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Coronavirus News: अचानक आई कोरोना महामारी से भारतीय चिकित्सा की जमी धाक

Coronavirus News कोरोना महामारी ने देश के मृतप्राय हेल्थ सेंटरों जीनोम और माइक्रो बायोलाजी लैबों में प्राणों का संचार किया। कोविड महामारी काल के दौरान चिकित्सा-स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता रिसर्च व न्यूटिशनल वैल्यू को बढ़ावा मिलना शुरू हुआ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 07 Dec 2020 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 07 Dec 2020 11:03 AM (IST)
Coronavirus News: अचानक आई कोरोना महामारी से भारतीय चिकित्सा की जमी धाक
कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ा और अमेरिका, यूरोप के देशों के मुकाबले भारत बेहतर करने में सफल रहा।

प्रो ज्ञानेश्वर चौबे। हामारी प्रबंधन के अलावा हमारी सभ्यता को संक्रमण से बचाने में जैव व जीन विविधता का बहुत बड़ा योगदान है। हमारे 70 हजार साल के अनोखे विकासक्रम ने हमें यह जैव आनुवांशिक विविधता प्रदान की है और आज अफ्रीका के बाद मानव आनुवांशिक विविधता में भारत का स्थान है। आनुवांशिक विविधता जितनी ज्यादा होती है, महामारियों से बचने की संभावना भी उतनी अधिक होती है। ये विविधता डीएनए में अधिक परिवर्तनशीलता लाती है, जो महामारियों से लड़ाई में ताकतवर इम्यूनिटी का काम करती है।

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कोविड के समय में भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की असल क्षमता का परिचय दुनिया से हुआ है। आठ माह पहले हमने केंद्रीय बजट-2020-21 के हेल्थ सेक्टर में मंजूर राशि 69 हजार करोड़ रुपयों का तहेदिल से स्वागत किया था, मगर कोरोना ने आकर इसे संकुचित कर दिया। पहले भारत सरकार मेडिकल क्षेत्र में हर महीने चार हजार करोड़ रुपये खर्च करती थी, मगर वर्तमान में यह आंकड़ा 13 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। यह खर्च स्वास्थ्य सुविधाओं, इंस्टीट्यूशनल रिसर्च और विविध प्रोजेक्टों को बढ़ावा देने में ही किया जा रहा है।

इससे पहले ग्लोबल हेल्थ इंडेक्स ने जब भारत को 115 देशों में 57वां स्थान दिया, तो लगा कि हम इस खतरनाक आपदा के आगे घुटने टेक देंगे। अब वैक्सीन आने की खबर के साथ ही ये सारे सवाल स्वत: खत्म हो चुके हैं। यह देश के वैज्ञानिकों के शोधों और सफल इलाज के बल पर ही हुआ। उन्होंने निरंतरता के साथ वायरस के विभिन्न स्ट्रेन को सीक्वेंस किया व उनका मिलान कर वैक्सीन के विकास में देश आगे बढ़ चला। दरअसल, हमने विगत सात से आठ माह में स्वास्थ्य व शोध संबंधी जितनी तरक्की कर ली, सामान्य परिस्थितियों में इतना आने वाले कई सालों में न सीख पाते और न सोच पाते।

यही नहीं, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद और जैविक खाद्यान्नों पर भी न सिर्फ लोगों का भरोसा बढ़ा, बल्कि नीरस पड़े इस क्षेत्र को बेहतर आय मिलनी शुरू हो गई है। अकेले च्यवनप्राश के बाजार में अप्रैल से जून के बीच 700 फीसद की वृद्धि हुई। आइआइटी व मेडिकल इंस्टीट्यूट ही नहीं कृषि अनुसंधान व अन्य कई वैज्ञानिक संस्थाओं में कई ऐसी खोजें हुईं, जिनका अब समाज व अकादमिक जगत में अलग महत्व स्थापित हो चुका है। इन्हीं विज्ञानियों ने पता लगाया कि वायरस कोशिका के पावरहाउस माइटोकांडिया पर भी कब्जा कर सकता है। इसके अलावा, 60 फीसद भारतीयों के डीएनए में कोरोना का असर न होना आदि शोधों से ही इस वायरस से बचे रहने की आस लोगों में जगी और सच में मृत्युदर में हम विजित रहे। साथ ही भारत के नीति नियंताओं ने इस वायरस पर होने वाले विभिन्न शोधों का अनुसरण कर योजनाएं बनाईं, जिसका लाभ समाज को मिला।

आंकड़ों की बात करें तो, भारत में 1445 लोगों पर एक डाक्टर हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानक कहता है, एक हजार पर एक डाक्टर। प्रतिकूल हालात में हमारे स्वास्थ्यकर्मियों ने भरी गर्मी में भी भारी पीपीई किट पहनकर कमान संभाली और सेना के समान देशभर में पूजे गए। इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य करने वाले कोरोना योद्धाओं का मनोबल बढ़ा और अमेरिका, यूरोप के देशों के मुकाबले भारत बेहतर करने में सफल रहा।

[जीन विज्ञानी, जंतु विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी]


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