे हैं साइबर एक्सपर्ट दीपक कुमार...।

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ऐसे देते हैं घटना को अंजाम 

जालसाज लैपटॉप में स्कैन करने के बाद नए नंबर डाल चेकों पर खाता नंबर, नाम और चेक नंबर प्रिंट कर लेते हैं। इसके बाद बेयरर चेक बनाकर बैंकों से खाते में भुगतान लिया जाता है।

केमिकल का लेते हैं सहारा 

बैंक से मिली चेक बुक में खाताधारक के नाम, खाता नंबर और माइकर कोड को केमिकल से मिटा देते हैं। इसके बाद प्रिंटर की मदद से उस पर प्रयोग किये चेक पर खाताधारक का नाम, खाता संख्या और माइकर कोड डालकर चेक तैयार कर लेते हैं। क्लोनिंग होने के बाद खाताधारक के फर्जी साइन कर किसी भी बैंक में चेक लगाकर कैश दूसरे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं।

यह है माइकर कोड 

माइकर कोड (मैग्नेटिक इंक करेक्टर रिकॉग्नेशन)। माइकर कोड नौ अंकों का होता है। यह कोड सभी बैंकों के चेक के निचले हिस्से में छपा होता है। इसमें पहले तीन अंक बैंक शाखा के शहर का नाम, अगले तीन अंक बैंक के नाम और आखिरी में जो तीन अंक होते हैं वह बैंक ब्रांच की पहचान के लिए दिए होते हैं।

सरकारी खातों पर साइबर अपराधियों की निगाह 

सरकारी खाते पर साइबर अपराधियों की निगाहें अधिक होती है। इसका कारण है कि सही तरीके से ऑडिट नहीं होती है। इस तरह खाते की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती है। अभी भी कई सरकारी खाते के करंट अकाउंट पर एसएमएस की सुविधा उपलब्ध नहीं है। मामला तब पकड़ में आता है जब अधिकारियों के द्वारा दिया गया चेक अकाउंट में सही रकम नहीं रहने के कारण बाउंस कर जाता है। ऐसे अकाउंट में बड़ी-बड़ी ट्रांजैक्शन होने के बाद भी  बैंक अधिकारी किसी अधिकारी से संपर्क नहीं करते हैं। बैंक को चाहिए कि इतनी बड़ी  अमाउंट ट्रांजैक्शन करने के दौरान संबंधित अधिकारी से एक बार पूछता जरूर  करने के साथ-साथ  अधिकारी से विवरण उपलब्ध करें ! बैंक को चाहिए कि  संबंधित अधिकारी के ईमेल और मोबाइल पर भी इसकी सूचना  उपलब्ध कराएं ! ऐसा अब कई बैंक करने की लगी है  किसी का चेक जूही क्लीयरेंस के लिए जाता है उसके मोबाइल पर  उसका विवरण दिया जाता है। अगर संभव हो तो जो व्यक्ति  खाते में चेक जमा कर रहा है  अधिकारी के द्वारा जारी किया गया  लेटर  का छाया पत्र  कॉपी भी संलग्न करें।

ऐसे अकाउंट होते हैं फर्जी 

साइबर अपराध जिस बैंक के अकाउंट में  पैसे का स्थानांतरण करते हैं। उस सभी अकाउंट प्राय: फर्जी नाम और पते के होते हैं उस पर  रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर  के नियम और पता भी  फर्जी होते हैं। ऐसे अब कई गिरोह नाइजीरियन और फ्रांसीसी भी  देश के कई जगह पर चलाने लगे हैं।

बैंक लोकपाल से करें शिकायत 

यदि कोई बैंक ग्राहक की समस्या का समाधान नहीं करता है तो वह बैंकिंग लोकपाल से शिकायत कर सकता है। आरबीआइ की ओर से नियुक्त लोकपाल ग्राहकों की शिकायतों का निराकरण करता है। लोकपाल किसी भी तरह के भुगतान, चेक, ड्राफ्ट के कलेक्शन में देरी होने की स्थिति में शिकायत के बाद सुनवाई करता है। बैंक के स्तर पर चेक में गड़बड़ी होने के मामलों की भी लोकपाल सुनवाई करता है। लोकपाल के पास मामला पहुंचने से पहले अपने बैंक में शिकायत दर्ज करानी होगी। एक माह में जवाब नहीं मिलने पर, सीधे लोकपाल से संपर्क कर सकते हैं। शिकायत ऑनलाइन भी की जा सकती है।

बचने के लिए करें यह उपाय

- इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल करते समय बहुत ही सावधानी बरतें।

- किसी अंजान आदमी के साथ इंटरनेट बैंकिंग पर लेनदेन न करें।

- इंटरनेट बैंकिंग पार यूजर आईडी और पासवर्ड किसी से शेयर न करें।

- समय-समय पर इंटरनेट बैंकिंग का पासवर्ड बदलते रहें।

- अपना चेक, चाहे वह केंसिल हो, किसी को न दें।

- फोन पर बैंक खाते के बारे में मांगी गई जानकारी कभी शेयर न करें।

- क्रेडिट और डेविड कार्ड को इस्तेमाल करते समय भी विशेष ध्यान रखें।

- बैंक से आने वाले हर मैसेज को ध्यान से पढ़ना चाहिए।

पुलिस ने बनाई रणनीति

साइबर जालसाज़ी से बचने के लिए से अलग -अलग क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाकर जागरूक करेंगे।  पुलिस आयुक्त सतीश गणेश ने बताया कि साइबर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए तीन सदस्यीय टीम बनाई गई है। जो साइबर जालसाजी से बचने के बारें में जानकारी देते हुए जागरूक करेंगें। एटीएम में पहले से मौजूद जालसाज़ मदद करने के बहाने कार्ड बदल लेते है। उनसे सावधान रहें और एटीएम के आसपास कोई भी संदिग्ध व्यक्ति दिखे तो पुलिस को सूचना दें। बैंक, बीमा कंपनी, टेलीकॉम कंपनी, लकी ड्रा, बोनस आदि के नाम पर आने वाले फोन काल पर कोई भी जानकारी न दें। साइबर क्राइम की घटना होने पर सबसे पहले बैंक के टोल फ्री नंबर पर फोन कर खाते पर रोक लगवाएं। इसके तुरंत बाद बैंक जाकर पासबुक प्रिंट कराएं। प्रार्थना पत्र के साथ बैंक पासबुक प्रिंट और एटीएम कार्ड का 16 अंक लिखकर थाने  में 24 घंटे के भीतर सूचित करें।

ओएलएक्स, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ऐसे होती है ठगी, रहें सावधान

ओएलएक्स या अन्य साइटों पर जो लोग अपने सामान (वाहन, मोबाइल इत्यादि) बेचने के लिए डालते हैं उन पर साइबर अपराधी नजर बनाए रखते हैं। वह सामान खरीदने की बात करते हैं और रुपये को बैंक में ट्रांसफर करने में असमर्थता जाहिर करते हुए फोन-पे, एनीडेस्क, गूगल-पे, पेटीएम आदि से रुपये भेजने की बात करके लोगों को फंसाते हैं और ऐप डाउनलोड करा कर सामान के कीमत के बराबर रुपए भेजने का लिंक भेजते हैं जिसे खोलते ही खाते से सारी धनराशि जालसाओं के खाते में चली जाती है।


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