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हनुमान जयंती : आस्था के रंग हनुमत् प्रभु के संग, काशी में निकली हनुमान ध्‍वजा यात्रा

शुक्रवार सुबह नौ बजे से काशी की एतिहासिक हनुमान ध्वजा यात्रा दुर्गाकुंड स्थित धर्म संघ शिक्षा मंडल से निकली तो आस्‍था का ज्‍वार सड़क पर उमड़ पड़ा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 09:18 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 09:18 AM (IST)
हनुमान जयंती : आस्था के रंग हनुमत् प्रभु के संग, काशी में निकली हनुमान ध्‍वजा यात्रा
हनुमान जयंती : आस्था के रंग हनुमत् प्रभु के संग, काशी में निकली हनुमान ध्‍वजा यात्रा

वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमत जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है। इस बार हनुमत् जयंती 19 अप्रैल को मनाई जा रही है। इसी कड़ी में शुक्रवार सुबह नौ बजे से काशी की एतिहासिक हनुमान ध्वजा यात्रा दुर्गाकुंड स्थित धर्म संघ शिक्षा मंडल से निकली तो आस्‍था का ज्‍वार सड़क पर उमड़ पड़ा।

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किसी देवता की जयंती वर्ष में एक ही बार पड़ती है लेकिन राम भक्त हनुमान की जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। इसमें एक कार्तिक कृष्ण एकादशी को तो दूसरी चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पर। चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तिथि 18 अप्रैल को शाम 6.21 बजे लग गई जो 19 अप्रैल को शाम 4.31 बजे तक रहेगी। वहीं मेष लग्न प्रात: 7.02 बजे से 8.58 बजे तक रहेगी। 

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार धर्म सिंधु व निर्णय सिंधु आदि ग्रंथों में हनुमत् जयंती के विषय में विशेष जिक्र नहीं आया है। वाल्मीकि रामायण व अन्य पुराणों में विस्तार से उल्लेख किया गया है कि हनुमत् जयंती किस तिथि-समय में मनाया जाए। हालांकि इसके बाद भी इसे लेकर अलग-अलग मत हैं। उत्सव सिंधु नामक ग्रंथ में वर्णित है कि भगवान महावीर का जन्म कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी स्वाति नक्षत्र, भौमवार मेष लग्न में हुआ था। वहीं वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड सर्ग 35वें श्लोक में लिखा है कि जन्म लेते ही हनुमान जी को भूख लगी। इसलिए माता अंजना फल लेने चली गईं, उस समय सूर्य का उदय हो रहा था।

भूख से व्याकुल हनुमान जी ने सूर्य को भी फल समझा और वे उन्हें खाने को आकाश मंडल में दौड़े। उसी दिन राहु भी ग्रहण के चलते सूर्य के समीप था। हनुमान जी ने सूर्य रथ के पास आए हुए राहु को ऐसा झटका मारा की वह मूर्छित हो गया। होश आने पर क्रोध में इंद्र के पास गया और कहा कि मुझसे भी बलवान राहू सूर्य को ग्रहण लगाने के लिए आया है। इंद्र वहां आए और हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया जिसके प्रभाव से उनकी ठोढ़ी टूट गई। वहीं दूसरी तरफ, हनुमद् उपासना कल्पद्रुम ग्रंथ में वर्णित है कि चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन मूंज की मेखला से युक्त और यज्ञोपवीत से भूषित हनुमान जी उत्पन्न हुए। इस विषय के ग्रंथों में इन दोनों के उल्लेख मिलते हैं। 

पूजन विधि : चैत्र पूर्णिमा पर प्रात: गंगा या पवित्र जल से स्नानादि कर हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाना चाहिए। हनुमान जी का दर्शन कर उनका विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर नैवेद्य में लड्डू, ऋतु फल, खुर्मा इत्यादि अर्पित करना चाहिए। हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमत सहस्त्रनाम, हनुमान मंत्र इत्यादि का पाठ-जप करना चाहिए। हनुमान जी के प्रसन्न होने से जीवन में आने वाले सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन सुखमय होता है। 


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