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सात समंदर पार बज रहा हिंदी का डंका, अगस्त 1992 में भारत से लंदन चले गए थे ब्रह्मदेव

सात समंदर पार भी हिंदी का डंका बज रहा है। भदोही जिले के ज्ञानपुर तहसील क्षेत्र के कारीगांव निवासी ब्रह्मदेव उपाध्याय की अगुवाई में त्रिनिदाद और टोबैगो के अलावा विश्व के कई देशों में हिंदी हर किसी के दिलों पर राज कर रही है।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 07:20 AM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 07:20 AM (IST)
सात समंदर पार बज रहा हिंदी का डंका, अगस्त 1992 में भारत से लंदन चले गए थे ब्रह्मदेव
वैदिक विश्वविद्यालय के उपकुलपति बन गए स्वामी जी ने वर्ष 2000 में हालैंड में विश्वहिंदी सम्‍मेलन का आयोजन कराया।

भदोही [महेंद्र दुबे]। हिंदी स्वाभिमान है, अभिमान है, हर भारतीय इस पर गर्व करते हैं। इसीलिए तो सात समंदर पार भी हिंदी का डंका बज रहा है। भदोही जिले के ज्ञानपुर तहसील क्षेत्र के कारीगांव निवासी ब्रह्मदेव उपाध्याय की अगुवाई में त्रिनिदाद और टोबैगो के अलावा विश्व के कई देशों में हिंदी हर किसी के दिलों पर राज कर रही है।काशीनरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में पढ़ाई के बाद ब्रह्मदेव उपाध्याय 1992 में भारत से लंदन चले गए थे। शुरूआती दौर में हालैंड विश्वविद्यालय में उप कुलपति पद हासिल करने के बाद हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार करने में जुट गए। यहां पांच वर्ष तक रहने के बाद वेस्टइंडिज चले गए।

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यहीं पर वह वैदिक विश्वविद्यालय के उपकुलपति बन गए। स्वामी जी ने वर्ष 2000 में हालैंड में विश्वहिंदी सम्‍मेलन का आयोजन कराया।  इसके साथ ही नवंबर 2020 में अंतरराष्ट्रीय वेद कांफ्रेंस का आयोजन किए थे। इसमें अमेरिका, हालैंड, स्वीटजरलैंड सहित 16 देशों से ङ्क्षहदी के विद्वानों ने प्रतिभाग किया था। ङ्क्षहदी के प्रचार-प्रसार के लिए चीन में भी रामायण पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित करा चुके हैं। इन दिनों वह संयुक्त राष्ट्र संघ में इंटरनेशनल आयुर्वेद कांफ्रेंस कराने की तैयारी में हैं।  वेस्टइंडिज में आयोजित ङ्क्षहदी सम्मेलनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत आदि भी शामिल हो चुके हैं।

इन देशों में कर रहे हिंदी का प्रचार

स्वामी ब्रह्मदेव जी वेस्टइंडिज के अलावा, जापान, इजराइल, रूस, मास्को, रसिया, चीन, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, डेनमार्क, त्रिनिदाद,  मारिशस आदि देशों में ङ्क्षहदी का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन देशों में रहने वाले भारतीयों के अलावा विदेश के लोग भी बड़ी संख्या में  ङ्क्षहदी के कायल हैं।  

अपनी माटी को मत भूलना

स्वामी ब्रह्मदेव जी ने बताया कि वर्ष 1992 में जब वह लंदन के लिए निकले थे तो रेलवे स्टेशन पर पंडित श्यामधर मिश्र मिल गए थे। उनकी बात अभी भी उन्हें याद है। उन्होंने बताया कि विदेश तो जा रहे हो लेकिन अपनी माटी को मत भूलना। रहना विदेश मेें लेकिन भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रचार करते रहना। 


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