घर का ब्रह्मस्थान महामारी निवारण में करता है आक्सीजन बैंक का काम, प्राचीनकाल के घर हाेते थे आपदा-रोधी
वास्तुशास्त्र कहता है कि घर में हवादार जंगले होने चाहिए जो कि कई तरह के नकारात्मक ऊर्जा से हमें बचाता है। वहीं खिड़की पूरब या उत्तर की ओर हों तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यही वास्तुशास्त्र है जो कि प्राचीनकाल में आपदारोधी घरों की बात करता था।
वाराणसी, जेएनएन। वास्तुशास्त्र कहता है कि घर में हवादार जंगले होने चाहिए जो कि कई तरह के नकारात्मक ऊर्जा से हमें बचाता है। वहीं खिड़की पूरब या उत्तर की ओर हों तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। यही वास्तुशास्त्र है जो कि प्राचीनकाल में आपदारोधी घरों की बात करता था, मगर आज हम इंसान दस बाई दस के फ्लैट में रहने को मजबूर हैं। वास्तुशास्त्र कहता है घर में एक ब्रह्रमस्थान (आंगन) होता है जो घर के बीचो-बीच स्थित रहता है। यहां से हवा के साथ ही सूर्य का प्रकाश भी घर में सर्वत्र फैलता है। वर्तमान में फ्लैट कोरोना के संक्रमण को बढ़ाने में काफी मददगार साबित हुए हैं।
दक्षिण के रास्ते से आती हैं अल्ट्रा वायलेट किरणें
इस समय जबकि हवा से हवा में कोरोना फैल रहा है जो कि सबसे अधिक अपने घरों में लागू होती है। वहीं हम प्राचीन भारत की बात करें तो पक्के घरों के बीच पांच मीटर की दूरी और घरों में एक आंगन उसमें नीम-तुलसी के पेड़ लगे रहते थे। दरअसल, विज्ञान के अनुसार घर का यह हिस्सा आक्सीजन बैंक का काम करता था जहां से घर के हर कमरे को शुद्ध हवा और सूर्य का प्रकाश पहुंचता था, जो कि आज कहीं पीछे छूट गया है। वाराणसी के एक युवा आर्किटेक्ट विकास तिवारी ने बीएचयू के ज्योतिषाचार्य प्रो. विनय पांडेय और प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के साथ अध्ययन कर बताया है कि हम अपने प्राचीन ग्रंथ वास्तु के अनुसार चलें तो तमाम आपदाओं और महामारियों से बच सकते हैं। विकास ने बताया कि वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा की ओर खिड़की दरवाजे से घर में बेवजह अल्ट्रा वायलेट किरण और नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वहीं पूजा घर का ईशान कोण में होना हमारी मानसिक एकाग्रता और चित्त को बढ़ाकर प्रतिरोधक क्षमता में खासकर के इजाफा करता है। प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि सूर्य के प्रकाश और हवा की दिशा के अनुसार ही अपने घरों का निर्माण करना चाहिए। इससे काफी बेहतर वातावरण घर में बना रहता है।