भगत सिंह जयंती पर विशेषः ''अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी”
शचीन्द्रनाथ के इस पत्र ने भगत सिंह की दुविधा दूर कर दी। इसके बाद उन्होंने कहा कि अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी”
वाराणसी [शाश्वत मिश्र]। भगत सिंह के फौलादी इरादों से ब्रिटिश हुकूमत कांपती थी। लेकिन, उस शख्स के सीने में एक दिल भी था जो कभी-कभी दुविधा से घिर जाता था और इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि यादातर मौकों पर बनारस ने किसी न किसी रूप में उनकी मदद की। उन्होंने अपनी लिखी विभिन्न चिट्ठियों में कई स्थानों पर बनारस का जिक्र किया है।
पहली बार बनारस ने भगत की मदद शचीन्द्र नाथ सान्याल के रूप में की थी। काशी में पैदा हुए सान्याल अपने समय के सम्मानित क्रांतिकारियों में थे। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी। महात्मा गांधी द्वारा 1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं को इस संगठन ने राह दिखाने का काम किया था। 1924 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी। बाद में इसी संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया।
शादी की दुविधा में फंसे तो शचींद्र ने सुझाई राह
भगत सिंह के जीवन में एक मोड़ तब आया था जब उनका परिवार शादी के लिए उनके पीछे पड़ गया था। जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने बनारस निवासी अपने प्रेरणास्रोत शचीन्द्र नाथ सान्याल को पत्र लिखा और मार्ग प्रशस्त करने की गुजारिश की। जवाब में शचीन्द्र नाथ सान्याल ने लिखा, विवाह करना या न करना तुम्हारी इ'छा पर निर्भर करता है। लेकिन, इतना जरूर कहूंगा कि शादी के बाद देश के लिए बड़ा काम करना तुम्हारे लिये संभव नहीं होगा।
यदि तुमने खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया है तो विवाह के बंधन को अस्वीकार कर दो। देश को तुम्हारी आवश्यकता है। ऐसे में विवाह करना देशद्रोह के समान है। संभव है कि इस बार मना करने के बाद परिवार वाले आगे भी तुम पर दबाव डालते रहेंगे। इसलिए तुम घर-परिवार छोड़ दो। यदि तुम्हें यह स्वीकार है तो मैं तुम्हारा मार्गदर्शन कर सकता हूं। शचीन्द्रनाथ के इस पत्र ने भगत सिंह की दुविधा दूर कर दी। इसके बाद उन्होंने कहा कि ''अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी”
महामना ने की थी फांसी रुकवाने की कोशिश
महामना मदन मोहन मालवीय के मन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए अपार प्रेम और श्रद्धा थी। उनको जब इन तीनों लोगों की फांसी की सजा का पता चला तो वो भी पूरे देश की तरह बेचैन हो गये। इसके बाद 14 फरवरी 1931 को वो खुद लॉर्ड इरविन के पास एक दया याचिका लेकर गए। इसमें उन तीनों की फांसी पर रोक लगाने और उनकी सजा को कम करने का आग्रह किया गया था।
बनारस में पहली बार मिले थे राजगुरु से
कुछ दस्तावेज बताते हैं कि भगत सिंह और राजगुरु की पहली मुलाकात भी संभवत: बनारस में ही हुई थी। यह पहली मुलाकात इतनी मजबूत थी कि मौत भी इसे तोड़ न सकी। संभवत: 1924 में ही राजगुरु संस्कृत पढऩे के लिए बनारस आए। यहीं वो क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।
बीएचयू के लिम्डी हास्टल में भी रुके
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने एक बार जयदेव कपूर को संगठन को मजबूत करने के लिए बनारस भेजा। यहां उन्हें नए क्रांतिकारियों को भर्ती करना था। इसमें लंबा समय लगा। इस दौरान उन्होंने बीएससी का कोर्स पूरा किया और आगे की पढ़ाई के लिए इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया। इसी समय भगत सिंह भी बनारस पहुंचे और जय देव के साथ कुछ दिनों के लिए लिम्डी हास्टल में ठहरे।
बटुकेश्वर दत्त की बहन को बनारस ठहरने को कहा
17 जुलाई 1930 को सेंट्रल जेल से लिखे अपने एक पत्र में भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त की बहन से बनारस छोड़कर लाहौर जाने से मना किया। तत्कालीन परिस्थित के मद्देनजर उनको बनारस ज्यादा सुरक्षित लगा। यही कारण है कि उन्होंने ऐसा कहा।